क्या ऐसे ही होती है ईद मुबारक ?
क्या ऐसे ही होती है ईद मुबारक ? पहले कुछ समाचार दैनिक जागरण से साभार रोजे का असल मकसद स्वार्थ से मुक्ति है
रमजान रहमतों का माह है। हजरत अबू हुरैरा ने पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से हदीस उद्धृत की है। जिसका भावार्थ यह है कि उन्होंने पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुना है कि जब रमजान शुरू होता है तो जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं। जहन्नम के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और शैतानों को बांध दिया जाता है। (पुस्तक सही बुखारी पृष्ठ 255) जन्नत के द... और पढ़ें »
फितरा निकाले बिन अधूरा है रोजा
रमजान खत्म होने में कुछ समय बाकी है, रोजेदारों के घरों में ईद की तैयारी शुरू हो चुकी है। रोजेदारों में ईद आने की खुशियां हैं और रमजान खत्म होने की मायूसी। बचे समय में रोजेदार दान-पुण्य और अल्लाह की इबादत में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। मस्जिदों में नमाजियों की संख्या बढ़ रही है। हर कोई कुरान शरीफ का पा... और पढ़ें »
ईद-उल-फित्र: मानवता का त्योहार
मानवता का संदेश देने वाला ईद-उल-फित्र का त्योहार सभी को समान समझने और गरीबों को खुशियां देने के लिए हमें प्रेरित करता है.. ईद-उल-फित्र बहुत-सी खुशियों का संग्रह है। मान्यता के अनुसार, रमजान के पवित्र माह में जो लोग अपने सद्व्यवहार और नेकी-भलाई की राह पर चलते हुए रोजा के दौर... और पढ़ें »
Updated on: Thu, 08 Aug 2013 12:14 PM (IST)
ईद: खुदा से मोहब्बत के इजहार का जरिया
ईद उल-अजहा सचाई पर कुर्बान होने की नीयत करने और खुदा से मोहब्बत के इजहार का जरिया है। इस मौके पर लोग खुदा से अपने लगाव और सचाई की लगन का खुलकर एलान करते हैं। यह त्यौहार बंदों को हर आजमाइश पर खरा उतरने की प्रेरणा देता है। जामिया मिलिया इस्लामिया के इस्लामी अध्ययन विभाग के प्रोफेसर जुनैद हारिस कहते हैं, ईद उल-अजहा क... और पढ़ें »
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किन्तु आज ये आस्था कुछ डगमगा रही है और इसका साफ असर आज की परिस्थितयों में दिखाई दे रहा है और वह है इस समुदाय का भौतिकवाद की ओर इस कदर आकर्षित होना कि भौतिकवाद आस्था से ऊपर स्थान बनाता लगता है .रमजान के आरम्भ होते ही बाज़ारों में इस कदर चहल पहल दिखाई देती है कि मन करता है कि अपना एक महीने का सामान पहले ही खरीदकर रख लिया जाये और यह चहलपहल विशेषकर चप्पलों -जूतों की दुकान पर व् श्रृंगार के सामान की दुकान पर ही मुख्यतया होती है .जानकारी की तो पता चलता है कि चप्पलों के प्रति इनका प्रेम कुछ ज्यादा ही होता है और अपने हाथ में पैसे आयें या कोई भी आयोजन हो चाहे अपने पास चप्पलों से भरी अलमारी हो पर सभी को जयललिता और मायावती जी की तरह नयी चप्पल ज़रूर खरीदनी हैं .इसके साथ ही पर्स हर लड़की को चाहे वह एक दो साल की ही क्यों न हो उसके हाथों में पर्स ज़रूर लटकाना है ,लिपस्टिक ,बिंदी छोड़ी ,चुटीले सब नया देखने से ही लगता है कि शायद बहुत व्यर्थ की कमाई लिए फिर रही हैं जबकि वह सारी कमाई गाढ़ी मेहनत की होती है और ये सब सामान चार दिन की चांदनी से ज्यादा कुछ नहीं होता क्या मेहनत का पैसा इस तरह खर्च करना लुटाना नहीं कहा जायेगा ?
ईद उल फ़ितर
है आबिदों को त'अत-ओ-तजरीद की ख़ुशी
और ज़ाहिदों को ज़ुहद की तमहीद की ख़ुशी
और ज़ाहिदों को ज़ुहद की तमहीद की ख़ुशी
रिंद आशिक़ों को है कई उम्मीद की ख़ुशी
कुछ दिलबरों के वल की कुछ दीद की ख़ुशी
कुछ दिलबरों के वल की कुछ दीद की ख़ुशी
ऐसी न शब-ए-बरात न बक़्रीद की ख़ुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी
जैसी हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी
-नज़ीर अकबराबादी
-शालिनी कौशिक [कौशल ]
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