वेलेंटाइन मतलब मीडिया का तेजाबी गुलाब

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''गूंजे कहीं शंख कहीं पे अजान है ,
बाइबिल है ,ग्रन्थ साहब है,गीता का ज्ञान है ,
दुनिया में कहीं और ये मंजर नहीं नसीब ,
दिखलाओ ज़माने को ये हिंदुस्तान है .''
ऐसे हिंदुस्तान में जहाँ आने वाली  पीढ़ी के लिए आदर्शों की स्थापना और प्रेरणा यहाँ के मीडिया का पुनीत उद्देश्य हुआ करता था .स्वतंत्रता संग्राम के समय मीडिया के माध्यम से ही हमारे क्रांतिकारियों ने देश की जनता में क्रांति का बिगुल फूंका था .आज जिस दिशा में कार्य कर रहा  हैं वह कहीं से भी हमारी युवा पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक व् प्रेरक नहीं कहा जा सकता .आज १४ फरवरी वेलेंटाइन डे के नाम से विख्यात है .एक तरफ जहाँ इस दिन को लेकर युवाओं के दिलों की धडकनें तेज़ हो रही हैं वहीँ दूसरी ओर लाठियां और गोलियां भी चल रही हैं और इस काम में बढ़ावा दे  रहा है हमारा मीडिया -आज का मीडिया .
जहाँ एक ओर मीडिया की सुर्खियाँ हुआ करती थी -
''जो भरा नहीं है भावों से बहती जिसमे रसधार नहीं ,
वह ह्रदय नहीं है पत्थर है जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं .''

