खुदा की कुदरत.......


तमन्ना जिसमे होती है कभी अपनों से मिलने की
रूकावट लाख भी हों राहें उसको मिल ही जाती हैं ,
खिसक जाये भले धरती ,गिरे सर पे आसमाँ भी
खुदा की कुदरत मिल्लत के कभी आड़े न आती है .
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फ़िक्र जब होती अपनों की समय तब निकले कैसे भी
दिखे जब वे सलामत हाल तसल्ली दिल को आती है ,
दिखावा तब नहीं होता प्यार जब होता अपनों में
मुकाबिल कोई भी मुश्किल रोक न इनको पाती है .
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मुकद्दर साथ है उनके मुक़द्दस ख्याल रखते जो
नहीं मायूसी की छाया राह में आने पाती है ,
मुकम्मल है वही सम्बन्ध मुहब्बत नींव है जिसकी
महक ऐसे ही रिश्तों की सदा ये सदियाँ गाती हैं .
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खोलती है अपनी आँखें जनम लेते ही नन्ही जान
फ़ौज वह नातेदारों की सहमकर देखे जाती है,
गोद माँ की ही देती है सुखद एहसास वो उसको
जिसे पाकर अनजानों में सुकूँ से वो सो पाती है .
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नहीं माँ से बड़ा नाता मिला इस दुनिया में हमको
महीनों कोख में रखकर हमें दुनिया में लाती है ,
जिए औलाद की खातिर ,मरे औलाद की खातिर
मुसलसल कायनात शिद्दत से माँ के नग़मे गाती है .
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जहाँ में माँ का नाता ही बिना मतलब जो देता साथ
कभी न माँ की आँखों पर लोभ की बदली छाती है ,
भले ही दीवारें ऊँची खड़ी हों उसकी राहों में
कभी औलाद से मिलना न उसका रोक पाती हैं .
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''शालिनी ''ने यहाँ देखे तमाम नाते रिश्तेदार
बिना मतलब किसी को ना किसी की याद आती है ,
एक ये माँ ही होती है करे महसूस दर्द-ए-दिल
इधर हो मिलने की हसरत उधर हाज़िर हो जाती है .
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शालिनी कौशिक
       [कौशल ]





टिप्पणियाँ

Ritu asooja rishikesh ने कहा…
Shalini ji likhti to aap achcha hain heen
aap kaise hain ,maine aapko kabhi dekha to nahi fir shayad kismat kabhi mila de .
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "ट्रेन में पढ़ी जाने वाली किताबें “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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