महासंतोषी क़स्बा कांधला [शामली ]
Kandhla
महासंतोषी क़स्बा कांधला [शामली ]हिन्दू मुस्लिम एकता की मिसाल ,बागों की भूमि ,देश के सभी बड़े शहरों में नाम कमाने वाली प्रतिभाओं की जन्मस्थली कांधला ,ऐसा नही कि केवल इतनी सी बातों के लिए ही प्रशंसा के योग्य है और भी बहुत सी ऐसी बातें हैं जिनके लिए यह क़स्बा तारीफ के योग्य है .
हमारे यहाँ एक प्रसिद्ध उक्ति है -
''संतोष परम सुखं .''
और यह भी कि -
''जब आवे संतोष धन सब धन धूरी सामान .''
और यही संतोष धन इस कस्बे के प्रत्येक नागरिक में कूट कूट कर भरा है और एक तरफ जहाँ आज सम्पूर्ण विश्व विकास पाने को लालायित है ,इस कस्बे का विकास जैसे शब्द से कोई सरोकार ही नहीं है .यहाँ के नागरिक तो मात्र अपने बच्चों के नाम ही विकास रखकर अपने को विकास पथगामी समझ संतोष कर लेते हैं .
बिजली आधुनिकता की होड़ में आगे बढ़ने के लिए ,विकसित होने के लिए आज प्रथम आवश्यकता का रूप ग्रहण कर चुकी है .यहाँ के नागरिकों के लिए कोई मायने नहीं रखती .यहाँ कुछ वर्ष पूर्व बिजली के लिए यहाँ के बहुसंख्यक ,क्रांतिकारी कहे जा सकने वाले इस्लाम धर्म के नागरिकों द्वारा एक आन्दोलन किया गया किन्तु कुछ उदंडता दिखाने के कारण जुलुस में शामिल लोगों को विद्युत विभाग ने ऐसा कानूनी फेर में उलझाया कि अब बिजली चाहे आये या न आये .दो घंटे आये एक घंटे आये कोई बोलने वाला नहीं है यहाँ के लोगों में संतोष इतना ज्यादा है कि जेनरेटर व् इनवर्टर दोनों की व्यवस्था कर ली है और शेष हाथ का पंखा तो है ही .बिजली आये या न आये बिल समय से दोड़ कर जमा कराये जाते हैं .
दूसरी विशेषता यह कि शिक्षा के क्षेत्र में यहाँ का बहुत नाम है गंगादास जी जैसे आई.ए.एस .यहाँ से हुए हैं ,स्वामी सानंद जैसे महापुरुष कानपूर आई.आई.टी के प्रोफ़ेसर डॉ.गुरुदास जी यहीं के हैं .प्रदेश में जब गिने चुने महिला महाविद्यालय थे तब से यहाँ १९६९ से राजकीय महिला महाविद्यालय है .लड़कों के लिए दो इंटर कॉलेज हैं लड़कियों के लिए राजकीय बालिका इंटर कॉलेज ,पर संतोष की सीमाओं में रहने वाला यह क़स्बा ,जो चल रहा है उसी पर चलता जाता है .लड़कियों के लिए इंटर कॉलेज में साइंस स्ट्रीम में पढाई की व्यवस्था थी ख़त्म हो गयी ,तो हो जाये कोई बात नहीं हमारी लड़कियां इतनी होशियार ही कहाँ हैं ..राजकीय महिला महाविद्यालय आर्ट्स स्ट्रीम में तो पूर्ण शिक्षा व्यवस्था वाला है नहीं १९९० में यहाँ एम्.ए.की व्यवस्था हुई दो विषय में गृह विज्ञान व् अर्थशास्त्र में बी.ए. में मात्र सात विषय अब जिसे पढने हो तो वह ये ही पढ़ ले नहीं तो घर बैठ ले पर देखिये संतोष कितना है यहाँ यहाँ कि लड़कियां चाहे बचपन से लेकर आज तक इन विषयों की ए.बी.सी.डी. भी नहीं जानती हों इनमे पढाई कर रही हैं और यही नहीं इसमें तो व्यवस्था पूरी है नहीं उसपर यहाँ साइंस स्ट्रीम में प्रवेश आरम्भ कर दिए गए शिक्षा की व्यवस्था नही और यहाँ के लोगों का संतोष लड़कियों का प्रवेश भी करा दिया और परिणाम लगभग लड़कियां फेल .
और लड़के उनके लिए तो और भी बुरा हाल उनकी डिग्री के लिए यहाँ कोई व्यवस्था नही यहाँ के लोगों का कहना लड़के इतना पढ़ते ही कहाँ हैं और वैसे भी किसी को पढना होगा तो बाहर जाकर पढ़ लेगा हम अपनी जमीन इस तुच्छ कार्य हेतु नहीं देंगे भले ही पिक्चर हाल बनवा लेंगे और वैसे भी लडको को इन टोटकों की ज़रुरत नहीं उनकी शादियाँ तो वैसे भी उनके पीछे फिर कर लड़की वाला करता है ये दिक्कत तो लड़कियों के साथ है और इसलिए यहाँ लड़कियों की पढाई की व्यवस्था तो हमने कर ली है .
