क्यूँ खामखाह में ख़ाला,खारिश किये पड़ी हो ,


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क्यूँ खामखाह में ख़ाला,खारिश किये पड़ी हो ,
खादिम है तेरा खाविंद ,क्यूँ सिर चढ़े पड़ी हो .
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ख़ातून की खातिर जो ,खामोश हर घड़ी में ,
खब्ती हो इस तरह से ,ये लट्ठ लिए पड़ी हो .
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खिज़ाब लगा दिखते,खालू यूँ नौजवाँ से ,
खरखशा जवानी का ,किस्सा लिए पड़ी हो .
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करते हैं खिदमतें वे ,दिन-रात लग तुम्हारी ,
फिर क्यूँ न मुस्कुराने की, जिद किये पड़ी हो .
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करते खुशामदें हैं ,खुतबा पढ़ें तुम्हारी ,
खुशहाली में अपनी क्यूँ,खंजर दिए पड़ी हो .
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खिलवत से दूर रहकर ,खिलक़त को बढ़के देखो ,
क्यूँ खैरियत की अपनी ,खिल्ली किये पड़ी हो .
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ऐसे खाहाँ की खातिर ,रोज़े ये दुनिया रखती ,
पर खामख्याली में तुम ,खिसियाये हुए पड़ी हो .
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खुद-इख़्तियार रखते ,खुसिया बरदार हैं फिर भी ,
खूबी को भूल उनकी ,खटपट किये पड़ी हो .
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क्या जानती नहीं हो ,मजबूरी खुद खसम की ,
क्यूँ सारी दुख्तरों को ,सौतन किये पड़ी हो .
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''शालिनी '' कहे खाला,खालू की कुछ तो सोचो ,
चढ़ते वे कैसे ऊपर ,जब बेंत ले पड़ी हो .
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                             शालिनी कौशिक
                                [WOMAN ABOUT MAN]

             
शब्दार्थ :-खाविंद-पति ,खातून-पत्नी ,खाला-मौसी ,खालू-मौसा खारिश -खुजली ,खुसिया बरदार -सभी तरह की सेवा करके खुश रखने वाला ,खर खशा-व्यर्थ का झगडा ,खाहाँ-चाहने वाला ,खिलवत -एकांत ,खिलक़त-प्रकृति ,खामख्याली -नासमझी

टिप्पणियाँ

रविकर ने कहा…
वाह क्या बात है आदरेया-
सुन्दर प्रस्तुति-
virendra sharma ने कहा…
वाह "क "वर्ग में ख की पुनरावृत्ति और लफ्जों का ज़माव रचना को चार चाँद लगा गया।मायने देकर शब्दों के आपने बड़ा उपकार किया है उर्दू ज़बान की आप बेहतरीन जानकार हैं लगता ही उर्दू आपकी पेट है पालतू लाडली है। ॐ शान्ति

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