आजादी ,आन्दोलन और हम



[गूगल से साभार]
आज सुबह जब मैं नाश्ता तैयार कर रही थी तभी तभी खिड़की की ओर से दो आवाज़ सुनाई दी एक दूसरे से पूछ रहा था ,''स्कूल नहीं गया?'' ,तो जवाब सुनाई दिया ,''कि नहीं !आज छुट्टी है ''कितने अफ़सोस की बात है कि जिस दिन के लिए हमारे वीरों ने अपने प्राणों की क़ुरबानी दी हम उस दिन के लिए ऐसे भाव रखते हैं.''यूँ तो पहले से ही अफ़सोस था कि आज हम अपनी छत पर तिरंगा नहीं फहरा पाए और वह केवल इस कारण कि हमारे यहाँ बन्दर बहुत हैं और अभी २६ जनवरी को उन्होंने हमारे तिरंगे को कुछ नुकसान पहुंचा दिया था और हम कुछ नहीं कर पाए थे .हम नहीं चाहते थे कि हमारी थोड़ी सी लापरवाही हमारे तिरंगे के लिए हानिकारक साबित हो ,वो भी उस तिरंगे के लिए जिसकी आन के लिए न जाने कितने वीर शहीद हो गए .जिसके लिए महात्मा गाँधी ने कहा था -''लाखों लोगों ने ध्वज की आन के लिए कुर्बानियां दी हैं .भारत में रहने वाले हिन्दू ,मुस्लिम ,सिक्ख ,ईसाई सभी के लिए ज़रूरी है कि एक ध्वज के लिए जिए और मरें. '' हमारे घर में तो हमें स्वतंत्रता का महत्व बताया गया और इसकी प्राप्ति के लिए बलिदानों की लम्बी कहानी से भी परिचित कराया गया किन्तु लगता है कि आज के माता-पिता शायद इस ओर अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह नहीं कर रहे हैं .और अपने बच्चों को इस दिशा में मार्गदर्शन नहीं दे रहे हैं और इसी का परिणाम है कि आज के बच्चे इस दिन को छुट्टी मान रहे हैं.साथ ही इसकी कुछ जिम्मेदारी आज के शिक्षकों पर भी आती है जो बच्चों को स्मार्ट होकर स्कूल आना सिखा रहे हैं ,अंग्रेजी सिखा विश्व के समक्ष खड़े होने के काबिल बना रहे हैं किन्तु ये नहीं बता रहे हैं कि आज आप आज़ादी की साँस किन वीरों के प्रयासों के कारण ले रहे हैं ?क्या ये हमारा उत्तरदायित्व नहीं बनता कि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को उन वीरों से परिचित कराएँ जिन्होंने हमारे जीवन की खुशहाली के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया .लता जी की आवाज़ में प्रदीप जी द्वारा लिखे इस गीत को ,जिसे सुनकर पंडित जवाहर लाल नेहरु की आँखों में आंसू आ गए थे तो ये कोई अनोखी बात नहीं थी ,जब हम जैसे लोग भी स्वतंत्रता प्राप्ति के इतने बरसों बाद ये पंक्तियाँ -
''थी खून से लथपथ काया फिर भी बन्दूक उठाके ,
दस दस को एक ने मारा फिर गिर गए होश गंवाके ,
जब अंत समय आया तो कह गए कि हम मरते हैं ,
खुश रहना देश के प्यारों अब हम तो सफ़र करते हैं .''
सुनकर रो सकते हैं तो पंडित जवाहर लाल नेहरु ने तो उन वीरों के साथ कंधे से कन्धा मिलकर देश की आज़ादी के लिए अपना दिन रात एक कर दिया था तो उनकी आँखों में आंसू आना स्वाभाविक था ,क्या वे देश के प्यारे नहीं थे ,क्या वे भी हमारी तरह जिन्दा रहकर देश की आज़ादी में साँस नहीं ले सकते थे फिर क्यूं हम उन्हें भूलने लगे हैं ?क्या हमें आज उन सपनो को पूरा करने की दिशा में आगे नहीं बढ़ना चाहिए जिन्हें हमारे वीरों ने देखा और उनकी पूर्ति के लिए अपनी क़ुरबानी दे दी?हमारा उत्तरदायित्व बनता है कि हम उन सपनो को अपने और अपने देशवासियों की आँखों में भर दें और उन सपनो को पूरा करने के लिए जूनून की हद तक सभी को प्रेरित करें.
