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मई, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

खादिम है तेरा खाविंद ,क्यूँ सिर चढ़े पड़ी हो .

क्यूँ खामखाह में ख़ाला,खारिश किये पड़ी हो , खादिम है तेरा खाविंद ,क्यूँ सिर चढ़े पड़ी हो . ………………………… ख़ातून की खातिर जो ,खामोश हर घड़ी में , खब्ती हो इस तरह से ,ये लट्ठ लिए पड़ी हो . .................................................. खिज़ाब लगा दिखते,खालू यूँ नौजवाँ से , खरखशा जवानी का ,किस्सा लिए पड़ी हो . .................................................. करते हैं खिदमतें वे ,दिन-रात लग तुम्हारी , फिर क्यूँ न मुस्कुराने की, जिद किये पड़ी हो . .................................................. करते खुशामदें हैं ,खुतबा पढ़ें तुम्हारी , खुशहाली में अपनी क्यूँ,खंजर दिए पड़ी हो . .................................................. खिलवत से दूर रहकर ,खिलक़त को बढ़के देखो , क्यूँ खैरियत की अपनी ,खिल्ली किये पड़ी हो . .................................................. ऐसे खाहाँ की खातिर ,रोज़े ये दुनिया रखती , पर खामख्याली में तुम ,खिसियाये हुए पड़ी हो . .................................................. खुद-इख़्तियार रखते ,खुसिया बरदार हैं फिर भी , खूबी को भूल उनकी

भिक्षावृति पर सख्त कानून की ज़रुरत

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Govt sleeping on Anti-begging Act NEW DELHI: To describe one's determination to do a job, good or bad, the phrase 'come what may' is often used. It is sometimes substituted with "beg, borrow or steal". This expression brackets begging with borrowing money and stealing also. Surely, borrowing is not an offence but stealing is a serious crime and begging or abetting begging is ironically a minor offence. The law enforcement agencies both in Delhi and elsewhere in the country would immediately provide information about the cases registered against thieves and how many of them were convicted. Come begging, no case has been registered under the Bombay Prevention of Begging Act, 1959, which was adopted by Delhi about 45 years ago, in 1960. It does not mean that our cities are free of beggars or hundreds of untraced children for years were not forced to beg by a mafia. Even the statutory 'homes' for beggars set up in the capital are empty. Obviously, th

आज इस दिल को जरा अश्कों से नहलाने दो .

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हरिश्चंद्र ''नाज़'' के ये शब्द आज के एक समाचार पर ध्यान जाते ही मेरे जहन में उभर आये ,शब्द कुछ यूँ थे - ''यूँ गुल खिले हैं बाग़ में ख़ारों के आस-पास , जैसे कि गर्दिशें हों सितारों के आस-पास . रौनक चमन में आ गयी लेकिन न भूलना शायद खिज़ा छुपी हो बहारों के आस-पास .'' और समाचार कुछ यूँ था - ''महंगाई पर काबू पाना सरकार की अहम उपलब्धि -जेटली '' और महंगाई पर काबू पाना ऐसा ही गुल है जो वर्तमान सरकार जैसी खार के पास खिलने की कोशिश में है किन्तु जैसे कि खार में गुल नहीं खिलते ऐसे ही वर्तमान सरकार द्वारा महंगाई पर काबू जैसे गुल खिलाने की आशा ही व्यर्थ है और अरुण जेटली जी को महंगाई काबू में दिख रही है वह महंगाई जो इस वक्त पिछली यू.पी.ए.सरकार की अपेक्षा भी दिनों दिन तरक्की की राहों पर जा रही है .अगर हम अपनी रोज़मर्रा की चीज़ों का ही आकलन करें तो हमें साफ नज़र आता है कि महंगाई की स्थिति क्या है -अरहर की दाल जो इस सरकार से पहले हमें ७२ रूपये किलो मिल रही थी वह अब १०० रूपये किलो से ऊपर जा रही है .सब्जियां जो पहले कम भाव पर मिलती दिख जाती थी अब

बढ़कर गले लगाती मुमताज़ मौत है .

