मेरे लहू में है ,
कहने की नहीं हसरत ,मेरे लहू में है ,
सहने की नहीं हिम्मत ,मेरे लहू में है ,
खंजर लिए खड़ा है ,मेरा ही भाई मुझ पर ,
जीने की नहीं उल्फत ,मेरे लहू में है .
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खाते थे रोटी संग-संग ,फाके भी संग किये थे ,
मुश्किल की हर घडी से ,हम साथ ही लड़े थे ,
अब वक़्त दूसरा है ,मक़सूम दिल हुआ है ,
मिलने की नहीं उल्फत ,मेरे लहू में है .
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सौंपी थी मैंने जिसके ,हाथों में रहनुमाई ,
अब आया वही बढ़कर ,है करने को तबाही ,
मुस्कान की जगह अब ,मुर्दादिली है छाई ,
हमले की न महारत ,मेरे लहू में है ,
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वो पास खड़े होकर ,यूँ मारते हैं पत्थर ,
सिर पर नहीं ये चोटें ,आके लगे हैं दिल पर ,
इंसानियत के टुकड़े, वे बढ़के कर रहे हैं ,
झुकने की न मुरौवत ,मेरे लहू में है ,
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बर्बाद कर रहे ये ,सदियों का भाईचारा ,
इनके लिए है केवल ,पैगाम ये हमारा ,
मिल्लत के दुश्मनों को , ''शालिनी ''क़त्ल कर दे ,
क़ुरबानी की ही चाहत ,मेरे लहू में है ,
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शालिनी कौशिक
[कौशल ]
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गणपति वन्दना (चोका )
हमारे रक्षक हैं पेड़ !
सादर