''पूछा उसने क्या नाम बता ?
आज़ाद !पिता को क्या कहते ?
स्वाधीन पिता का नाम ,और बोलो किस घर में हो रहते ?
कहते हैं जेलखाना जिसको वीरों का घर है
हम उसमे रहने वालें हैं ,उद्देश्य मुक्ति का संघर्ष है .''
आज प्रमुखता दे रहा है -
''यूँ मेरे ख़त का जवाब आया ,
लिफाफे में एक गुलाब आया .''
एक तरफ सत्य का उजाला ,एक तरफ समाज की वास्तविकता ,राजनीति की कालिख सबके सामने लाने  का विश्वास दिलाने वाला मीडिया आज युवाओं को बेच रहा है विदेशी संस्कृति जिसे भारतीय अपसंस्कृति भी कह सकते हैं ,गलत प्रवर्तियाँ भी कह सकते हैं .प्यार जिसके लिए भारतीय संस्कृति में जो भाव विद्यमान है उसे देवल आशीष अपने शब्दों में यूँ व्यक्त करते हैं -
''  प्यार है पवित्र पुंज ,प्यार पुण्य धाम है ,
पुण्य धाम जिसमे कि राधिका है श्याम है ,
श्याम की मुरलिया की ,हर गूँज प्यार है ,
प्यार कर्म प्यार धर्म ,प्यार प्रभु नाम है .''
भारतीय मीडिया द्वारा बिकाऊ श्रेणी में लाया जा रहा है .रोम के संत वेलेंटाइन के नाम पर मनाया जाने वाला यह सप्ताह भारत में समाचार पत्रों द्वारा जोर शोर से प्रचारित किया जा रहा है .७ फरवरी से ही रोज हमारे समाचार पत्र बताते हैं -
''आज से बहेगी गुलाबी बयार ''
''आज रोज़ डे .आज प्रोमिस डे,चोकलेट डे ,प्रपोज डे ,ऐसे करें प्रपोज आदि आदि .''
यही नहीं ज्योतिषी आकलन कर भी बताया जाता है कि किस किस के लिए रोज़ डे अच्छा रहेगा किसके लिए प्रपोज डे, कपडे का रंग कैसा हो और इनके अच्छे रहने के लिए ज्योतिषी उपाय भी बताये जाते हैं जिनके जरिये लड़की के बाप-भाई, समाज के संस्कारों के ठेकेदारों रुपी विपत्तियों  से बचा जा सकता है .कुल मिलाकर  यही कहा जा सकता है कि बाज़ार में बिकने के लिए और विश्व में सर्वाधिक पठनीय ,रेटिंग आदि उपलब्धियां अर्जित करने के लिए मीडिया के ये अंग भारतीय समाज में आवारागर्दी को बढ़ावा दे रहे हैं .ये आज की फ़िल्में हैं जो प्यार के नाम पर वासना का भूत युवाओं के सिर पर चढ़ा रही हैं .ये समाचार पत्र हैं  जो अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए कहीं फेयरवेल समारोह के तो कहीं फ्रेशर पार्टी में लड़के लड़कियों के युगल नृत्यों के चित्र छाप रहे हैं। मीडिया के इन अंगों में हीरोइनों के अश्लील चित्रों का ही असर है कि लड़कियां जो पहले भारतीय  परिधानों में गौरवान्वित महसूस करती थी आज कपडे छोटे करने में खुद को हीरोइन बनाने में [और वह भी फ़िल्मी न कि ऐतिहासिक ] जुटी हैं .ये फ़िल्मी असर ही है कि दिन रात  कभी भी लड़के लड़कियों के जोड़े शहरों में अभद्र आचरण करते घूमते हैं  और ये समाचार पत्रों की ही कारस्तानी है जो वासना ,आकर्षण में डूबे इन जोड़ों को प्रेमी युगल कहकर सम्मानित करता है .ये ऐसे सम्मान का ही असर है कि दामिनी जैसी गैंगरेप की घटनाएँ घट  रही हैं और बढती जा रही हैं .क्योंकि जब सभ्य समाज कहे जाने वाले  ये युवा खुद पर नियंत्रण नहीं रख पा रहे हैं तो जंगली ,गंवार कहे  जाने वाले वे युवा तो पहले ही से नियंत्रण जैसी भावनाओं को जानते ही नहीं ,उनका कहना तो मात्र ये होता है ''-जब तू एक के साथ फिर सकती है तो हमारे साथ क्यों नहीं ,हम ही क्या बुरे ?''ये हमारा मीडिया ही है जो चार बच्चों की माँ को भी ''प्रेमिका '' कहकर संबोधित करता है .क्या नहीं जानता कि ये भारतीय समाज है जहाँ की संस्कृति में लड़कियों को शर्म लाज से सजाया जाता है और लड़कों को बड़ों का  आज्ञा पालन व् आदर करना सिखाया जाता है .यह वह संस्कृति है जहाँ सीता राम को पसंद करते हुए भी माँ गौरी से प्रार्थना करती हैं -
''..........करहूँ चाप गुरुता अति थोरी .''
अर्थात हे माँ धनुष को थोडा हल्का कर दीजिये .''वे अपनी चाहत माँ गौरी की आराधना से पूरी करना चाहती हैं न कि पिता का प्रण  तोड़ राम के साथ घर से भागकर .ऐसे ही राम सीता के प्रति आसक्त होते हुए भी गुरु विश्वामित्र की आज्ञा के पश्चात् ही धनुष को उठाने को आगे बढ़ते हैं-
''.....उठहु राम भंजहु भव चापा ,
मेटहु तात जनक के तापा .''
और पिता दशरथ की आज्ञा की प्राप्ति के पश्चात् ही सीता को वधू के रूप में स्वीकार करते हैं .ये भारतीय संस्कृति ही है जो राम कृष्ण दोनों के भगवान  होने पर भी राम की सर्व-स्वीकार्यता स्थापित करती है उनका मर्यादा पुरुषोत्तम होना और सीता का मर्यादा का पालन करना ही वह गुण है जो सभी पुत्र रूप में राम की और पुत्री रूप में सीता की कामना करते हैं .
