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यही कामना हों प्रफुल्लित आओ मनाएं हर क्षण को HAPPY NEW YEAR -2015

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अमरावती सी अर्णवनेमी पुलकित करती है मन मन को , अरुणाभ रवि उदित हुए हैं खड़े सभी हैं हम वंदन को . अलबेली ये शीत लहर है संग तुहिन को लेकर  आये  , घिर घिर कर अर्नोद छा रहे कंपित करने सबके तन को. मिलजुल कर जब किया अलाव  गर्मी आई अर्दली बन , अलका बनकर ये शीतलता  छेड़े जाकर कोमल तृण को . आकंपित हुआ है जीवन फिर भी आतुर उत्सव को , यही कामना हों प्रफुल्लित आओ मनाएं हर क्षण को . पायें उन्नति हर पग चलकर खुशियाँ मिलें झोली भरकर , शुभकामना देती ''शालिनी''मंगलकारी हो जन जन को . शब्दार्थ :अमरावती -स्वर्ग ,इन्द्रनगरी ,अरुणिमा -लालिमा ,अरुणोदय-उषाकाल ,अर्दली -चपरासी ,अर्नोद -बादल ,तुहिन -हिम ,बर्फ ,अर्नवनेमी -पृथ्वी शालिनी कौशिक [कौशल]   

मेहसाना पोलिस व् प्रधानमंत्री मोदी प्रशंसा के हक़दार

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भारत वर्ष में सत्ता सभी ओर हावी है किन्तु कानून आज भी सत्ता से ऊपर है और ये दिखाई दिया है एक बार फिर जब मेहसाना पोलिस ने प्रधानमंत्री की पत्नी जशोदा बेन द्वारा मांगी गयी जानकारी को इसलिए देने से मना कर दिया कि यह जानकारी स्थानीय अन्वेषण ब्यूरो से सम्बंधित है और यह सूचना के अधिकार अधिनियम में छूट प्राप्त है .    भारत में राजनीतिज्ञ अपनी बात ऊपर रखते है और बड़े से बड़ा अधिकारी भी उनके इस दबाव के सामने नतमस्तक हो जाता है क्योंकि उसकी नौकरी खतरे में पड़ जाती है इसलिए ऐसे में वह अधिकारी और वह राजनीतिज्ञ सम्मान के अधिकारी होते हैं जो अपनी नौकरी की चिंता नहीं करते और कानून के अनुसार ही कार्य करते हैं और वे राजनीतिज्ञ भी जो अपनी बात के काटने पर कानून के आगे अपने अहम को नहीं लाते और इसीलिए किरण बेदी और श्रीमती इंदिरा गांधी दोनों ही सम्मान की अधिकारी हुई थी जब किरण बेदी ने इंदिरा गांधी की गाड़ी के गलत पार्किंग पर उनकी गाड़ी का चालान किया था और इंदिरा गांधी ने भी उन्हें उनके सही काम के लिए शाबासी दी थी ऐसे ही अब मेहसाना पोलिस सम्मान की पात्र है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी जिनकी पत्नी के

कायरता है पुरुष की समझे बहादुरी है ,

झुलसाई ज़िन्दगी ही तेजाब फैंककर , दिखलाई हिम्मतें ही तेजाब फैंककर . अरमान जब हवस के पूरे न हो सके , तडपाई  दिल्लगी से तेजाब फैंककर . ज़ागीर है ये मेरी, मेरा ही दिल जलाये , ठुकराई मिल्कियत से तेजाब फैंककर . मेरी नहीं बनेगी फिर क्यूं बने किसी की, सिखलाई बेवफाई तेजाब फैंककर . चेहरा है चाँद तेरा ले दाग भी उसी से , दिलवाई निकाई ही तेजाब फैंककर .  देखा है प्यार मेरा अब नफरतों को देखो , झलकाई मर्दानगी तेजाब फैंककर .  शैतान का दिल टूटे तो आये क़यामत , निपटाई हैवानगी तेजाब फैंककर .  कायरता है पुरुष की समझे बहादुरी है , छलकाई बेबसी ही तेजाब फैंककर .  औरत न चीज़ कोई डर जाएगी न ऐसे , घबराई जवानी पर तेजाब फैंककर . उसकी भी हसरतें हैं ,उसमे भी दिलावरी , धमकाई बेसुधी ही तेजाब फैंककर .  चट्टान की मानिंद ही है रु-ब-रु-वो तेरे , गरमाई ''शालिनी'' भी तेजाब फैंककर .        शालिनी कौशिक              [कौशल]  शब्दार्थ  :ज़ागीर -पुरुस्कार स्वरुप राजाओं महाराजाओं द्वारा दी गयी ज़मीन ,मिल्कियत-ज़मींदारी ,निपटाई -झगडा ख़त्म करना ,निकाई-खूबसूरती

क्या चौधरी चरण सिंह को बस नमन काफी है ?

