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नवंबर, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आत्महत्या -परिजनों की हत्या

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आत्महत्या -परिजनों की हत्या          आज आत्महत्या के आंकड़ों में दिन-प्रतिदिन वृद्धि हो रही है .कभी भविष्य को लेकर निराशा ,तो कभी पारिवारिक कलह ,कभी क़र्ज़ चुकाने में असफलता तो कभी कैरियर में इच्छित प्राप्त न होना ,कभी कुछ तो कभी कुछ कारण असंख्य युवक-युवतियों ,गृहस्थों ,किशोर किशोरियों को आत्म हत्या के लिए विवश कर रहे हैं और हाल ये है कि आत्महत्या ही उन्हें करने वालों को समस्या के एक मात्र हल के रूप में दिखाई दे रही है ,शायद उनकी सोच यही रहती है कि इस तरह वे अपनी परेशानियों से अपने परिजनों को मुक्ति दे रहे हैं किन्तु क्या कभी इस ओर कदम बढाने वालों ने सोचा है कि स्वयं आत्महत्या की ओर कदम बढ़ाकर  वे अपने परिजनों की हत्या ही कर रहे हैं ?                  आत्महत्या एक कायरता कही जाती है किन्तु इसे करने वाले शायद अपने को बिलकुल बेचारा मानकर इसे अपनी बहादुरी के रूप में गले लगाते हैं .वे तो यदि उनकी सोच से देखा जाये तो स्वयं को अपनी परेशानियों से मुक्त तो करते ही हैं साथ ही अपने से जुडी अपने परेशानियों से अपने परिजनों को भी मुक्ति दे देते हैं क्योंकि मृत्यु के बाद उन्हें हमारे वेद-पुराणों के अ

जिंदगी की हैसियत मौत की दासी की है .

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    बात न ये दिल्लगी की ,न खलिश की है , जिंदगी की हैसियत मौत की दासी की है . न कुछ लेकर आये हम ,न कुछ लेकर जायेंगें , फिर भी जमा खर्च में देह ज़ाया  की है . पैदा किया किसी ने रहे साथ किसी के , रूहानी संबंधों की डोर हमसे बंधी है . नाते नहीं होते हैं कभी पहले बाद में , खोया इन्हें तो रोने में आँखें तबाह की हैं. मौत के मुहं में समाती रोज़ दुनिया देखते , सोचते इस पर फ़तेह  हमने हासिल की है . जिंदगी गले लगा कर मौत से भागें सभी , मौके -बेमौके ''शालिनी''ने भी कोशिश ये की है .                        शालिनी कौशिक                                  [कौशल ]

नारी के अकेलेपन से पुरुष का अकेलापन ज्यादा घातक

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  अकेलापन एक ज़हर के सामान होता है किन्तु इसे जितना गहरा ज़हर नारी के लिए कहा जाता है उतना गहरा पुरुष के लिए नहीं कहा जाता जबकि जिंदगी  का अकेलापन दोनों के लिए ही बराबर ज़हर का काम करता हैनारी  जहाँ तक घर के बाहर की बात है आज भी लगभग पुरुष वर्ग पर आश्रित है कोई भी लड़की यदि घर से बाहर जाएगी तो उसके साथ आम तौर पर कोई न कोई ज़रूर साथ होगा भले ही वह तीन-चार साल का लड़का ही हो इससे उसकी सुरक्षा की उसके घर के लोगों में और स्वयं भी मन में सुरक्षा की गारंटी होती है और इस तरह से यदि देखा जाये तो नारी के लिए पुरुषों के कारण भी अकेलापन घातक है क्योंकि पुरुष वर्ग नारी को स्वतंत्रता से रहते नहीं देख सकता और यह तो वह सहन ही नहीं कर सकता कि एक नारी पुरुष के सहारे के बगैर कैसे आराम से रह रही है इसलिए वह नारी के लिए अकेलेपन को एक डर का रूप दे देता  है और यदि पुरुषों के लिए अकेलेपन के ज़हर की हम बात करें तो ये नारी के अकेलेपन से ज्यादा खतरनाक है न केवल स्वयं उस पुरुष के लिए बल्कि सम्पूर्ण समाज के लिए क्योंकि ये तो सभी जानते हैं कि ''खाली दिमाग शैतान का घर होता है ''ऐसे में समाज में यदि अटल ब

