ये कहाँ ले आये नरेंद्र मोदी


झूठ की खेती करते हैं मां-बेटे : मोदी
सोनिया की टिप्पणी पर कहा- ‘पापियों’ को अब भगवान भी नहीं बचा सकते
कहीं मुझे चांटे न लगा दें मां-बेटे
फतेहपुर। नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर व्यंग्य करते हुए कहा, ′मां-बेेटे के मन में मेरे लिए काफी गुस्सा भरा है। अगर मैं सामने आ जाऊं तो दोनों मेरा न जाने क्या हश्र करेंगे। शायद मुझे दस-बारह चांटे ही लगा दें।′[अमरउजाला से साभार ]


''कपिल से बड़े कॉमेडियन हैं राहुल ,झूठ की खेती करते हैं माँ-बेटे ,कहीं मुझे चाटें न लगा दें माँ-बेटे ''-राजनीति का यह स्तर कभी नहीं था और न ही भाजपा का ,इस सबकी शुरुआत तबसे हुई जबसे नरेंद्र मोदी नाम की शख्सियत ने गुजरात की राजनीति से केंद्र की राजनीति की तरफ कदम बढ़ाने आरम्भ किये .इस तरह की निकृष्ट भाषा शैली कभी भी राजनीति में प्रयोग नहीं हुई होगी जिस तरह की निकृष्ट भाषा शैली नरेंद्र मोदी अपनी रैलियों में तालियां पिटवाने के लिए लगातार इस्तेमाल किये जा रहे हैं और उसमे कॉमेडी खुद कर रहे हैं और कॉमेडियन राहुल को कह रहे हैं .
   सोनिया गांधी व् राहुल गांधी पर लगातार निशाना लगाते लगाते और उसमे अपने जैसी ही सोच वाले लोगों की तालियां सुनते सुनते आज मोदी अति आत्मविश्वास में हैं और इन तालियों को ही जनता का एकतरफा फैसला कह प्रफुल्लित हुए जा रहे हैं जो कि  किसी नौटंकी में भी ऐसी ही सीटियों व् हू-हा के साथ बजती हैं .वे कहते हैं कि ''सोनिया गांधी व् राहुल -[गौर कीजिये यहाँ मैडम व् शहज़ादा शब्द से परहेज किया नरेंद्र मोदी ने शायद याद आ गया है कि वे जिस राज्य से ताल्लुक रखते हैं वहां आज भी प्रजा होती है और ऐसे में राजा तो वे स्वयं ही हुए और जब वे राजा तो राहुल कैसे शहज़ादे हो सकते हैं और स्वयं को राजा समझकर वे इस ''लोकतंत्रात्मक गणराज्य ''के नागरिक होते हुए भी कुछ भी बोलने के हक़ रखते हैं ] इस बात से क्रोधित हैं कि एक चाय वाला उन्हें चुनाव में ललकार रहा है ,माँ-बेटे में मेरे खिलाफ झूठ बोलने की होड़ लगी है उन्हें बड़ी चिंता है कि पिछले ६० सालों  में इस परिवार को किसी ने नहीं ललकारा और एक चाय वाला सामने खड़ा है .''किस गुमान या ग़लतफ़हमी का शिकार हैं ये नरेंद्र मोदी ,समझ में नहीं आता .गांधी परिवार जिन झंझावातों को झेलकर आज राजनीति में ,भले ही कोई सरकार आये या जाये ,सर्वोच्च पद पर विराजमान है और देश के प्रथम परिवार का हर देशभक्त के मन में स्थान लिए है वे झंझावात तक झेलने इन मोदी के वश में नहीं है .ये तो झंझावात पैदा करने वालों में हैं न कि उन्हें रोकने वालों में .