पीछे से वार करते हैं वे जनाब आली....

झुंझलाके क़त्ल करते हैं वे जनाब आली .

  नुमाइंदगी करते हैं वे जनाब आली ,

जजमान बने फिरते हैं वे जनाब आली .
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देते हैं जख्म हमें रुख बदल-बदल ,
छिड़कते फिर नमक हैं वे जनाब आली .
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मुखालिफों को हक़ नहीं मुहं खोलने का है ,
जटल काफिये उड़ाते हैं वे जनाब आली .
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ज़म्हूर को कहते जो जनावर जूनून में ,
फिर बात से पलटते हैं वे जनाब आली .
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फरेब लिए मुहं से मिलें हाथ जोड़कर ,
पीछे से वार करते हैं वे जनाब आली .
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मैदान-ए-जंग में आते हैं ऐयार बनके ये ,
ठोकर बड़ों के मारते हैं वे जनाब आली .
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जम्हूरियत है दागदार इनसे ही ''शालिनी ''
झुंझलाके क़त्ल करते हैं वे जनाब आली .
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                      शालिनी कौशिक 
                               [कौशल ]

शब्दार्थ -नुमाइंदगी-प्रतिनिधित्व ,जनाब आली -मान्य महोदय ,जजमान-यजमान ,जटल काफिये उड़ाना-बेतुकी व् झूठी  बाते करना ,जम्हूर-जनसमूह ,जम्हूरियत-लोकतंत्र .

टिप्पणियाँ

Nitish Tiwary ने कहा…
शानदार प्रस्तुति।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
iwillrocknow.com
Book River Press ने कहा…
https://www.blogger.com/profile/04130609634674211033
अमित निश्छल ने कहा…
बहुत ख़ूब। अच्छी रचना।
Meena sharma ने कहा…
फरेब और जालसाजी को बेनकाब करती उत्कृष्ट रचना।

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