माँ को कैसे दूं श्रद्धांजली ,

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माँ तुझे सलाम वो चेहरा जो         शक्ति था मेरी , वो आवाज़ जो       थी भरती ऊर्जा मुझमें , वो ऊँगली जो      बढ़ी थी थाम आगे मैं , वो कदम जो     साथ रहते थे हरदम, वो आँखें जो    दिखाती रोशनी मुझको , वो चेहरा    ख़ुशी में मेरी हँसता था , वो चेहरा    दुखों में मेरे रोता था , वो आवाज़    सही बातें  ही बतलाती , वो आवाज़    गलत करने पर धमकाती , वो ऊँगली    बढाती कर्तव्य-पथ पर , वो ऊँगली   भटकने से थी बचाती , वो कदम    निष्कंटक राह बनाते , वो कदम    साथ मेरे बढ़ते जाते , वो आँखें    सदा थी नेह बरसाती , वो आँखें    सदा हित ही मेरा चाहती , मेरे जीवन के हर पहलू    संवारें जिसने बढ़ चढ़कर , चुनौती झेलने का गुर      सिखाया उससे खुद लड़कर , संभलना जीवन में हरदम      उन्होंने मुझको सिखलाया , सभी के काम तुम आना     मदद कर खुद था दिखलाया , वो मेरे सुख थे जो सारे    सभी से नाता गया है छूट , वो मेरी बगिया की माली    जननी गयी हैं मुझसे रूठ , गुणों की खान माँ को मैं     भला कैसे दूं श्रद्धांजली , ह्रदय की वेदना में बंध     कलम आगे न अब चली .            शालिनी कौशिक                 [कौशल ]

कसाब को फाँसी :अफसोसजनक भी सराहनीय भी

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संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत सहित ३९ देशों ने मृत्युदंड समाप्त करने वाले प्रस्ताव के विरोध में मतदान किया है और इसके ठीक एक दिन पश्चात् भारत ने अपने मंतव्य ''कानूनी मामलों के बारे में फैसला लेने का अधिकार ''के प्रति कटिबद्ध होने का सन्देश सम्पूर्ण विश्व को दे दिया है .अजमल आमिर कसाब को फाँसी दे भारत ने आतंकवाद के प्रति अपनी प्रतिरोधक शक्ति का परिचय दिया है और यह सही भी है क्योंकि सम्पूर्ण देशवासियों के लिए सुरक्षा का अहसास आतंकवाद का मुकाबला ऐसे मजबूत संकल्प द्वारा ही दिया जा सकता है अफ़सोस है तो केवल यही कि जहाँ सभ्यता निरंतर विकास की ओर बढ़ रही है वहीँ हमारी युवा शक्ति भटक रही है .                        कसाब को हम पाकिस्तानी कहकर पृथक देश की युवा शक्ति नहीं कह सकते .भले ही डलहौजी की ''फूट डालो शासन करो'' की रणनीति का शिकार बन हमारे देश के दो टुकड़े हुए हों किन्तु भारत -पाक एक हैं ,एक ही पिता ''हिंदुस्तान '' की संतान ,जिनमे भले ही मतभेद हों किन्तु मनभेद कभी नहीं हो सकता .कसाब व् उस जैसे कितने ही युवा भटकी मानसिकता के परिचायक हैं

