माँ-मेरी माँ

माँ,मेरी माँ,
   खुद को क्यों न देखती हो?
बच्चे कुछ बन जाये मेरे,
   हरदम ये ही  सोचती हो.

बच्चे खेलें तो तुम खुश हो,
    पढ़ते देखके व्यस्त काम में,
बच्चे सोते तब भी जगकर,
    खोयी हो बस इस ख्याल में,
चैन से बच्चे सोये मेरे इसीलिए तुम जगती हो!
बच्चे कुछ बन जाये मेरे हरदम ये ही सोचती हो.

बच्चे जो फरमाइश करते,
              आगे बढ़ पूरी करती.
अपने खाने से पहले तुम ,
            बच्चों का हो पेट भरती .
बच्चे पर कोई आंच जो आये,आगे बढ़कर झेलती हो!
बच्चे कुछ बन जाएँ मेरे हरदम ये ही सोचती हो.

बच्चे केवल खुद की सोचें,
        तुम बस उनको देखती हो.
तुम्हारे लिए कुछ करें न करें,
       तुम उनका सब करती हो.
अच्छे  जीवन के सपने तुम,बच्चों के लिए बुनती हो!
बच्चे कुछ बन जाये मेरे,हरदम ये ही सोचती हो.
                         

टिप्पणियाँ

Shikha Kaushik ने कहा…
bahut sundar bhavpoorn rachna badhai.
मनोज कुमार ने कहा…
मां के प्रति समर्पित यह काव्यात्मक अभिव्यक्ति मन को छू गई। मां का त्याग और स्नेह दोनों का कोई मुक़ाबला नहीं है।
kshama ने कहा…
Haan! Yahee maa kaa roop hota hai! Nihayat sundar shabdon me aapne apne bhaav wyakt kiya hain!
Dinesh pareek ने कहा…
आप की बहुत अच्छी प्रस्तुति. के लिए आपका बहुत बहुत आभार आपको ......... अनेकानेक शुभकामनायें.
मेरे ब्लॉग पर आने एवं अपना बहुमूल्य कमेन्ट देने के लिए धन्यवाद , ऐसे ही आशीर्वाद देते रहें
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
http://vangaydinesh.blogspot.com/2011/04/blog-post_26.html
Anita ने कहा…
माँ इसी का नाम है, सुंदर कविता !
बच्चे केवल खुद की सोचें,
तुम बस उनको देखती हो।
तुम्हारे लिए कुछ करें न करें,
तुम उनका सब करती हो।
अच्छे जीवन के सपने तुम,बच्चों के लिए बुनती हो!
बच्चे कुछ बन जाये मेरे,हरदम ये ही सोचती हो।

मां के ममत्व का अच्छा चित्रण है आपकी इस कविता में।
मां की ममता दुनिया का सबसे अनमोल रत्न है।
shalini
aapko dil se dhanyvaav ki aap mere blog par aai aur apna samarthan diya.
yah mere liye badi khushi ki baat hai.
maa ke baare me likhi gai bhavna nidansadeh bahut bahut achhi lagai

बच्चे जो फरमाइश करते,
आगे बढ़ पूरी करती.
अपने खाने से पहले तुम ,
बच्चों का हो पेट भरती .
बच्चे पर कोई आंच जो आये,आगे बढ़कर झेलती हो!
बच्चे कुछ बन जाएँ मेरे हरदम ये ही सोचती हो.
sach maa ka jivaan inhi sapno ke beech palta vjhulta rahta hai .
maa badle me koi pratidaan nahi chahti .vah to apne har farz ko badi hi dhairyta v sneh se sampurn karne me apna saara jivan hi nyochhvar kar deti hai .
isi liye to maako bhagvaan ka darja diya jaata hai.
mera aapse anurodh hai ki mothers -dar ke din aap apni rachna ko punah post kare .sach! bahut hi achha lagega
hardik badhai ke saath
poonam
बड़ी सहजता और सरलता से 'माँ' पर लिखी गयी आपकी कविता बहुत ही भावपूर्ण है , ह्रदयस्पर्शी है |
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
--
पिछले कई दिनों से कहीं कमेंट भी नहीं कर पाया क्योंकि 3 दिन तो दिल्ली ही खा गई हमारे ब्लॉगिंग के!
G.N.SHAW ने कहा…
माँ ही तो है , जो अपने बच्चो के हर इशारे और भावो को सहजता से समझ जाती है ! इसीलिए कहते है ...माँ तो माँ होती है ! बहुत सुन्दर प्रस्तुति बधाई !
अजय कुमार झा ने कहा…
वाह बहुत खूब क्या भाव हैं । रचना ने मन को छू लिया । मां शब्द ही अपने आप में परिपूर्ण है । शुभकामनाएं
बहुत सुंदर शालिनी.... माँ के भावों का हर रंग समेटे रचना ......
माँ ऐसी ही होती है ... तभी तो वो माँ है ... कोई भी उसका स्थान नही ले सकता ....
prerna argal ने कहा…
बच्चे जो फरमाइश करते, आगे बढ़ पूरी करती.अपने खाने से पहले तुम , बच्चों का हो पेट भरती .बच्चे पर कोई आंच जो आये,आगे बढ़कर झेलती हो!बच्चे कुछ बन जाएँ मेरे हरदम ये ही सोचती हो.
बहुत सुंदर रचना /माँ होती ही ऐसी है/ माँ से बढकर दुनिया मैं कोई नहीं होता /बधाई आपको /

please visit my blog and leave the comments also.thanks
उम्मतें ने कहा…
भावुक कर देने वाली प्रस्तुति !
Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…
प्रिय शालिनी जी बहुत सुन्दर रचना -माँ होती ही ऐसी है उसकी पहली प्राथमिकता तो बच्चे ही होते हैं चाहे गरीबी हो खुद का निवाला उनके मुह में -इतना बड़ा त्याग -
अपने खाने से पहले तुम ,
बच्चों का हो पेट भरती .
बच्चे पर कोई आंच जो आये,आगे बढ़कर झेलती हो!
शुक्ल भ्रमर ५

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