मानव आज भी पशु है
''आदमी '' प्रकृति की सर्वोत्कृष्ट कृति है .आदमी को इंसान भी कहते हैं , मानव भी कहते हैं ,इसी कारण आदमी में इंसानियत , मानवता जैसे भाव प्रचुर मात्र में भरे हैं ,ऐसा कहा जाता है किन्तु आदमी का एक दूसरा पहलु भी है और वह है इसका अन्याय अत्याचार जैसी बुराइयों से गहरा नाता होना .कहते हैं सृष्टि के आरम्भ में आदमी वानर था , वानर अर्थात पशु , सभी ने ये फ़िल्मी गाना सुना ही होगा - '' आदमी है क्या बोलो आदमी है क्या -आदमी है बन्दर -जूते उठाके भागे कपडे चुराके भागे .....'' और धीरे धीरे सभ्यता विकसित हुई और वह पशु से आदमी बनता गया किन्तु जैसे कि एक पंजाबी कहावत है - '' वदादिया सुजादडिया जप शरीर नाल .'' अर्थात बचपन की लगी आदतें शरीर के साथ-साथ जाती हैं ,ठीक वैसे ही जो ये सभ्यता का आरम्भकाल मानव जीवन का आरम्भकाल है अर्थात बचपन के समान है ,उसमे पशु होने के कारण वह आज तक भी उस प्रवृति अर्थात पशु प्रवृति से मुक्त नहीं होने पाया है और पशु प्रवृति के लिए ही कहा गया है - ''यही पशु प्रवृति है कि आप आप ही चरे .'' और इसी प्रवृति के अधीन मनुष्य...