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फ़रवरी, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ये नौकरी तो कोई भी न करे...

समुंदर के किसी भी पार रहना, मगर तूफ़ान से होशियार रहना. लगाओ तुम मेरी कीमत लगाओ मगर बिकने को भी तैयार रहना.       "नवाज़ देवबंदी"का यह शेर आज के जिलाधिकारियों पर पूरी तरह से सही बैठता  प्रतीत होता है जिन्हें हर काम करते वक़्त अपनी नौकरी को दांव पर लगाने को तैयार रहना पड़ता है कल   के समाचार पत्रों की मुख्य खबर के रूप में "मुज़फ्फरनगर के नए  डी.एम्.पंकज कुमार "छाये हुए हैं और मुज़फ्फरनगर के डी.एम्. संतोष यादव को वेटिंग सूची में डाल दिया गया है.इस सर्विस को लेकर आज के युवा बहुत से सपने पाले रहते हैं .सोचते हैं कि इसमें आकर देश सेवा का अद्भुत अवसर मिलेगा किन्तु सच्चाई जो है वह सबके सामने है.मुज़फ्फरनगर जैसे अपराध के लिए प्रसिद्द जिले में श्री संतोष यादव जितनी ईमानदारी व् मुस्तैदी से प्रशासन कार्य कर रहे थे उससे कोई भी अन्जान नहीं है.अभी १ जनवरी को ही उन्हें तोहफा देने के नाम पर ५० हजार रूपये की रिश्वत देने पहुंचे परियोजना निदेशक एस.के.भरद्वाज को  उन्होंने गिरफ्तार करा दिया था.मेरी व्यक्तिगत जानकारी में ही एक महिला का मकान एक फ्रॉड नेता ने कब्ज़ा लिया था वह भी श्री  संतोष

न्याय पथभ्रष्ट हो रहा है...

"इंसाफ जालिमों की हिमायत में जायेगा, ये हाल है तो कौन अदालत में जायेगा."    राहत इन्दोरी के ये शब्द और २६ नवम्बर को सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ के द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट  पर किया   गया दोषारोपण "कि हाईकोर्ट में सफाई के सख्त कदम उठाने की ज़रुरत है क्योंकि यहाँ कुछ सड़ रहा है."साबित करते हैं कि न्याय भटकने की राह पर चल पड़ा है.इस बात को अब सुप्रीम कोर्ट भी मान रही है कि न्याय के भटकाव ने आम आदमी के विश्वास को हिलाया है वह विश्वास जो सदियों से कायम था कि जीत सच्चाई की होती है पर आज ऐसा नहीं है ,आज जीत दबंगई की है ,दलाली की है .अपराधी     बाईज्ज़त     बरी हो रहे हैं और न्याय का यह सिद्धांत "कि भले ही सौ अपराधी छूट   जाएँ किन्तु एक निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए"मिटटी में लोट रहा है .स्थिति आज ये हो गयी है कि आज कातिल खुले आकाश के नीचे घूम रहे हैं और क़त्ल हुए आदमी की आत्मा  तक को कष्ट दे रहे हैं-खालिद जाहिद के शब्दों में- "वो हादसा तो हुआ ही नहीं कहीं, अख़बार की जो शहर में कीमत बढ़ा गया, सच ये है मेरे क़त्ल में वो भी शरीक था, जो शख्स मेरी कब्र पे चादर चढ

हिंदी अपने देश में..

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस  २१ फरवरी को मनाया गया किन्तु मातृभाषा के प्रति अनुराग की बात की जाये तो वह कम से कम हम भारतीयों में तो मिलना मुश्किल है.सभी कहते हैं कि अंग्रेज गए अंग्रेजी छोड़ गए और यह केवल कथन थोड़े ही है ये तो आम चलन है.न केवल पढ़े लिखे बुद्धिजीवी वर्ग में अपितु मात्र दो चार कक्षा पढ़े लोग भी अंग्रेज बनने के ही प्रति अग्रसर हैं .हमारे एक जानकार हैं जो स्वयं को चौथी ''फेल''कहते हैं और अपने को अंग्रेज दिखाने से बाज नहीं आते .अस्पताल को हॉस्पिटल कहते हैं,अदालत को कोर्ट कहते हैं और यदि इन शब्दों की  हिंदी पूछी जाये तो बगलें झांकते हैं.ये तो मात्र एक उदाहरण है और वह भी केवल इसलिए कि मैं ये कहना चाहती हूँ कि अंग्रेजी हमारे वतन की हवा में घुल चुकी है.और हम न चाहते हुए भी इसका प्रयोग करते हैं.अब यदि ''प्रयोग ''शब्द को ही लें तो कितने लोग इसका इस्तेमाल करते हैं गिनती  शून्य ही होगी क्योंकि लगभग सभी ''यूज '' शब्द इस्तेमाल करते हैं.''शून्य ''शून्य  ''को जानने वाले भी कम होंगे अब लगभग सभी ''जीरो ''

ye kya ho raha hai...

