बनोगी उसकी ही कठपुतली
माथे ऊपर हाथ वो धरकर बैठी पत्थर सी होकर जीवन अब ये कैसे चलेगा चले गए जब पिया छोड़कर .......................................... बापू ने पैदा होते ही झाड़ू-पोंछा हाथ थमाया माँ ने चूल्हा-चौका दे दिया चकला बेलन हाथ थामकर . ...................................... पढ़ना चाहा पाठशाला में बाबा जी से कहकर देखा बापू ने जब आँख तरेरी माँ ने डांट दिया धमकाकर . ........................................ आठ बरस की होते मुझको विदा किया बैठाकर डोली तबसे था बस एक सहारा मेरे पिया मेरे हमजोली . ...................................... उनके बच्चे की माता थी उनके घर की चौकीदार सारा जीवन अपना देकर मिला न एक भी खेवनहार . .......................................... आज गए वो मुझे छोड़कर घर-गृहस्थी कहीं और ज़माने बच्चों का भी लगा कहीं मन मुझको सारे बोझ ही मानें . .............................................. व्यथा कहूं क्या इस जीवन की जिम्मेदारी है ये खुद की मर्द के हाथ में दी जब डोरी बनोगी उसकी ही कठपुतली . ............................................... शालिनी कौशिक [क...