आज़ादी की प्राप्ति के बाद के भारत के लिए जो स्वप्न हमारे वीरों ने देखे उन पर विराम लगाने वाले न केवल हम बल्कि हमारी सरकार भी है .पंडित जवाहर लाल नेहरु ने कहा था -''काफी साल पहले हमने नियति की साथ गुप्त भेंट की और अब समय आ गया हैकि हम अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करें .आधी रात को जब दुनिया सो जाएगी तब भारत में आज़ादी एक नई सुबह  लेकर आएगी .''
नई सुबह आई किन्तु इस नई सुबह में सबने भुला दिया गुलामी के उन दिनों को ,उन संघर्षों को जिन्हें झेलकर हम आज़ाद हुए थे .अंग्रेजों ने एक जलियाँ वाला बाग हत्याकांड किया था किन्तु वे विदेशी थे उनका  हमसे कोई अपनत्व नहीं था किन्तु उसे क्या कहें जो  दिल्ली की सरकार ने किया आन्दोलन रत बाबा रामदेव और उनके अनुयायिओं को रातो- रात अंग्रेजी शासन काअहसास करा दिया .
मैक्स मूलर ,जर्मन स्कॉलर ने कहा था-''अगर मुझसे पूछा जाये कि किस जगह मानव मस्तिष्क अपने चरम रूप में विकसित होता है  ,कहाँ समस्याओं का समाधान चुटकी बजाते निकल जाता है तो मैं कहूँगा ,''भारत वो जगह है .''
कि क्यूं भारत में हर समस्या का समाधान आन्दोलन से ढूँढा जाता है ?क्यूं लोकपाल के लिए अन्ना को अनशन करना पड़ता है ?क्यूं काले धन की वापसी के लिए बाबा रामदेव को पिटना पड़ता है ?
क्यूं उत्तर प्रदेश में बरसों से लगभग तीन दशक से  पश्चिमी यू.पी .के वकीलों को हाईकोर्ट की खंडपीठ की मांग  के लिए भूखा मरना पड़ता है ?क्या इसमें केवल वकीलों का हित है ?क्या सरकार का फ़र्ज़ नहीं है कि वह जनता के लिए न्याय प्राप्त करने की परिस्थितियाँ बनाये ?
देश के विभिन्न हिस्सों में फैला नक्सलवादी /माओवादी आन्दोलन जिसमे कभी विधायक ,कभीडी.एम्.,कभी विदेशी पर्यटक  अपहरण के तो कभी आम जनता ,पुलिस गोलीबारी के शिकार होते हैं.क्यूं नहीं सरकार सही कदम  सही समय पर उठाकर इन समस्याओं को निबटाने का प्रयास करती ?क्यूं हर समस्या को यहाँ वैसे ही आगे  के लिए  टाल दिया जाता है  जैसे पुलिस वाले पानी में बहती आई लाश को आगे बढ़ा देते हैं जिससे अपराध का ठीकरा उनके माथे पर न फूटे.क्यूं देश में हर समस्या का समाधान आन्दोलन के माध्यम से ढूंढना पड़ता है ?लोकतंत्र जनता की ,जनता के द्वारा और जनता के लिए सरकार है फिर क्यूं जनता के बीच से सरकार में पहुँच नेताओं की बुद्धि पर सत्ता का पानी चढ़ जाता है और पहले जनता के हित की बात कहने वाले सत्ता में पहुँच जनता को कुचलने पर आमादा हो जाते हैं ?