ब्लॉग एसोसिएशन अपने आपसी मन मुटाव में पडी हैं और जो असल में इनका उद्देश्य होना चाहिए उस और इनका ध्यान ही नहीं जा रहा है.मेरा मतलब है ये हम ही हैं जो अन्याय के खिलाफ मिलजुल कर आवाज उठा सकते हैं और हम ही इस और ध्यान नहीं दे रहे हैं.१७ फरवरी से अख़बारों में मुज़फ्फरनगर का गाँव भारसी की antrashtriy खिलाडी  "प्रियंका पंवार " के उत्पीडन की ख़बरें छाई हैं और इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया  जा रहा है.एक और प्रियंका का उत्पीडन उन्हें तोड़ रहा है और दूसरी और वे राज्य का नाम रोशन कर रही हैं.३४ वें राष्ट्रीय खेलों में उन्होंने १०० मीटर दौड़ में कांस्य पदक जीता है और सराहना में उन्हें क्या मिल रहा है केवल रोना.उनके पिता शिवकुमार पंवार भी उन्हें लेकर चिंतित हैं.      प्रियंका के उत्पीडन में टी.टी. ई.अनु कुमार पर मुकदमा मुज़फ्फरनगर की नई मंडी कोतवाली में पंजीकृत कराया गया है.किन्तु उनके टी.टी.ई ने कहा है की उनके आरोपों में सच्चाई नहीं है और वे उनकी पत्नी से रंजिश रखती हैं.दूसरी और प्रियंका का अपने पिता से kahna   है कि उनके बड़े बड़े लोगों से सम्बन्ध हैं और मुझ पर कार्यवाही से हटने को दबाव बनाया जा

जो किया सही किया..

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एक प्रसिद्ध शायर का शेर है- "हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती."        शायद प्रधान मंत्री जी यही कह रहे हैं आजकल.क्योंकि चारों और से उनकी घेराबंदी  जो की जा रही है किन्तु जो आज सुबह के अमरउजाला में उनका बयान पढ़ा जिसमे उन्होंने कहा "कि जितना दोषी नहीं उससे ज्यादा दिखाया जा रहा हूँ,इस्तीफ़ा नहीं दूंगा." बयान पसंद आया.आप सोच सकते हैं कि मैं शायद चापलूसी की राह पर चल रही हूँ सोचिये सोचने से कौन रोकता है किन्तु यदि हम ध्यान से सोचे तो हमें उनकी ये बात कि गठबंधन धर्म के कारण मजबूरी की बात में कोई झूठ नजर नहीं आएगा.आप खुद सोचिये पहले संयुक्त परिवार की प्रथा थी और उसमे करने वाला एक होता था और खाने वाले सौ.उस का ही ये नतीजा है कि आज यह प्रथा टूट चुकी है.राजनीति में ये प्रथा अभी अभी आरंभ हुई है और इसके खामियाजे अभी से ही नजर आने लगे हैं.गलत हो या सही परिवार को बनाये रखना परिवार के मुखिया की जिम्मेदारी हो जाती है और प्रधानमंत्री जी वही कर रहे हैं.      अब एक बात और ,प्रधानमंत्री जी पर सारी जिम्मेदारी डाल कर हम अपनी जिम्मेदारी से मु

पत्रिका में मेरा आलेख

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 प्रिय दोस्तों ,   आज मैं बहुत खुश हूँ कारण ये है कि नारी ब्लॉग पर प्रकाशित मेरा एक आलेख"दहेज़ मृत्यु व कानूनी रुख" "समाज कल्याण "पत्रिका ने अपने फरवरी के अंक में प्रकाशित किया है.ये उपलब्धि  मैने "नारी ब्लॉग" से जुड़ कर पाई और"रचना जी "के माध्यम से मुझे इसकी सूचना प्राप्त हुई ,मैं आभारी हूँ रचना जी की और समस्त ब्लॉग परिवार की जिसने प्रतिपल मेरा उत्साहवर्धन किया है.