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पंडित जवाहर लाल नेहरू जी का जन्मदिन आता है और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा जोर -शोर से मनाया जाता है - ''Today we mark the 125th birth anniversary of our first Prime Minister Pandit Jawaharlal Nehru. My tributes to him. We remember Pandit Nehru's efforts during the freedom struggle and his role as the first Prime Minister of India," PM Modi tweeted from Brisbane, where he will attend a G 20 summit. श्रीमती इंदिरा गांधी जी का जन्मदिन आता है और नरेंद्र मोदी जी द्वारा उतनी ही श्रद्धा से मनाया जाता है "I join my fellow countrymen & women in remembering our former PM Smt. Indira Gandhi on her birth anniversary. My tributes," tweeted Modi, who is on a visit to Fiji. जितनी श्रद्धा से वे २५ दिसंबर को पूर्व भाजपाई प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्मदिन मनाने चले हैं PM Modi's decision to mark Atal Bihari Vajpayee's birthday as 'Good Governance Day' most suitable: LK Advani किन्तु इस बीच में चौधरी चरण सिंह को

मीडिया दोगला क्यों हैं ?

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''जिधर देखता हूँ उधर तू ही तू है ,    न तेरी सी रंगत न तेरी सी बू है .'' आज हर तरफ मीडिया की ही धूम है .जिधर देखो उधर मीडिया के साथ जुड़ने के लिए लोगों का ताँता लगा हुआ है .मीडिया को वैसे भी हमारे लोकतंत्र में चौथे स्तम्भ का दर्जा प्राप्त है और अभी हाल में संपन्न चुनावों में दिए गए एग्जिट पोल भी मीडिया की सफल भूमिका की तरफदारी करते हुए ही दिखाई देते हैं. युवाओं में एक होड़ सी मची है इससे जुड़ने की उन्हें लगता है कि इससे जुड़ते ही हम एक शक्तिशाली वर्ग से जुड़ जायेंगे और उनकी यह सोच गलत भी नहीं है क्योंकि फिलवक्त ऐसी ही स्थिति नज़र आ रही है मीडिया ही उभर रहा है ,मीडिया ही गिरा रहा है .मीडिया चाहे तो केजरीवाल जनता पर राज करें और न चाहे तो चंदे के लिए उन्हें अपना मफलर तक दांव पे लगाने को मजबूर कर दें .   ऐसी मजबूत स्थिति वाला यह स्तम्भ अपनी कार्यप्रणाली में दोहरी भूमिका क्यों निभाता है यह समझ से परे है .आज के समाचार पत्रों में दो समाचार मीडिया की इसी कार्यप्रणाली की गवाही दे रहे हैं -    एक समाचार गुंटूर से है जिसमे किसी लेक्चरर पर तेजाब फेंका गया है और जिसमे केवल

पाकिस्तान आग लगा -भारत बुझाएगा .

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Hafiz Saeed, Musharraf blame India for Peshawar carnage NEW DELHI: A video has emerged that purportedly shows Lashkar-e-Taiba chief and 26/11 mastermind Hafiz Mohammad Saeed blaming India for the carnage carried out by the Pakistani Taliban in an army-run school in Peshawar on Tuesday. He said it was a conspiracy by Prime Minister Narendra Modi's government against Pakistan. The video also showed Saeed threatening India with "revenge" for the Peshawar massacre.  Pervez Musharraf, former Pakistani military dictator and president, has also blamed India for the killing of 132 schoolchildren and 9 teachers in Peshawar on Tuesday. Talking to CNN-IBN, Musharraf said, "Taliban's commander was supported by Afghanistan and India to carry out terrorist attack in Pakistan."     '' दूसरों के वास्ते मरना ही जिसका काम है,      उसके सिर पर देखिये तो क़त्ल का इल्ज़ाम है .'' सारी दुनिया में अपनी भलमनसाहत का डंका बजवाने वाले भारत ने जब अपने घर में ही आ

अधिवक्ताओं से डरो सरकारों .