ऐसे नहीं होगा अपराध का सफाया

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१५ नवम्बर २०१२ उत्तर प्रदेश सरकार ने यहाँ की महिलाओं के लिए एक राहत भरे दिवस के रूप में स्थापित किया यहाँ वूमेन पावर हेल्पलाइन 1090 की शुरुआत कर. इस सेवा के सूत्रधार लखनऊ रेंज के पुलिस उप महानिरीक्षक नवनीत सिकेरा  का कहना है कि  वूमेन पावर लाइन उत्तर प्रदेश पुलिस की एक ऐसी सेवा है जिसका सिद्धांत एक राज्य एक नंबर है .महिलाओं के लिए यह सीधी सेवा है इसमें कोई पुरुष शिकायत दर्ज नहीं करा सकेगा और खास बात ये है कि शिकायत सुनने के लिए महिला पुलिस अधिकारी हैं .ये हेल्प लाइन महिलाओं को जहाँ तक अनुमान है अपराध से छुटकारा दिलाने में कुछ हद तक कामयाब अवश्य रहेगी किन्तु पूरी तरह से मददगर साबित होगी ये कल्पना तक असंभव है और इसका प्रमाण हमारे समाचार पत्र तो देते ही हैं हमारे आस पास की बहुत से घटनाएँ भी इसका पुख्ता साक्ष्य हमें दे जाती हैं   समाचार पत्र तो ऐसी घटनाओं से नित्य भरे हैं जिनमे महिलाओं को अपराध से रु-ब-रु होना पड़ता है .कानून व्यवस्था को सुचारू ढंग से चलाने हेतु जो थाने प्रशासन द्वारा स्थापित किये जाते हैं उनमे महिलाओं के साथ किये गए दुर्व्यवहार की घटना के लिए यदि

इंदिरा प्रियदर्शिनी :भारत का ध्रुवतारा

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इंदिरा प्रियदर्शिनी :भारत का ध्रुवतारा  जब ये शीर्षक मेरे मन में आया तो मन का एक कोना जो सम्पूर्ण विश्व में पुरुष सत्ता के अस्तित्व को महसूस करता है कह उठा कि यह उक्ति  तो किसी पुरुष विभूति को ही प्राप्त हो सकती है  किन्तु तभी आँखों के समक्ष प्रस्तुत हुआ वह व्यक्तित्व जिसने समस्त  विश्व में पुरुष वर्चस्व को अपनी दूरदर्शिता व् सूक्ष्म सूझ बूझ से चुनौती दे सिर झुकाने को विवश किया है .वंश बेल को बढ़ाने ,कुल का नाम रोशन करने आदि न जाने कितने ही अरमानों को पूरा करने के लिए पुत्र की ही कामना की जाती है किन्तु इंदिरा जी ऐसी पुत्री साबित हुई जिनसे न केवल एक परिवार बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र गौरवान्वित अनुभव करता है  और  इसी कारण मेरा मन उन्हें ध्रुवतारा की उपाधि से नवाज़ने का हो गया और मैंने इस पोस्ट का ये शीर्षक बना दिया क्योंकि जैसे संसार के आकाश पर ध्रुवतारा सदा चमकता रहेगा वैसे ही इंदिरा प्रियदर्शिनी  ऐसा  ध्रुवतारा थी जिनकी यशोगाथा से हमारा भारतीय आकाश सदैव दैदीप्यमान  रहेगा।        १९ नवम्बर १९१७ को इलाहाबाद के आनंद भवन में जन्म लेने वाली इंदिरा जी के लिए श्रीमती सरोजनी नायडू जी ने एक तार

तो प्रस्तुत है शिखा कौशिक जी की प्रस्तुति : नादानों मैं हूँ ' भगत सिंह ' दिल में रख लेना याद मेरी ,