वेलेंटाइन डे-प्यार का दिन या कुछ और

वेलेंटाइन डे प्यार का दिन,एक ऐसा दिन जब जिधर देखो प्यार की खुशबू फ़ैल जाती है .दुकानों पर कहीं चोकलेट्स कार्ड्स,कई परफ्यूम ,टेडी बियर सज रहे हैं तो सड़कों पर युवाओं की कतारों की कतारें हैं.लगभग सभी जान चुके हैं कि १४ फरवरी का दिन वेलेंटाइन डे है लेकिन यह क्यों मनाया जाता है इससे शायद कुछ ही लोगों का वास्ता पड़ा होगा किन्तु मैं सबसे पहले इन संत वेलेंटाइन के देश का जिक्र करूंगी और वह भी यूं कि ये रोम के पास एक शहर के थे ,वही रोम जो इटली की राजधानी है और उस देश के इस दिवस को यहाँ के उसी युवा वर्ग ने कितनी खुली मानसिकता से अपना लिया जबकि उसी देश की सोनिया गाँधी को यहाँ अब तक भी विदेशी कहा जाता है जबकि उनका भी तो राजीव गाँधी से प्रेम ही था जिस कारण उन्होंने भारत को और भारत की संस्कृति को अपनाया तो उन्हें स्वीकारने में यहाँ संकीर्ण मानसिकता क्यों अपनाई जाती है?         खैर यहाँ बात हो रही है सेंत वेलेंटाइन की तो जहाँ तक मुझे जानकारी है उन्होंने रोमन शासक क्लाडियस के सैनिकों पर महिलाओं के साथ प्यार जताने और विवाह करने पर प्रतिबन्ध को चुनौती दी थी और "पूरे रोम में घूमकर प्रेम के सूत्र को ल

बढ़ चलो ए जिंदगी

हर अँधेरे को मिटाकर बढ़ चलो ए जिंदगी आगे बढ़कर ही तुम्हारा पूर्ण स्वप्न हो पायेगा. गर उलझकर ही रहोगी उलझनों में इस कदर, डूब जाओगी भंवर में कुछ न फिर हो पायेगा. आगे बढ़ने से तुम्हारे चल पड़ेंगे काफिले, कोई अवरोध तुमको रोक नहीं पायेगा. तुमसे मिलकर बढ़ चलेंगे संग सबके होसले, जीना तुमको इस तरह से सहज कुछ हो पायेगा. संग लेकर जब चलोगी सबको अपने साथ तुम, चाह कर भी कोई तुनसे दूर ना हो पायेगा. जुड़ सकेंगे पंख उसमे आशा और विश्वास के , ''शालिनी'' का नाम भी पहचान नयी पायेगा.

"प्रकृति हमारी है ही न्यारी "

नित नूतन उल्लास से विकसित,      नित जीवन को करे आल्हादित  ,            नित कलियों को कर प्रस्फुटित ,                   लहलहाती बगिया की क्यारी.  प्रकृति     हमारी     है     ही     न्यारी.   ऋतुराज वसंत का हुआ आगमन,        सरसों से लहलहाया आँगन ,                खिला चमन के पुष्पों का मन,                   और खिल गयी धूप भी प्यारी. प्रकृति      हमारी      है      ही     न्यारी. ऋतुओं में परिवर्तन लाती,          कभी रुलाती कभी हंसाती,                 कभी सभी के संग ये गाती,                        परिवर्तन की करो तैयारी, प्रकृति     हमारी     है    ही   न्यारी.   कभी बैसाखी ,तीज ये लाये,         कभी आम से मन भर जाये,                कभी ये जामुन खूब खिलाये,                       होली की अब आयी बारी, प्रकृति    हमारी     है    ही    न्यारी.                    

व्यवस्था में सुधार होना ही चाहिए...

नित्यानंद जी का एक शेर है- ''उसे जो लिखना होता है वही वह लिखकर रहती है, कलम को  सर कलम होने का बिलकुल डर नहीं होता.''     आज यही बात मेरी लेखनी पर भी लागू होनी चाहिए क्योंकि आज मै इसके माध्यम से कुछ सरकारी व्यवस्थाओं पर ऊँगली उठाने जा रही हूँ जो मेरे दृष्टिकोण से सुधार चाहती है.    बरेली में आई.टी.बी.पी.में ट्रेड मेन की भर्ती शहर ओर अभ्यर्थियों   के लिए जो स्थिति लेकर आयी सभी जानते हैं.२० अभ्यर्थी इस घटना में काल के गाल में समां चुके हैं ओर यदि इस तरह की व्यवस्था ही आगे भी जारी रहती है तो आगे भी ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति होने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता.      इतनी बड़ी संख्या में अभ्यर्थियों को एक दिन ,एक स्थान पर एकत्रित करना ओर फिर उस परीक्षा को स्थगित कर देना प्रशासन के लिए एक सामान्य कार्य हो सकता है किन्तु यह अभ्यर्थियों के लिए सामान्य बात नहीं है क्योंकि अपनी जगह से अपने सभी काम-काज छोड़कर दूर आना और आने पर सब कुछ विफल हो जाना बर्दाश्त के बाहर है.प्रशासन पहले से ही ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं करता कि थोड़े थोड़े अभ्यर्थी बुलाये जाएँ और जो आयें वे अपनी