हरियाली तीज -झूला झूलने की परंपरा पुनर्जीवित हो.
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तीज तिथि 18 अगस्त से आरंभ होकर 19 अगस्त को रहने वाली है ऐसे में हरियाली तीज को लेकर अपना बचपन याद आना स्वाभाविक है. बचपन में विद्यालय का इस दिन अवकाश रहता था और हम सभी सहपाठी छात्राएं नए नए वस्त्र पहनकर और अपनी तरफ से पूरा श्रंगार कर एक टोली बनाकर निकल एक दूसरे के घर जाती थी, झूला झूलती थी, घेवर खाती थी और तीज का त्योहार हँस खेलकर मनाती थी.
हरियाली तीज का उत्सव श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। यह उत्सव महिलाओं का उत्सव है। सावन में जब सम्पूर्ण प्रकृति हरी ओढ़नी से आच्छादित होती है उस अवसर पर महिलाओं के मन मयूर नृत्य करने लगते हैं। वृक्ष की शाखाओं में झूले पड़ जाते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसे कजली तीज के रूप में मनाते हैं। सुहागन स्त्रियों के लिए यह व्रत बहुत महत्व रखता है। आस्था, उमंग, सौंदर्य और प्रेम का यह उत्सव शिव-पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। चारों ओर हरियाली होने के कारण इसे हरियाली तीज कहते हैं। इस अवसर पर महिलाएं झूला झूलती हैं, लोकगीत गाती हैं और आनन्द मनाती हैं। हरियाली तीज का उत्सव भारत के अनेक भागों में मनाया जाता है , परन्तु हरियाणा, चण्डीगढ़, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुरू और ब्रज आँचल में विशेषकर इसका अधिक महत्त्व है।
हरियाली तीज के अवसर से पहले बहुत से मिष्ठान और पकवान बनाये जाते हैं जो विवाहित पुत्री के घर सिंधारे के रूप मेें दिये जाते हैं। यह पकवान फिर पूरे श्रावण माह में खाये जाते हैं। तीज पर विशेष रूप से पकवान भगवान उमा-शंकर को भोग में चढ़ाये जाते हैं। भगवान शिव को प्रिय खीर और मालपुऐं बनाये जाते हैं। पश्चिमी यू पी में घेवर व्यंजन विशेष रूप से बनाया जाता है। लंबे समय तक चलने वाले व्यंजन जैसे गुलगुले, शक्करपारे, सेवियाँ, मण्डे आदि भी पकाये जाते हैं। हरियाणा में सुहाली व्यंजन भी बनाया जाता है।
इस दिन महिलायें अपने हाथों, कलाइयों और पैरों आदि पर विभिन्न कलात्मक रीति से मेंहदी रचाती हैं। इसलिए हम इसे मेहंदी पर्व भी कह सकते हैं। इस दिन सुहागिन महिलायों द्वारा मेहँदी रचाने के पश्चात् अपने कुल की वृद्ध महिलाओं से आशीर्वाद लेने की भी एक परम्परा है।
ऐसा कहा जाता है कि इस दिन माता पार्वती सैकड़ों वर्षों की साधना के पश्चात् भगवान् शिव से मिली थीं। यह भी कहा जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए 107 बार जन्म लिया फिर भी माता को पति के रूप में शिव प्राप्त न हो सके। 108 वीं बार माता पार्वती ने जब जन्म लिया तब श्रावण मास की शुक्ल पक्ष तृतीया को भगवान शिव पति रूप में प्राप्त हो सके। तभी से इस व्रत का प्रारम्भ हुआ। इस अवसर पर जो सुहागन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके शिव -पार्वती की पूजा करती हैं उनका सुहाग लम्बी अवधि तक बना रहता है। साथ ही देवी पार्वती के कहने पर शिव जी ने आशीर्वाद दिया कि जो भी कुंवारी कन्या इस व्रत को रखेगी और शिव पार्वती की पूजा करेगी उनके विवाह में आने वाली बाधाएं दूर होंगी साथ ही योग्य वर की प्राप्ति होगी। सुहागन स्त्रियों को इस व्रत से सौभाग्य की प्राप्ति होगी और लंबे समय तक पति के साथ वैवाहिक जीवन का सुख प्राप्त करेगी। इसलिए कुंवारी और सुहागन दोनों ही इस व्रत का रखती हैं।
सनातन धर्म के ज्योतिष शास्त्र के अनुसार श्रवण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरियाली तीज मनाई जाती है. इस दिन महिलाएं निर्जला तीज का व्रत रख कर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना करती है. मान्यता है कि हरियाली तीज पर व्रत रखने वाली महिलाओं के पति की उम्र लंबी होती है और वो सदा सुहागन रहती हैं. हरियाली तीज का व्रत रखने वाली कुंवारी कन्याओं को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है.
सावन के महीने में आने वाली हरियाली तीज इस बार 19 अगस्त, 2023 को मनाई जाएगी. इस दिन महिलाएं और कुंवारी लड़कियां निर्जला व्रत रख कर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करेंगी. इस व्रत को रखने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उन पर माता पार्वती भगवान शिव की विशेष कृपा बनी रहती है.
