मेरे लहू में है ,
कहने की नहीं हसरत ,मेरे लहू में है , सहने की नहीं हिम्मत ,मेरे लहू में है , खंजर लिए खड़ा है ,मेरा ही भाई मुझ पर , जीने की नहीं उल्फत ,मेरे लहू में है . ................................................................................... खाते थे रोटी संग-संग ,फाके भी संग किये थे , मुश्किल की हर घडी से ,हम साथ ही लड़े थे , अब वक़्त दूसरा है ,मक़सूम दिल हुआ है , मिलने की नहीं उल्फत ,मेरे लहू में है . ................................................................. सौंपी थी मैंने जिसके ,हाथों में रहनुमाई , अब आया वही बढ़कर ,है करने को तबाही , मुस्कान की जगह अब ,मुर्दादिली है छाई , हमले की न महारत ,मेरे लहू में है , ........................................................ वो पास खड़े होकर ,यूँ मारते हैं पत्थर , सिर पर नहीं ये चोटें ,आके लगे हैं दिल पर , इंसानियत के टुकड़े, वे बढ़के कर रहे हैं , झुकने की न मुरौवत ,मेरे लहू में है , ............................................................ बर्बाद कर रहे ये ,सदियों का भाईचारा , इनके लिए है केवल ,पैगाम ये हमारा , मिल्लत के द