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हरियाली तीज -झूला झूलने की परंपरा पुनर्जीवित हो.

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            श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तीज तिथि 18 अगस्त से आरंभ होकर 19 अगस्त को रहने वाली है ऐसे में हरियाली तीज को लेकर अपना बचपन याद आना स्वाभाविक है. बचपन में विद्यालय का इस दिन अवकाश रहता था और हम सभी सहपाठी छात्राएं नए नए वस्त्र पहनकर और अपनी तरफ से पूरा श्रंगार कर एक टोली बनाकर निकल एक दूसरे के घर जाती थी, झूला झूलती थी, घेवर खाती थी और तीज का त्योहार हँस खेलकर मनाती थी.         हर‌ियाली तीज का उत्सव श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। यह उत्सव महिलाओं का उत्सव है। सावन में जब सम्पूर्ण प्रकृति हरी ओढ़नी से आच्छादित होती है उस अवसर पर महिलाओं के मन मयूर नृत्य करने लगते हैं। वृक्ष की शाखाओं में झूले पड़ जाते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसे कजली तीज के रूप में मनाते हैं। सुहागन स्त्रियों के लिए यह व्रत बहुत महत्व रखता है। आस्था, उमंग, सौंदर्य और प्रेम का यह उत्सव शिव-पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। चारों ओर हरियाली होने के कारण इसे हरियाली तीज कहते हैं। इस अवसर पर महिलाएं झूला झूलती हैं, लोकगीत गाती हैं और आनन्द मनाती हैं। हरियाली तीज का उत्

योगी आदित्यनाथ जी कैराना में स्थापित करें जनपद न्यायालय शामली

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         2011 में 28 सितंबर को शामली जिले का सृजन किया गया. तब उसमें केवल शामली और कैराना तहसील शामिल थी. इससे पहले शामली और कैराना तहसील मुजफ्फरनगर जनपद के अंतर्गत आती थी. कुछ समय बाद शामली जिले में ऊन तहसील बनने के बाद अब शामली जिले के अंतर्गत तीन तहसील कार्यरत हैं. 2018 के अगस्त तक शामली जिले का कानूनी कार्य मुजफ्फरनगर जिले के अंतर्गत ही कार्यान्वित रहा किन्तु अगस्त 2018 में शामली जिले की कोर्ट शामली जिले में जगह का चयन न हो पाने के कारण कैराना में आ गई और इसे नाम दिया गया -" जिला एवं सत्र न्यायालय शामली स्थित कैराना. "         2018 से अब तक मतलब अगस्त 2023 तक शामली जिले के मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर दूर जिला जज की कोर्ट के लिए जगह का चयन हो जाने के बाद शासन द्वारा 51 एकड़ भूमि जिला न्यायालय कार्यालय और आवासीय भवनों के लिए आवंटित की गयी थी, जिसमें चाहरदीवारी के निर्माण के लिए 4 करोड़ की धन राशि अवमुक्त की गई थी जिससे अब तक केवल बाउंड्रीवाल का ही निर्माण हो पाया है. उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा जिला न्यायालय कार्यालय और आवासीय भवनों के निर्माण के लिए 295 करोड़ रुपये का ए

बंदर और उत्तर प्रदेश

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    आज उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा चर्चाओं में अगर कोई शब्द है तो वह है " विकास", जो कि सत्ता पक्ष की नजरों में बहुत ज्यादा हो रहा है और विपक्ष की नजरों में गायब हो गया है किन्तु जो सच्चाई आम जनता के सामने है, जिस भयावह सच को उत्तर प्रदेश की जनता भुगत रही है, वह यह है कि घर के अंदर, घर के बाहर, मन्दिर, मस्जिद, कार्यस्थल, न्यायालय - कचहरी परिसर, सडकें, बिजली के खंबे, पानी की टंकियां, खुले घास के मैदान, वाहनों के पार्किंग स्थल आदि आदि क्या क्या कहा जाए, सभी बन्दरों के परिवार - खानदान से आतंकित हैं और इनके खौफ में कोई अपनी जिंदगी से हाथ धो रहा है तो कोई अपने हाथ पैर से तो कोई अपने बच्चों या बूढे माँ बाप से, किन्तु आश्चर्य इस बात का है कि जनता के हृदय पर विराजमान सरकार के दिल पर तो क्या असर करेगी, उसके कानों पर जूँ तक नहीं रेंग रही है.          जबसे इस धरती पर जन्म लिया, बंदरों की बहुत बड़ी संख्या का सामना किया है. घर के ऊंचे ऊंचे जीनों से बन्दरों से बचने के लिए छलांग तक लगाई है. मम्मी को दो दो बार, एक बार रात में छत पर सोते समय और एक बार रसोई से बाहर आते समय बन्दरों ने काटा है,