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भारत और पाकिस्तान कभी एक थे और एक आम हिन्दुस्तानी के दिल में आज भी वे एक ही स्थान रखते हैं किन्तु सियासी गलियां और बुद्धिजीवी समाज के क्या कहने वह जब देखो इन्हें बाँटने में ही लगा रहता है .भगत सिंह  जिन्हें कम से कम हिंदुस्तान में किसी पहचान की आवश्यकता नहीं और जिनकी कद्रदान हिन्दुस्तानी अवाम  अंतिम सांसों तक रहेगी किन्तु पाकिस्तान की  सरकार शायद इस  शहादत  को नज़रंदाज़ करने में जुटी है और भुला  रही है इसकी महत्ता को जिसके कारण आज दोनों देशों की अवाम खुली हवा में साँस ले रही है .अभी 2 नवम्बर को मैंने डॉ शिखा कौशिक जी के ब्लॉग विचारों का चबूतरा पर जो प्रस्तुति इस  सम्बन्ध में देखी उससे मैं अन्दर तक भावविभोर हो गयी आप सभी के  अवलोकनार्थ उसे यहाँ प्रस्तुत कर रही  हूँ कृपया ध्यान दें और सरकार का ध्यान भी इस ओर दिलाएं ताकि सरकार पाकिस्तान सरकार से इस सम्बन्ध में सही कदम उठाने को कहे .                                    शालिनी कौशिक   तो प्रस्तुत है शिखा कौशिक जी की  प्रस्तुति : नादानों मैं हूँ ' भगत सिंह ' दिल में रख लेना याद मेरी , शुक्रवार, 2 नवम्बर 2012 नादानों मैं हूँ &

बचपन को हम कहाँ ले जा रहे हैं ?

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बचपन को हम कहाँ ले जा रहे हैं ? एक फ़िल्मी गाना इस ओर  हम सभी का ध्यान आकर्षित करने हेतु  पर्याप्त है  - ''बच्चे मन के सच्चे सारे जग की आँख के तारे ,ये वो नन्हें फूल हैं जो भगवान  को लगते प्यारे ,'' लेकिन शायद हम ये नहीं मानते क्योंकि आज जो कुछ भी हम बच्चों को दे रहे हैं वह कहीं से भी ये साबित नहीं करता एक ओर सरकार बालश्रम रोकने हेतु प्रयत्नशील है तो दूसरी ओर हम बच्चों को चोरी छिपे इसमें झोंकने में जुटे हैं.आप स्वयं आये दिन देखते हैं कि बाज़ारों में दुकानों पर ईमानदारी के नाम पर बच्चों को ही नौकर लगाने में दुकानदार तरजीह देते हैं .सड़कों पर ठेलियां ठेलते ,कबाड़ का सामान खरीदने के लिए आवाज़ लगते बच्चे ही नज़र आते हैं .  बच्चे अपने योन शोषण की शिकायत नहीं कर सकते इस लिए बच्चों का योन शोषण तेज़ी से बढ़ रहा है .अभी हाल में ही स्कूल बस ड्राइवर द्वारा नॉएडा में एक बच्ची के साथ ऐसे घटना प्रकाश में आई है और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तो आये दिन समाचार पत्र इन घटनाओं से भरे पड़े हैं .   इसके  साथ ही एक और दुखद  पहलू है जो बच्चों  को लेकर हमारे असंवेदनशील होने का

जरूरी है राजनीति के शर्मनाक दौर की हार

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जरूरी है राजनीति के शर्मनाक दौर की हार               भारतीय राजनीति आज जिस दौर से गुज़र रही है उसे शर्मनाक ही कहना ज्यादा सही होगा .मेरे पूर्व आलेख ''अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे,मोदी की पत्नी क्या मुफ्त की ?"'को पढ़ किसी ने मुझे अंध कॉंग्रेसी मानसिकता का कहा तो किसी ने सभ्यता की हद में रहने को कहा .सबसे पहले तो  मैं ये कहूँगी कि मैं कॉंग्रेसी हूँ किन्तु इसकी अंध भक्त मुझे नहीं कहा जा सकता इस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गाँधी जी व् राहुल गाँधी जी को भले ही कोई कुछ भी कहे किन्तु एक बात तो उन दोनों की प्रशंसनीय है ही कि वे किसी भी राजनेता पर अभद्र व् व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं करते .जो कि इस वक़्त भारतीय राजनीति में आम है .जिस लेख को लेकर मुझे सभ्यता की परिधि में रहने को कहा गया वह आलेख केवल ''शठे शाठ्यं समाचरेत ''पर आधारित है .मोदी जी जब थरूर व् सुनंदा पर व्यक्तिगत आक्षेप करते हैं और अभद्रता से करते हैं तब कोई उन्हें इस सीमा की याद  क्यों नहीं दिलाता और जब उनके मामले में सब चुप रहते हैं तो मुझे कुछ कहने को कैसे आगे बढ़ जाते हैं ?वास्तव में जो जिस भाषा को समझता ह

क्या केजरीवाल का ये तरीका सही है ?