और जनता के आन्दोलन भी जिस कार्य के लिए शुरू किये जाते हैं वहां से भटक जाते हैं .क्यूं अन्ना का आन्दोलन लोकपाल से हटकर राजनीति की गहराई की बातें करने लगता है ?क्यूं बाबा रामदेव का आन्दोलन काले धन की वापसी की बाते करते करते कॉंग्रेस  हटाओ की बात करने लगता है ?जबकि सभी जानते हैं कि राजनीति में सभी दल ''एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं ''.कारण एक ही है हमारा अपने आदर्शों से भटकाव .एक विकासशील देश  को जिन आदर्शों पर काम करना चाहिए हम उनसे भटक गए हैं .लोकतंत्र ने हमें अवसर दिया है देश को अपने हाथों से चलने का और ये हमें देखना है कि हम देश की बागडोर गलत हाथों में न जाने दें .किसी ने कहा है -
''वक़्त देखते ही किरदार बदल देता है ,
इन्सान भी मय्यार बदल देता है ,
अपनी ताकत का तुम्हे इल्म नहीं शायद
एक वोट देश की तकदीर बदल देता है .''
ऐसा नहीं है कि स्वतंत्रता से लेकर आज तक एक ही दल की सरकार रही हो सरकारें आई गयी हैं किन्तु कार्यप्रणाली सभी की एक जैसी रही है .सभी ने पूँजी वादियों का पोषण और गरीबों का शोषण किया है सभी ने वोट के भंडार के आगे शीश नवाया  है .ऐसे में हमें देखना होगा कि ये देश हमारा है .हमें यहाँ आराजकता पैदा नही होने देनी है और न ही स्वार्थी प्रवर्तियों वाले दलों को उभरने देना है .हमें एक जुट होकर देश हित के लिए आगे बढ़ना है और जो  भी ताकत देश विरोधी दिखाई दे उसे मुहंतोड़ जवाब देना है .भ्रष्टाचार ,काला धन ,कन्या भ्रूण हत्या ,गरीबी ,महंगाई सब हमारे बीच की समस्याएं है और इनका दुष्प्रभाव भी हमीं पर पड़ता है ऐसे में इन चुनौतियों से लड़ने के लिए हमें ही एकजुट होना होगा .
रामायण में एक जगह महर्षि विश्वामित्र कहते हैं-''साधू और पानी का रुकना सही नहीं होता .''सही भी है साधू का कार्य विश्व कल्याण है जो एक जगह रूककर नहीं होता और पानी यदि ठहर जाये तो गन्दा हो जाता है .सरकार में यही ठहराव आ गया है .विपक्ष का कमजोर होना सरकार को अति आत्मविश्वास से भर रहा है .सरकार बदलना इस समस्या का हल नहीं है बल्कि विपक्ष का मजबूत होना सरकार के लिए एक फ़िल्टर के समान है यदि हमारा विपक्ष मजबूत हो तो सरकार को उखड़ने का डर रहेगा और ऐसे में जिन समस्याओं के लिए जनता को आन्दोलन रत होना पड़ता है वे सरकार की समझ में स्वयमेव आती रहेंगी और आन्दोलन जैसी परिस्थितियां उत्पन्न ही नहीं होंगी .इसलिए ये जनता का ही कर्त्तव्य बनता है कि वह ऐसे लोगों को चुनकर भेजे जो चाहे सत्ता में रहें या विपक्ष में, अपना काम मजबूती से करें क्योंकि आज हमारे देश को सच्चे कर्मवीरों की ज़रुरत है ऐसे कर्मवीर जो हमारे शहीदों की शहादत की कीमत  समझें और उनके सपनो को पूरा करने के लिए जुट जाएँ .
अंत में डॉ.राही निजामी के शब्दों में बस यही कहूँगी-
''वतन की अजमतों के जो हैं दुश्मन,
इरादे उनके तू बेजान कर दे  .
तिरंगा है वतन की शान या रब ,
उसे कुछ और भी जी शान कर दे.''
शालिनी कौशिक
[कौशल]

टिप्पणियाँ

बहुत अच्छा आले नेहरू ने कन्धे से कन्धा मि8ला कर देश आज़ाद ही नही करवाया बल्कि 1947 के जलजले से देश को उबारा और एक मजबूत भारत की नींव रखी उनकी कुर्बानिओं को आज कोई कितनी भी मिटाने की कोशिश करे मिटा नही सकता क्यों कि जब जब देश की मजबूती की बात इतिहास मे चलेगी तो नेहरू जी का नाम सब से पहले आयेगा1
जै हिन्द्11 आज की राजनिति तो स्वार्थ की राजनिती है और स्वार्थ की जडें जल्दी खत्म होती हैं1

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