तीसरी आवश्यकता सफाई ,सफाई में भगवान बसते हैं मानते सब हैं किन्तु अगर वहां के सफाई कर्मचारी किसी के घर के आगे कूड़ा डालना शुरू कर दें तो उन्हें कोई कुछ नहीं कहेगा क्योंकि सबको उनसे बनाये रखनी है चाहे अपने मुहं पर कपडा रखकर साँस बंदकर घर से अन्दर बाहर निकलना बढ़ना पड़े तब भी नगर पालिका द्वारा कूड़ा उठाने का इंतजार किया जायेगा जो कि कभी दो घंटे कभी दो दिन भी हो सकता है पर कोई कुछ नहीं कहेगा और उसपर यदि ये अगर किसी प्रभावशाली व्यक्ति के घर के सामने हो रहा है तो सारी जिम्मेदारी उसकी ही बन जाती है यहाँ के अन्य लोगों पर कोई फर्क नहीं पड़ता वे उसकी ही प्रतिक्रिया व् कार्यवाही का इंतजार करते हैं और कूड़े के पास भले ही अपना घर हो दुकान हो उसके प्रति कोई उपेक्षा नहीं रखते बल्कि उसे गले लगाते हुए वहीँ कुर्सी डालकर बैठ जाते हैं .
यही नहीं अपने बच्चे खेलते हों जनता के आवागमन का मुख्य रास्ता हो अपनी गाड़ियाँ खड़ी रहती हो तब भी यदि बिजली का खम्बा गिरने वाला हो तो अपनी समझ से उससे बचकर निकलते रहेंगे नगर पालिका में जाकर कोई इसके सम्बन्ध में कुछ नहीं कहेगा .
कस्बे में इतना संतोष है कि सामने किसी का मर्डर हो जाये ,कोई छेड़खानी हो जाये ,तेजाब की घटना हो जाये तो बस माहौल ख़राब हो रहा है कहकर कर्तव्य की इतिश्री हो जाती है ..
प्रतियोगी परीक्षाओं के ज़माने में यहाँ प्रतियोगिता के फार्म तक नहीं मिलते फिर उनसे सम्बंधित किताबों के बारे में कोई सोच भी कैसे सकता है .विद्यार्थी परीक्षाओं को मॉडल पेपर से ही प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर लेते हैं .प्रतिभाशाली शख्सियतों का जमावड़ा है कांधला
.संतोष की ऐसी मिसाल व् उपलब्धियां शायद ही विश्व में कहीं मिलेंगी .कहीं और अगर पुलिस की लापरवाही के चलते कोई घटना घटित होती है तो वहां पुलिस को जनता आड़े हाथों लेती है किन्तु यहाँ शायद ही कोई पुलिसवाला होगा जो आकर जाना चाहे कारण यहाँ पुलिस के सिपाही की भी अपने महानिदेशक से ज्यादा इज्ज़त है उनसे हाथ मिलाने को यहाँ लोग रोज नयी समितियां बनाते हैं और अच्छा पैसा खर्चकर अध्यक्ष बनते हैं ताकि जाकर उन्हें अपना परिचय एक अध्यक्ष के रूप में दे सकें भले ही सम्बंधित पुलिसवाला निलंबन की प्रक्रिया के अधीन हो .पड़ोस में कोई क़त्ल हो जाये तो पुलिस भले ही बहुत देर से आई हो उसे आदरपूर्वक अपने घर में बैठकर चाय समोसे खिलाते हैं ताकि पुलिसवाले पर भी यहाँ का संतोष असर कर जाये और वह हादसे को अपनी लापरवाही मान दुखी न हो बल्कि इसे ईश्वर की मर्जी मान कभी आगे बढ़ने का यत्न ही न करे .
आसपास के कस्बे कैराना ,शामली प्रगति में इससे कोसों आगे निकल गए हैं कैराना न्याय व्यवस्था में जिला जज के स्तर तक पहुँच चुका है तो शामली जिला ही बन चुका है और कांधला आज तक तहसील भी नहीं बना पर इसका कोई अफ़सोस ही नहीं यहाँ के नागरिकों को इसके लिए यहाँ कभी कोई आन्दोलन भी नहीं हुआ
यहाँ केवल जनता में एक चाह है और वह है किसी भी तरह यहाँ की नगरपालिका में घुसने की.जैसे कहा जाता है कि ''मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक '' वैसे ही कान्धले वालों की दौड़ नगरपालिका तक .बस किसी भी तरह यहाँ नगरपालिका के चेयरमेन या सभासद बन जाओ और खूब धन कमाओ .नाम की कोई इच्छा यहाँ किसी को नहीं है और प्रशासन से इन्हें इतनी आज़ादी कि क्या कहने .सभासदों को नल लगाने को मिले तो लगा दिए गए सड़कों पर दस दस कदम पर भले ही वहां सभी घरों में टंकी हों ,पहले से नल लगे हों यहाँ तक कि सभासद में इतना संतोष कि सड़क पर जगह न मिली तो जनता के लिए अपने घर के दरवाजे खोल दिए नल अपने घर में लगा लिए जनता वहीँ से पानी ले ले .
राजमार्गों पर ज्यादा ट्रेफिक के मार्गों पर लगने वाले सोलर लाईट के खम्बे घरों से भरे इलाके में लगवाकर यहाँ के नागरिकों को संतोष का पुरुस्कार यहाँ की नगरपालिका ने दिया है जबकि इन जगहों पर साधारण ट्यूब भी अच्छी रौशनी देती है और जनता ने भी इस संतोष पुरुस्कार का जवाब अपने संतोष से दिया है कुछ न कहकर ,रात में अपने सोने के लिए पर्दों का इस्तेमाल कर क्योंकि यहाँ पावर को कानून से भी ऊँचा दर्जा प्राप्त है और उसके हर कार्य को स्वीकार जाता है .
संतोष के मामले में कांधला क़स्बा गिनीज़ बुक में नाम दर्ज करने योग्य है किन्तु उसमे इतना संतोष है कि क्या कहने .वह इसके लिए भी नहीं कहता .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
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