#जागो रे आम आदमी
![चित्र](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhd9a3cpduSff90VCaLcD3Q0wv09p1hVroWC0nhKS5mlUHUaIs44AgjcyHmLCBmqdXOoljxAfLqRGvbTV3t_xUZZJkxW0hKShh1tuyEZmEEmiuylQz06w9K4-NdVtworatFQUirMxP8XsiG/s1600/Z.jpg)
किसी शायर ने कहा है - ''कौन कहता है आसमाँ में सुराख़ हो नहीं सकता , एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों .'' भारतवर्ष सर्वदा से ऐसी क्रांतियों की भूमि रहा है जिन्होंने हमेशा ''असतो मा सद्गमय ,तमसो मा ज्योतिर्गमय ,मृत्योर्मामृतं गमय''का ही सन्देश दिया है और क्रांति कभी स्वयं नहीं होती सदैव क्रांति का कारक भले ही कोई रहे पर दूत हमेशा आम आदमी ही होता है क्योंकि जिस तरह से लावा ज्वालामुखी के फटने पर ही उत्पन्न होता है वैसे ही क्रांति का श्रीगणेश भी आम आदमी के ह्रदय में उबलते क्रोध के फटने से ही होता है . डेढ़ सौ वर्षों की गुलामी हमारे भारतवर्ष ने झेली और अंग्रेजों के अत्याचारों को सहा किन्तु अंग्रेजों को हमारे क्रांतिकारियों के सामने हमेशा मुंह की खानी पड़ी .हमारे देश के महान क्रन्तिकारी चंद्रशेखर आजाद को गिरफ्तार करने के बावजूद वे उन्हें तोड़ नहीं पाये .उनकी वीरता अंग्रेजों के सामने भी अपने मुखर अंदाज में थी - ''पूछा उसने क्या नाम बता -आजाद , पिता को क्या कहते -स्वाधीन, पिता का नाम - और बोलो किस घर में हो रहते ? कहते हैं जेलखान