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 दरिया-ए-जिंदगी की मंजिल मौत है , आगाज़-ए-जिंदगी की तकमील मौत है . ............................................................... बाजीगरी इन्सां करे या कर ले बंदगी , मुक़र्रर वक़्त पर मौजूद मौत है . ................................................................. बेवफा है जिंदगी न करना मौहब्बत , रफ्ता-रफ्ता ज़हर का अंजाम मौत है . ............................................................... महबूबा बावफ़ा है दिल के सदा करीब , बढ़कर गले लगाती मुमताज़ मौत है . ................................................................. महफूज़ नहीं इन्सां पहलू में जिंदगी के , मजरूह करे जिंदगी मरहम मौत है . ................................................................. करती नहीं है मसखरी न करती तअस्सुब, मनमौजी जिंदगी का तकब्बुर मौत है . ................................................................ ताज्जुब है फिर भी इन्सां भागे है इसी से , तकलीफ जिंदगी है आराम मौत है . ................................................................. तक़रीर नहीं सुनती न करती त

शत-शत नमन राजीव गांधी जी को

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एक  नमन  राजीव  जी  को  आज उनकी  पुण्यतिथि के  अवसर पर.राजीव जी बचपन से हमारे प्रिय नेता रहे आज भी याद है कि इंदिरा जी के निधन के समय हम सभी कैसे चाह रहे थे कि राजीव जी आयें और प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठ जाएँ क्योंकि ये बच्चों की समझ थी कि जो जल्दी से आकर कुर्सी पर बैठ जायेगा वही प्रधानमंत्री हो जायेगा.तब हमारे दिमाग की क्या कहें वह तो उनके व्यक्तित्व पर ही मोहित था जो एक शायर के शब्दों में यूँ था- लताफत राजीव गाँधी,नफासत राजीव गाँधी , थे सिर से कदम तक एक शराफत राजीव गांधी नज़र आते थे कितने खूबसूरत राजीव गांधी .'' राजीव जी का  जन्म २० अगस्त १९४४ को हुआ था और राजनीति से कोसों दूर रहने वाले राजीव जी अपनी माता श्रीमती इंदिरा जी के  कारण राजनीति में  आये और देश को पंचायत राज और युवा मताधिकार जैसे उपहार उन्होंने दिए .आज  उनकी  पुण्यतिथि के अवसर पर मैं उन्हें याद करने से स्वयं को नही रोक पाई किन्तु जानती हूँ कि राजीव जी भी राजनीति में आने के कारण बोफोर्स जैसे मुद्दे  अपने माथे पर लगाये २१ मई १९९१  को एक आत्मघाती हमले का शिकार होकर हम सभी को छोड़ गए आज भी याद है वह रात जब

भारत में वास्तव में कानून नहीं है .

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  अरुणा रामचंद्र शानबाग ,एक नर्स ,जिस पर हॉस्पिटल के एक सफाई कर्मचारी द्वारा दुष्कर्म की नीयत से बर्बर हमला किया गया जिसके कारण गला घुटने के कारण उसके मस्तिष्क को ऑक्सिजन  की आपूर्ति बंद हो गयी और उसका कार्टेक्स क्षतिग्रस्त हो गया ,ग्रीवा रज्जु में चोट के साथ ही मस्तिष्क नलिकाओं में भी चोट पहुंची और फलस्वरूप एक जिंदगी जिसे न केवल अपने लिए बल्कि इस समाज देश के लिए सेवा के नए आयाम स्थापित करने थे स्वयं सेवा कराने के लिए मुंबई के के.ई.एम्.अस्पताल के बिस्तर पर पसर गयी और ४२ साल तक वहीँ टुकर-टुकर देख कल जिसने अपनी अंतिम साँस ली .पिंकी वीरानी ,जिसने अरुणा की दर्दनाक कहानी अपनी पुस्तक में बयां की ,ने उसकी जिंदगी को संविधान के अनुच्छेद २१ के अंतर्गत जीवन के अधिकार में मिले सम्मान से जीने के हक़ के अनुरूप नहीं माना .और उसके लिए ''इच्छा मृत्यु ''की मांग की ,जिसे सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा ने सिरे से ख़ारिज कर दिया .अपने १४१ पन्नों के फैसले में न्यायालय ने कहा - ''देश में इच्छा मृत्यु पर कोई कानून नहीं है .जब तक

''हिन्दू-मुस्लिम भेद-समझ-समझ का फेर ''