पिछले 1 महीने से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अधिवक्तागण हाईकोर्ट बेंच की स्थापना की मांग को लेकर एक बार फिर से संघर्षरत हैं और ऐसा लगता है कि हड़ताल दिनों-दिन बढ़ती जा रही है और सरकार की तरफ से अधिवक्ताओं की हड़ताल को लेकर कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाया जा रहा है जिसे देखते हुए कहा जा सके कि सरकार जनता के हित  को लेकर संजीदा है .बार बार इस तरह की हड़ताल और लगातार शनिवार को चली आ रही इसी मांग को लेकर हड़ताल का औचित्य ही अब समझ से बाहर हो गया है क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश जिस स्थिति में है उसे एक स्वतंत्र राज्य के रूप में होना चाहिए और उसका सभी कुछ अपना होना चाहिए .  पश्चिमी यू.पी.उत्तर प्रदेश का सबसे समृद्ध क्षेत्र है .चीनी उद्योग ,सूती वस्त्र उद्योग ,वनस्पति घी उद्योग ,चमड़ा उद्योग आदि आदि में अपनी पूरी धाक रखते हुए कृषि क्षेत्र में यह उत्तर प्रदेश सरकार को सर्वाधिक राजस्व प्रदान करता है .इसके साथ ही अपराध के क्षेत्र में भी यह विश्व में अपना दबदबा रखता है .यहाँ का जिला मुजफ्फरनगर तो बीबीसी पर भी अपराध के क्षेत्र में ऊँचा नाम किये है और जिला गाजियाबाद के नाम से तो अभी हाल ही में एक फिल्म

ये तन्हाई ......संजीदगी सिखाती है.

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ये जिंदगी तन्हाई को साथ लाती है,    हमें कुछ करने के काबिल बनाती  है. सच है मिलना जुलना बहुत ज़रूरी है,      पर ये तन्हाई ही हमें जीना  सिखाती है. यूँ तो तन्हाई भरे शबो-रोज़,           वीरान कर देते हैं जिंदगी. उमरे-रफ्ता में ये तन्हाई ही ,         अपने गिरेबाँ में झांकना सिखाती है. मौतबर शख्स हमें मिलता नहीं,      ये यकीं हर किसी पर होता नहीं. ये तन्हाई की ही सलाहियत है,      जो सीरत को संजीदगी सिखाती है.         शालिनी कौशिक  http://shalinikaushik2.blogspot.com/

मोदी सरकार :जीने का अधिकार दे मरने का नहीं!

धारा 309 -भारतीय दंड संहिता ,एक ऐसी धारा जो अपराध सफल होने को दण्डित न करके अपराध की असफलता को दण्डित करती है .यह धारा कहती है-         '' जो कोई आत्महत्या करने का प्रयत्न करेगा और उस अपराध को करने के लिए कोई कार्य करेगा ,वह सादा कारावास से ,जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से ,या दोनों से दण्डित किया जायेगा .''   और इस धारा की यही प्रकृति हमेशा से विवादास्पद रही है और इसीलिए उच्चतम न्यायालय ने पी.रथिनम् नागभूषण पटनायिक बनाम भारत संघ ए .आई .आर .१९९४ एस.सी.१८४४  के वाद में दिए गए अपने ऐतिहासिक निर्णय में दंड विधि का मानवीयकरण करते हुए अभिकथन किया है कि-   ''व्यक्ति को मरने का अधिकार प्राप्त है .'' इस वाद में दिए गए निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने इसे संविधान के अनुच्छेद २१ के अंतर्गत व्यक्ति को प्राप्त वैयक्तिक स्वतंत्रता का अतिक्रमण मानते हुए इस धारा को दंड विधि से विलोपित किये जाने को कहा .विद्वान न्यायाधीशों ने धारा ३०९ के प्रावधानों को क्रूरतापूर्ण एवं अनुचित बताते हुए कहा कि इसके परिणामस्वरुप व्यक्ति को दोहरा दंड भुगतना पड़ता है .प्

जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें सोनिया गांधी जी .