२००२ के गुजरात दंगें इन्हीं के झंझावात थे जहाँ तक इन्हें कानूनी कार्यवाही का सामना करना पड़ा और जनता के आरोपों का सामना करना पड़ा ,अगर ये मान भी लिया जाये कि इनका हाथ उनमे नहीं था तो भी एक मुख्यमंत्री होने के नाते इनका जो कर्तव्य बनता था मोदी ने उनमे से एक भी पूरा नहीं किया, जनता को अपने हमदर्द के रूप में इनका कोई सहारा नहीं मिला ,दंगों में मारे गए कॉंग्रेस के एहसान जाफरी के परिजनों से ये आज तक भी जाकर नहीं मिले और जिस गांधी परिवार पर ये १९८४ के सिख दंगों का दाग लगाते फिर रहे हैं उन्होंने ऐसे दुखद घडी में भी जनता के साथ अपना प्यार और स्नेह बनाये रखा  क्योंकि जिन प्रिय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अकाल मृत्यु का समाचार मिलते ही दिल्ली सहित देश के अनेक भागों में हिंसा भड़क उठी ,चारों ओर नफरत ही नफरत थी -बदले की प्रबल भावना ,लगता था कि ये किसी से रुकेगी नहीं ,तब ही घोषणा हुई कि श्रीमती गांधी के सुपुत्र चिरंजीवी राजीव को भारत का प्रधानमंत्री बनाने का सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया है .प्रधानमंत्री होते ही राजीव जी ने राष्ट्र के नाम पहला प्रसारण किया -बड़े नपे तुले शब्दों में उन्होंने कहा -''वह केवल मेरी ही माँ नहीं ,हम सबकी माँ थी ,हिंसा घृणा व् द्वेष से इंदिरा गांधी की आत्मा को दुःख पहुँचता था -आप शांत रहें और धैर्य से काम लें ,बिलखते हुए रोते  हुए नागरिकों के आंसू थम से गए जादू सा हो गया पूरे राष्ट्र पर -एक ओर इंदिरा जी का पार्थिव शरीर पड़ा हुआ था और दूसरी ओर माँ का लाडला -आंसुओं को थामे हुए ,भारत माँ की सेवा में जुटा था .सारी रात स्वयं दिल में भारी तूफ़ान रोके हुए दिल्ली की बस्तियों में घूम-घूमकर राजीव जी ने दुखी जनता के आंसू पोंछे राजीव जी ने ये सब तब किया जबकि दो सिखों ने ही उनकी माँ के सुरक्षा गार्ड होते हुए इस निंदनीय कृत्य को अंजाम दिया था किन्तु उनके मन में उस समुदाय के प्रति कोई वैर भाव नहीं था कहीं उनके मुंह से ऐसा नहीं निकला कि मेरी माँ को मारने वाले मुझे प्रधानमंत्री बनते देख झूठ की खेती करेंगें या मेरे चाटें मार देंगे  ,वे तो अपने दुःख को भूलकर  जनता को ही अपना परिवार समझकर उसके साथ आ खड़े हुए और आजतक उनका परिवार उसी पथ का अनुसरण कर रहा है सोनिया जी व् प्रियंका ने भी उसी पथ का अनुसरण करते हुए राजीव गांधी के कातिलों को क्षमा प्रदान की है और इनके इसी निश्छल प्रेम के कारण सारा देश एक तरफ और जनता के लिए ये परिवार एक तरफ ही रहता है और यही इनके विरोधियों को फूटी आँख नहीं सुहाता है और वे इनको अपमानित कर ही मदारी का तमाशा करते फिरते हैं .
   ऐसे परिवार को अपमानित कर ये देश की राजनीति में असभ्यता के झंडे गाड़ने में लगे हैं जो अपने प्रिय के मारे जाने पर भी दुश्मनों को माफ़ करने की क्षमता रखते हैं ,जो राहुल गांधी प्रियंका के बच्चों के गाड़ी की साइड लगने पर अपने अधीनस्थ से सभ्यता से आगे से ध्यान रखने को कहते हैं जब कि एक आम आदमी भी ऐसे में मार पिटाई पर उतारू हो जाता है उन्हें ये अपने स्तर पर लाने की कोशिशें कर रहे हैं .इनके अवतरण के बाद से गुजरात के जो हाल हैं वे आज के अमर उजाला में डॉ,जे.एस.बन्दूकवाला के हिमांशु मिश्र द्वारा लिए गए साक्षात्कार में पढ़े जा सकते हैं 