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एक सार्वभौमिक सत्य के बारे में आप सभी जानते ही होंगें कि दूध गाय -भैंस ही देती हैं और जहाँ तक हैं इनका कोई धर्म जाति नहीं होती ,इनमे आपस में होती हो तो पता नहीं किन्तु जहाँ तक इंसान की बात है वह इस सम्बन्ध में  कम से कम मेरी जानकारी के अनुसार तो अनभिज्ञ ही कहा जायेगा . पर आज मेरी यह जानकारी धरी की धरी रह गयी जब मैंने अपने पड़ोस में रहने वाली आंटी जी को पड़ोस की ही दूसरी आंटी जी से बात करते सुना ,वे उनसे दूध के बारे में पूछ रही थी और ये  बता रही थी कि उन्हें अपने यहाँ के एक धार्मिक समारोह के लिए ज्यादा दूध की आवश्यकता है। दूसरी आंटी  के ये कहने पर कि उनका दूधवाला बहुत अच्छा दूध लाता है पर वे फटाक से बोली लाता तो हमारा दूधवाला भी बहुत बढ़िया दूध है पर वह मुसलमान है ना ,......................................................आश्चर्य से हक्की-बक्की रह गयी मैं उनकी इस बात पर कि वे दूधवाले के मजहब से दूध-दूध में भेद कर रही हैं जबकि उन्हें दूध चाहिए था जो या तो गाय देती है या भैंस ,आज तक दूध के मामले में गाय-भैंस का अंतर तो सुना था पर हिन्दू-मुसलमान का अंतर कभी नहीं, मन में विचार आय

''सड़क दुर्घटनाएं -लाइसेंस कुशल चालक को ''

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सड़क दुर्घटनाएं  रोज सैकड़ों ज़िंदगियाँ लील रही हैं कारण खोजे जा रहे  हैं .कहीं वाहनों की अधिकता ,कहीं ट्रेफिक नियमों का पालन न किया जाना आदि कारण बताये जा रहे हैं किन्तु एक कारण जो इस मामले में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है उसे कोई वरीयता नहीं दी जा रही और वह कारण है वाहन चलाने की कुशलता का न होना .आज लगभग  50% वाहन चालक ऐसे हैं जिन्हें वाहन को न तो नियमों के आधार पर मोड़ना आता है और न पार्किंग के लिए खड़ा करना फिर वाहन चलाना तो बहुत दूर की कौड़ी है .कितने ही वाहन चालक ऐसे दिखाई देते हैं जो पीछे की तरफ से आते हुए वाहन को न देखते हुए अपना वाहन बैक करना आरम्भ करते हैं और उसे उससे भिड़ा देते हैं .स्पीड के कितने ही नियम बनाये जाएँ ये उनका पालन नहीं करते ,रोज़ इनके चालान कटते हैं किन्तु ये बार बार उसी गतिविधि को अंजाम देते रहते हैं और इस सबके लिए दोषी कौन है ?दोषी है वाहन चलाने का लाइसेंस देने वाला विभाग आर.टी.ओ. ,जो हर किसी को ये लाइसेंस दे रहा है और सड़कों पर निरंतर दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ाने में सहयोग .लोगों की ज़िंदगी बचाने के लिए इन सड़क दुर्घटनाओं पर त्वरित कार्यवाही की आवश्यकता है औ

good servant but a bad master -सोशल साइट्स

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जनलोकपाल का मुद्दा और जनांदोलन कोई ऐसी नयी बात नहीं थी पहले भी ऐसे बहुत से मुद्दे लेकर जनांदोलन होते रहे  और थोड़ी बहुत असहज परिस्थितियां सरकार के लिए उत्पन्न करते रहे किन्तु यह आंदोलन अन्ना और केजरीवाल की अगुआई में एक ऐसा आंदोलन बना कि सरकार की जड़ें हिला दी कारण था इसका सोशल साइट्स से भी जुड़ा होना और सोशल साइट्स के माध्यम से जनता के एक बहुत बड़े वर्ग की इसमें भागीदारी और इसी का परिणाम रहा दशकों से लटके जनलोकपाल के मुद्दे पर सरकार का सकारात्मक कदम उठाना। रेप ,गैंगरेप रोज़ होते हैं थोड़ी चर्चा का विषय बनते हैं और फिर भुला दिए जाते हैं किन्तु १६ दिसंबर २०१२ की रात को हुआ दामिनी गैंगरेप कांड देश ही नहीं सम्पूर्ण विश्व को हिला गया और इसका कारण भी वही था सोशल साइट्स ,सोशल साइट्स के माध्यम से रातो रात ये खबर सारे विश्व में फ़ैल गयी और इन सोशल साइट्स ने ही जगा दी संवेदना सदियों से सोयी उस दुनिया की जो रेप ,गैंगरेप की दोषी पीड़िता को ही मानते रहे सदा सर्वदा और पहली बार दुनिया उठ खड़ी हुई एक पीड़िता के साथ इस अपराध के खिलाफ उसके लिए न्याय की मांग करने को . महंगाई ,भ्रष्टाचार ,मह