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क्या केजरीवाल का ये तरीका सही है ? अक्सर मन में विचार आता है कि क्या अरविन्द केजरीवाल द्वारा लगातार ढूंढ ढूंढकर भ्रष्ट नेताओं को निशाना बनाना व् आरोपों की झड़ी लगाने का तरीका सही है ?सभी जानते हैं कि राजनीति एक दलदल है और इसमें लगभग सभी नेता गहरे तक समाये हैं .भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए भारतीय राजनीतिज्ञों में से ढूंढकर जो वे आरोपों प्रत्यारोपों द्वारा अपना स्थान बनाना चाह रहे हैं क्या वह हमारे देश से भ्रष्टाचार को हटाने में कारगर साबित हो पायेगा ?सभी जानते हैं कि अधिकांश राजनीतिज्ञ  भ्रष्टाचार में घिरे हैं ऐसे में जहाँ तक मेरा विचार है केजरीवाल ये सही नहीं कर रहे हैं .इस तरह वे अपने व्यक्तित्व को उबाऊ रूप दे रहे हैं धीरे धीरे इस तरह उनके भाषणों से लोगों  को ऊब महसूस होगी और वे हंसी का रूप ले लेंगे .आज अगर  वे सच्चे इरादे से भ्रष्टाचार रुपी बुराई से देश को निजात दिलाना चाहते हैं तो उन्हें अपने को साबित करना होगा  वैसे वे स्वयं को अपनी सिविल सर्विस द्वारा भी साबित कर सकते थे .उदाहरण के लिए ''खेमका '' को ही देखिये जिनकी   20 साल की नौकरी में ४० तबादले हुए और आ

अब आया न ऊंट पहाड़ के नीचे :क्या मोदी की पत्नी मुफ्त की

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अब आया न ऊंट पहाड़ के नीचे .. कमाल है   देश में कोई भी  मुद्दा  जिसमे  कांग्रेसी  फंसते  दिखाई  देते  हैं भाजपाइयों  का मुंह बड़ी तेज़ी से खुलता है और जब अपने नेता और वह  भी जिसे  बढ़ा  चढ़ा  कर  प्रधानमंत्री  पद  पर सजाने  की कोशिशें  जारी हैं पर आरोपों के थपेड़े पहुंचे आरम्भ होते हैं तब पहले कांग्रेसियों को वरीयता दे कहा जाता है की पहले आप  ..........सुनंदा पुष्कर जो की अब शशि थरूर जी की ब्याहता पत्नी हैं पर कटाक्ष करने के मामले में तो मुख़्तार अब्बास नकवी  एकदम बोल गए की  लव गुरु थरूर को लव मिनिस्टर बनाओ: बीजेपी   तब क्यों नहीं कहा की पहले कांग्रेसियों के द्वारा हमारे सामने स्थिति साफ की जाये तभी हम मुहं खोलेंगें अब उनके द्वारा स्थिति सफाई की अपेक्षा क्यों की जा रही है क्या उनकी पत्नी के बारे में अपने मुहं से फूल उगलने पर मोदी जी के द्वारा स्थिति साफ नहीं की जानी चाहिए थी .अब उनकी पत्नी के बारे में जानकारी जो की नवभारत टाइम्स पर प्रकाशित की  gayi है पर एक नज़र डालें :- क्या मोदी वाकई अविवाहित हैं: दिग्विजय यू ट्यूब से ली गई फोटो नवभारतटाइम्स.कॉम  |  Nov 1,