मीडिया दोगला क्यों हैं ?


''जिधर देखता हूँ उधर तू ही तू है ,
   न तेरी सी रंगत न तेरी सी बू है .''
आज हर तरफ मीडिया की ही धूम है .जिधर देखो उधर मीडिया के साथ जुड़ने के लिए लोगों का ताँता लगा हुआ है .मीडिया को वैसे भी हमारे लोकतंत्र में चौथे स्तम्भ का दर्जा प्राप्त है और अभी हाल में संपन्न चुनावों में दिए गए एग्जिट पोल भी मीडिया की सफल भूमिका की तरफदारी करते हुए ही दिखाई देते हैं. युवाओं में एक होड़ सी मची है इससे जुड़ने की उन्हें लगता है कि इससे जुड़ते ही हम एक शक्तिशाली वर्ग से जुड़ जायेंगे और उनकी यह सोच गलत भी नहीं है क्योंकि फिलवक्त ऐसी ही स्थिति नज़र आ रही है मीडिया ही उभर रहा है ,मीडिया ही गिरा रहा है .मीडिया चाहे तो केजरीवाल जनता पर राज करें और न चाहे तो चंदे के लिए उन्हें अपना मफलर तक दांव पे लगाने को मजबूर कर दें .
केजरीवाल ने चंदा जुटाने के लिए दांव पर लगाया मफलर


  ऐसी मजबूत स्थिति वाला यह स्तम्भ अपनी कार्यप्रणाली में दोहरी भूमिका क्यों निभाता है यह समझ से परे है .आज के समाचार पत्रों में दो समाचार मीडिया की इसी कार्यप्रणाली की गवाही दे रहे हैं -
   एक समाचार गुंटूर से है जिसमे किसी लेक्चरर पर तेजाब फेंका गया है और जिसमे केवल शक के आधार पर ही तेजाब फेंकने वाली के रूप में एक छात्रा का नाम भी प्रकाशित कर दिया गया है जबकि जिसने तेजाब फेंका है वह बुर्के में था अभी यह भी पूर्णरूपेण खुलासा नहीं हुआ कि वह आदमी था या औरत क्योंकि किसी ने बुर्के के अंदर झांककर थोड़े ही देखा था .
   और एक समाचार मुज़फ्फरनगर से है जिसमे एक दंपत्ति सड़क पर आकर खुलेआम लड़ा और मामला पुलिस में भी पहुँच गया उन प्रेम विवाह वालों को शादी के चार साल बाद एक बेटे के होने के बावजूद सड़क पर अपने विवाह की धज्जियाँ उड़ाते शर्म नहीं आई  किन्तु सच के पैरोकार इन मीडिया वालों को इतनी शर्म आई कि उनका नाम नहीं दिया जबकि यहाँ सब कुछ खुलेआम था .
    पहले भी मीडिया ऐसा करता आया है और आज भी कर रहा है कर क्यों रहा है यह समझ में नहीं आता कि आखिर जहाँ पर घटना को अंजाम देने वाले पक्षों के नामों के खुलासों पर न्यायालय द्वारा कोई रोक नहीं लगायी गयी है वहां वह नामों का खुलासा क्यों नहीं करता ?और इस तरह से वह गलत तत्वों से डरकर जो रिपोर्टिंग कर रहा है क्या उसे स्वतंत्र व् निर्भीक पत्रकारिता की श्रेणी में स्वयं भी रख सकता है ? गुंटूर वाले मामले में अभी मीडिया द्वारा किसी का भी नाम आरोपी की श्रेणी में लिया जाना गलत है क्योंकि वह मात्र शक है औरवह सही हो भी सकता है और नहीं भी ,और जहाँ सब कुछ खुला है वहां पर नाम आदि छुपाना मीडिया की स्वतंत्र व् निर्भीक पत्रकारिता को शक के घेरे में ले आता है जो कि सही नहीं है मीडिया को अपना रवैया इस सम्बन्ध में सही करना ही होगा और सत्य को सामने लाते हुए मात्र शक को सामने लाने से बचना होगा .
   शालिनी कौशिक
      [कौशल ]

टिप्पणियाँ

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (22-12-2014) को "कौन सी दस्तक" (चर्चा-1835) पर भी होगी।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
कविता रावत ने कहा…
मीडिया को ख़बरों में बने रहना जो है ..टी वी सीरियल के तरह चलते चलते रहो ..देखने वालों को भी आदत हो जाती है देखने की .... .
सवाल सटीक है लेकिन जवाब कौन दें यह चिंतन का बिंदु है ..
Moti lal ने कहा…
अच्छा लिखा है मेरा भी देखे http://gyankablog.blogspot.com/
Asha Lata Saxena ने कहा…
बहुत सत्य बयानी की है |

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