मायूसियाँ इन्सान को रहने नहीं देती,
मायूसियाँ इन्सान को रहने नहीं देती,
बनके ज़हर जो जिंदगी जीने नहीं देती.
जी लेता है इन्सान गर्दिशी हज़ार पल,
एक पल भी हमको साँस ये लेने नहीं देती.
भूली हुई यादों के सहारे रहें गर हम,
ये जिंदगी राहत से गुजरने नहीं देती.
जीने के लिए चाहियें दो प्यार भरे दिल,
दीवार बनके ये उन्हें मिलने नहीं देती.
बैठे हैं इंतजार में वो मौत के अगर,
आगोश में लेती उन्हें बचने नहीं देती.
शालिनी कौशिक
टिप्पणियाँ
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ये जिंदगी राहत से गुजरने नहीं देती.
अच्छी अभिव्यक्ति