आज भारतीय मीडिया अपने सांस्कृतिक स्वरुप को खो रहा हैं और विदेशों के खुले वातावरण को जहाँ संस्कारों के लिए कोई स्थान ही नहीं है यहाँ मान्यता दिलाने का प्रयास कर रहे हैं किन्तु यहाँ ऐसे प्रयास कुचेष्टाएं ही कही जाएँगी क्योंकि भारत में इन्हें कभी भी मान्यता नहीं मिल सकती जो ऐसे प्रयासों को आगे बढ़ अपनाने के फेर में अपनी संस्कृति की उपेक्षा करते हैं उनको डिम्पल मिश्र जैसे अंजाम भुगतने पड़ते हैं .आज मीडिया युवाओं को उकसाकर उन्हें रोज़ डे ,प्रोमिस डे,प्रोपोज डे ,हग डे ,चोकलेट डे जैसे भ्रमों में डालकर  जो कार्य करने को उन्हें आगे बढ़ा रहा है उसे यहाँ की देसी भाषा में ''आवारागर्दी ''कहते हैं और उसका परिणाम शिव सैनिकों की उग्रता के रूप में दुकानों को भुगतना पड़ता है. आज जिस चेहरे में ख़ूबसूरती के चाँद नज़र आते हैं कल को उसे अपने से अलग होने पर तेजाब से झुलसा दिया जाता है और ये लड़की के लिए जीवन भर का अभिशाप बनकर रह जाता है .आज मीडिया के इसी गलत प्रचार का ही परिणाम है कि  लड़कियां गोली का ,तेजाब का शिकार हो रही है ,लड़के अपराध या फिर आत्महत्या की राह पर आगे बढ़ रहे हैं .आज गुलामी का समय नहीं है किन्तु मीडिया का दायित्व आज भी बहुत अधिक है क्योंकि इसका प्रभाव भी बहुत अधिक है .मीडिया लोकतंत्र का एक मजबूत  स्तम्भ है और उसे जानना ही होगा कि हम भले ही कितने अग्रगामी हो जाएँ किन्तु हमारी संस्कृति में भाई भले ही किसी से प्यार कर ले किन्तु अपनी बहन को उस राह पर आगे बढ़ते नहीं देख सकता और ये भी हमारी संस्कृति ही है जो आई ए एस में सर्वोच्च रेंक हासिल करने वाली शेना  अग्रवाल से भी विवाह के सम्बन्ध में माता -पिता की ही सोच को मान्यता दिलाती है .इस संस्कृति के ही कारण हमारे परिवार ,हमारा समाज विश्व में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं विदेशियों को आकर्षित करते हैं और जोड़ते हैं हमें किसी और संस्कृति की नक़ल करने की कोई आवश्यकता ही नही है और इसलिए मेरा भारतीय मीडिया से हाथ जोड़कर निवेदन है कि मीडिया हमें भारतीय ही बने रहने दे विदेशी सोच में ढालने की कोशिश  न करे .क्योंकि हम कितने सक्षम हैं ये हम तो जानते ही हैं मीडिया भी जान ले-
''जब जीरो दिया मेरे भारत ने ,दुनिया को तब गिनती आई ,
तारों की भाषा भारत ने दुनिया को पहले सिखलाई ,
देता न दशमलव भारत तो यूँ चाँद पे जाना मुश्किल था ,
धरती और चाँद की दूरी का अंदाजा लगाना मुश्किल था ,
सभ्यता जहाँ पहले आई पहले जनमी है जहाँ पे कला ,
अपना भारत वो भारत है जिसके पीछे संसार चला ,
संसार चला और आगे बढ़ा यूँ आगे बढ़ा बढ़ता ही गया ,
भगवान् करे ये और बढे ,बढ़ता ही रहे और फूले फले .''
इसलिए मीडिया आज के इस दिन रोम की संस्कृति वेलेंटाइन को पूजने के स्थान पर इसे प्रमुखता देना छोड़े और प्यार के सही अर्थ आज के युवाओं के सामने लाने का प्रयत्न करे ,जिसमें प्यार के मायने वासना नहीं अपितु स्नेह और त्याग हैं , समर्पण और सम्मान हैं , विश्वास और आत्म-बलिदान हैं। इसीलिए तो कवि महोदय भी कह गए हैं -
''वक्त के रंग में यूँ न ढल जिंदगी ,
अब तो अपना इरादा बदल जिंदगी ,
असलियत तेरी खो न जाये कहीं ,
यूँ न कर दूसरों की नक़ल जिंदगी .

शालिनी कौशिक
[कौशल ]

टिप्पणियाँ

देखा जाए तो भारत में मीडिया है ही नहीं, ये दलाल बन हुए हैं। जब तक जनता इनका पूर्ण बहिष्कार नहीं करेंगी तब तक ऐसे ही चलता रहेगा।
radha tiwari( radhegopal) ने कहा…
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (12-02-2018) को "प्यार में महिलाएं पुरुषों से अधिक निडर होती हैं" (चर्चा अंक-2876) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
पैसे और सत्ता में बंट कर रह गया है यह "ब्रह्मास्त्र" ! नहीं तो आज भी एक बाबा हरी चटनी और समोसे से कृपा ना बाँट रहा होता !!
Jyoti khare ने कहा…
सार्थक और स्टीक बात
Sudha Devrani ने कहा…
बहुत सुन्दर, सार्थक और सटीक लेख.....
Rajesh Kumar Rai ने कहा…
सार्थक प्रस्तुति !

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