मोदी अमीर बहुसंख्यकों के रॉबिनहुड हैं ः बंदूकवाला
मोदी के पीएम बनने की चर्चा शुरू होते ही मेरे तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। ऐसा शख्स जो मुसलमान तो छोड़िये, गरीब हिंदुओं का भी नहीं है। आपने रॉबिनहुड के बारे में सुना है? जिस रॉबिनहुड को हम जानते हैं वह अमीरों से लूट कर गरीबों में बांट देता था। मगर मोदी, ये तो उल्टे गरीबों से छीन कर अमीरों में बांटते हैं।
क्या मोदी वाकई खतरा हैं?
मोदी नहीं उनकी विचारधारा! जो कि उन्हें आरएसएस और उसके अनुषांगिक संगठनों से विरासत में मिली है। गुजरात धीरे-धीरे हिटलर के दौर का जर्मनी बनता जा रहा है।.........
और फिर मोदी का ये कहना कि ये क्रोधित हैं कि इन्हें ६० सालों से किसी ने नहीं ललकारा ,५६ इंच के सीने वाले इस शख्स को अपने सहयोगियों को ऐसे तो नहीं भूलना चाहिए जबकि वे सारे जहाँ से उनकी पत्नी तक को छिपाकर उनकी मदद कर रहे हों .मोदी को ये याद रहना चाहिए कि इन्हीं की तरह के असभ्य कटाक्ष बाबा रामदेव भी इन पर पूर्व में कर चुके हैं और निरंतर करते ही रहते हैं क्योंकि उन्हें योग भी इतनी प्रसिद्धि का जरिया नहीं दिखा जितनी प्रसिद्धि का जरिया इस परिवार पर बेवजह की कीचड उछालने से मिलती दिखाई दी है और इस परिवार ने उन्हें भी झेला  है और २००४ में इन्हीं की पार्टी को भी जिसे सोनिया जी के विदेशी मूल का मुद्दा अपनी सरकार बनाने का सबसे आसान तरीका नज़र आया था और जिस मुद्दे को जनता ने कूड़ेदान में फेंककर सोनिया जी के पक्ष में फैसला दिया था जिसे सोनिया जी को कभी अपनाना ही नहीं था नहीं तो इनके अनुसार सत्ता की चिंता में क्रोधित सोनिया जी को तब कोई सा भी कानून इस पद को सुशोभित करने से नहीं रोक सकता था और रही राहुल गांधी जी की बात तो वे २००४ से सांसद हैं और सरकार में ही हैं अगर वे चाहते तो कभी भी प्रधानमंत्री पद पर बैठ सकते थे किन्तु उन्होंने पहले देश की समस्याओं के बारे में समझना और देश की जनता के कर्मठ सेवक बनने के रास्ता अपना लिया न कि मोदी की तरह अपने दल के ही प्रधानमंत्री बनने को बैठे कई योग्य नेताओं को दरकिनार कर स्वयं आगे बढ़ आने का रास्ता अपनाया और प्रियंका गांधी ने आकर इनकी ही बातों का मुहंतोड़ जवाब देना क्या शुरू किया तो ये उनके पति राबर्ट वाड्रा को घेर देश को भ्रमित  करने में जुट गए जबकि जो केजरीवाल इस मुद्दे को लेकर आये थे वे ही अब इस मुद्दे को कोई खास तरजीह नहीं दे रहे हैं और यही कह रहे हैं कि भाजपा रोबर्ट वाड्रा के जरिये जनता को भ्रमित करने की कोशिशें कर रही है .
   इन मोदी को पास देश की किसी समस्या का कोई समाधान नहीं है ,देश के विकास के लिए कोई विज़न नहीं .ये गांधी परिवार को ही लक्ष्य मानकर चल रहे हैं और उन्हें किसी भी तरह जनता की नज़र में गिराकर आगे बढ़ने की कोशिशों में लगे  हैं जो कि असंभव है क्योंकि जनता को इससे कोई सरोकार नहीं ''कि रॉबर्ट वाड्रा मॉडल क्या है ,राहुल गांधी बुद्धू-पप्पू हैं ,माँ-बेटे झूठ की खेती करते हैं ,'' जनता को केवल ये चाहिए कि उसकी समस्याओं के समाधान हों उसके पास जीवन में सब आवश्यक सुविधाएँ हों और वह सब हो जो ये मोदी अपने विज्ञापनों में तो दिखाते हैं लेकिन अपने भाषणों  में नहीं कहते .
   आज फैसला हमारे हाथ में है अगर दुर्भाग्य से ये भारत के प्रधानमंत्री बनते हैं तो जनता मोदी से पूर्व के प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह के शासनकाल से भी ज्यादा रोयेगी क्योंकि तब ये होगा -
 ''कि एक वे थे जो कुछ नहीं कहते थे ,
   और एक ये हैं जो चुप नहीं रहते हैं .''
   दोनों ही स्थितियां दुखद हैं और ये विचारना अब देश की जनता को ही है कि देश किन हाथों में सौंपा जाये जिनमे देश और देशवासी दोनों सुरक्षित रह सकें और हमारी मितभाषी मृदुभाषी वसुधैव कुटुंबकम की संकल्पना भी .

शालिनी कौशिक 
   [कौशल ]

टिप्पणियाँ

आदरणीया शालिनी जी, सादर अभिवादन!
आपने विस्तारपूर्वक मोदी जी और उनके सहयोगियों के बडबोलेपन का जिक्र किया है उनकी भाषणों कि निकृष्ट शैली का विश्लेषण किया है ... जनता तो बेवकूफ नहीं है पर भेडचाल की शिकार अवश्य है ... कुछ लोग हवा बनाना जानते हैं और ज्यादातर जनता हवा के बहाव में बहना जानती है ... अब चाहे जो हो अगले पांच सालों के लिए सबको अपना सीना मजबूत रखना ही होगा ...उसके बाद ही समय फिर बदलेगा ... हम सबको आशान्वित रहना चाहिए.... सादर!
भारत की एकमात्र विड़म्बना यह है कि यहाँ कोई ढँग का नेता वर्षोँ से नहीँ हुआ जो जनता को समझे...

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