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस वर्ष सावन के महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि की शुरुआत 18 अगस्त 2023 को रात 8:01 बजे से होगी और 19 अगस्त 2023 को रात 10:19 पर समाप्त होगी. इसीलिए इस बार हरियाली तीज 19 अगस्त, 2023 को मनाई जाएगी. उन्होंने कहा कि हरियाली तीज के दिन महिलाओं को ब्रह्म मुहुर्त में उठ कर स्नान करने के बाद चौकी पर पीला वस्त्र बिछा कर भगवान शिव और मां पार्वती की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें और भांग, बेलपत्र, चावल, दूर्वा घास, चंदन, गाय का दूध, गंगाजल, दही, मिश्री, पंचामृत, शहद, सुपारी, जटा नारियल, जनेऊ और शमी पत्र पूजा में रखें. मां पार्वती को सुहाग का सामान चूड़ी, साड़ी, सिंदूर और बिंदी अर्पित करें और हरियाली तीज की कथा सुनें.
सनातन धर्म के प्रकांड पंडित आचार्य पंडित अरुणेश मिश्रा ने बताया कि शिव पुराण में बताया गया है कि माता पार्वती ने भगवान शिव के लिए हरियाली तीज का निर्जला व्रत रखा था, जिसके बाद भगवान शिव से उनका विवाह हुआ था. इसीलिए कहा जाता है कि जो कुंवारी कन्या हरियाली तीज का व्रत विधि विधान से करती हैं उसे सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है. जबकि, जो सुहागन महिला इस व्रत को करती है उसके पति की आयु लंबी होती है. उन्होंने कहा कि हरियाली तीज में इन तीन बातों का विशेष महत्व रखें.
व्रत की पूजा और अनुष्ठान
हरियाली तीज के व्रत के दिन सुहागिन महिलाएं और कुंवारी कन्याएं सुबह सबसे पहले स्नान करने के बाद विधि विधान से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें . फिर अगले दिन अपने व्रत का पारण करें . कहीं कहीं पर यह व्रत निर्जला रखा जाता है जबकि पश्चिमी यू पी में इसे अन्य व्रतों की ही तरह रखकर सुहागिनों द्वारा थाली में बायना निकालकर अपनी सास को देने के बाद एक समय भोजन ग्रहण किया जाता है और सास द्वारा अगले दिन बहू को साड़ी, चूडिय़ां, मिष्ठान आदि उपहार स्वरुप देकर थाली को वापस दिया जाता है.
हरे रंग की वस्तुओं से श्रंगार
हरियाली तीज सुहाग का त्योहार है. सावन में हरियाली तीज आने से इसका महत्व दोगुना हो जाता है. भगवान शिव को हरा रंग अति प्रिय है इसीलिए इस दिन महिलाएं हरी साड़ी, हरी मेहंदी, हरी चूड़ियों के साथ सोलह श्रृंगार कर के पूजा-अर्चना करती हैं.
झूले का महत्व
हरियाली तीज के अवसर पर झूला झूलने की परंपरा है. इस दिन महिलाएं झूला पेड़ पर डाल कर झूला झूलती हैं. भगवान शिव और माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए लोक गीत गाती हैं.
आज जैसे जैसे समाज आधुनिकीकरण की ओर बढ़ा है, हरियाली तीज की प्राचीन परंपराओं में भी परिवर्तन आया है. आज प्रकृति का दोहन इसके लिए जिम्मेदार कहा जा सकता है. पेड़ों पर झूले डालकर झूला झूलने की परंपरा लगभग लुप्त ही होती जा रही है बल्कि इसकी जगह अब आधुनिक नारियों द्वारा " तीज क्वीन" जैसी परम्परा की नींव डालकर भारतीय संस्कृति को आधुनिकता का चोला ओढ़ाने की कोशिश की जा रही है.
ऐसे में, वर्तमान बीजेपी की सरकार उत्तर प्रदेश में आशा की किरण कही जा सकती है. प्राचीन परंपराओं को उभार कर आधुनिक भारतीय समाज में फिर से धार्मिक रीति रिवाज के बीज बोये जा रहे हैं जिनके सुखद परिणाम भी सामने आ रहे हैं और ऐसे में, माननीय मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी से विनम्र निवेदन है कि वे हिंदू धर्म के इस पवित्र हरियाली तीज के त्यौहार की परम्परागत रीतियों को भी उभारने के लिए प्रयत्न करें और फिर से श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को श्रद्धा और उल्लास पूर्वक मनाए जाने के साथ साथ ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में झूला झूलने की परंपरा को भी पुनर्जीवित करें जिस पर फिर से महिलाएं और छोटी बच्चियां " आया तीज का त्योहार" गाते-झूलते नजर आ सकें.
शालिनी कौशिक एडवोकेट
कैराना (शामली)
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