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''कैंची से चिरागों की लौ काटने वालों ,सूरज की तपिश को रोक नहीं सकते ,  तुम फूल को चुटकी से मसल सकते हो ,पर फूल की खुशबू समेट नहीं सकते .''       सोनिया गांधी जी भारतीय राजनीति के लिए  फूल के समान हैं जिसकी खुशबू को उनके विरोधी भरसक प्रयत्नों के बावजूद भी खत्म नहीं कर सकते .इसीलिए वे इन्हें कभी विदेशी कह हमले करते हैं तो कभी इनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि को लेकर इन्हें देश के दुश्मनों की श्रेणी में लाने की कोशिश करते हैं जबकि सोनिया जी का व्यक्तित्व इन सभी आरोपों को ठीक वैसे ही ठेंगा दिखा देता है जैसे कि सूरज के चमकते ही अँधेरे को सूर्य का प्रकाश ठेंगा दिखाता है .     सोनिया जी का पूर्व जीवन क्या रहा है इसके बारे में आप सभी उनकी विकिपीडिया पर मौजूद जानकारी से इस बारे में जान सकते हैं - Early life Sonia Gandhi's birthplace, 31, Contrada Maini (Maini street), Lusiana , Italy (the house on the right) She was born to Stefano and Paola Maino in Contrada Màini ("Maini quarter/district"), at  Lusiana , [13] [14]  a little village 30 km from  Vicenza  

कंछल नहीं कानून का वस्त्रहरण किया वकीलों ने .

''लखनऊ में व्यापारी नेता कंछल को वकीलों ने पीटा ,उनके कपडे फाडे और उन्हें मुर्गा बनाया ''आज के समाचार पत्रों में यह समाचार प्रमुखता से छाया रहा .सीधे तौर पर यह मामला कानून के साथ खिलवाड़ है और यह खिलवाड़ कानून के रखवालों द्वारा ही की गयी है इसलिए यह और भी ज्यादा निंदा का विषय है और देखा जाये तो यह एक ऐसा कार्य है जिसके लिए आज वकीलों की संख्या में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है क्योंकि एक तबका हमारे देश में ऐसा भी है जो इस व्यवसाय से मात्र जुड़ ही इसलिए रहा है कि इससे व्यक्ति को '' ऑथोरिटी ''मिलती है और जो ऑथोरिटी वे इससे चाहते हैं वह साफ़  तौर पर ऐसी घटनाओं को अंजाम देकर वे दिखा ही देते हैं .अगर वकीलों द्वारा इसी तरह से कानून को अपने हाथ में लेकर आपराधिक  कार्यवाहियों को अंजाम दिया जाता रहा तो कानून को इस  सम्बन्ध में कठोर रवैया अख्तियार करते हुए वकीलों के समूह में जुड़ने से पहले ही बहुत सारी बाध्यताएं भी जोड़नी होंगी ताकि बाद में इनकी डिग्री या पंजीकरण पर रोक तक की स्थिति आने ही न पाये और अपने को कानून का बहुत बड़ा अधिकारी मानने वाले ये अपने कार्यों को करने

''पता है ६ दिसंबर करीब है ''

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''पानी की तरह बहता है सड़कों पे रात-दिन , इंसां के खून की कोई कीमत नहीं रही .''       'इरफ़ान कामिल 'का लिखा यह शेर साध्वी निरंजन ज्योति के दिल्ली में जनसभा के दौरान किये गए कथन में समाये उनके आशय को साबित करने हेतु पर्याप्त  है .खाद्य एवं प्रसंस्करण राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति के अमर्यादित बोल संसद के दोनों सदनों में कोहराम मचाते हैं और राजनीतिक कार्यप्रणाली के रूप में विपक्ष् उन पर कार्यवाही चाहता है ,उनका इस्तीफा चाहता है और उन पर एफ.आई.आर. दर्ज़ करने की अपेक्षा रखता है और सत्ता वही पुराने ढंग में घुटने टेके खड़ी रहती है . अपने मंत्री के माफ़ी मांगने को आधार बना उनका बचाव करती है जबकि साध्वी निरंजन ज्योति ने जो कुछ कहा वह सामान्य नहीं था .भारतीय कानून की दृष्टि में अपराध था .वे दिल्ली की एक जनसभा के दौरान लोगों को ''रामजादे-हरामजादे में से एक को चुनने को कहती हैं ''   वे कहती हैं -''कि दिल्ली विधानसभा चुनावों में मतदाताओं को तय करना है कि वह रामजादों की सरकार बनायेंगें या हरामजादों की .''राम के नाम पर ६ दिसंबर १९९२ क