अब और न मरेंगे मोदी जी

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"कुछ लोगों को मनसब गूंगा बहरा कर देते हैं,
रोटी मंहगी करने वाले जहर को सस्ता कर देते हैं."
        गुलजार देहलवी की ये पंक्तियाँ हमें रूबरू करा रही हैं उन परिस्थितियों से जो हमारे मीडिया द्वारा बनाये गये, अच्छे दिनों की सोच लाये गये नई - नई जैकिट, कुर्ते व सूट से सजाये  हुए, तराशे हुए दिखावा पसंद जनता द्वारा सम्पूर्ण देशवासियों पर थोपे गये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की तानाशाही पसंद नीति व स्वयं को देश का सबसे काबिल प्रधानमंत्री साबित करने की जिद से उपजी हुई है और जिसका परिणाम यह है कि जनता नोटबंदी के 50 दिन पूरे होने पर भी लाइनों में खड़े होकर मर रही है या कैश न मिलने पर घरों में जहर खाकर मर रही है.
         काले धन - काले मन से देश बर्बाद कहने वाले मोदी शायद स्वयं को सफेद धन - सफेद मन वाला मानते हैं यह एक अच्छी बात भी है और रिकार्ड तथ्य भी कि 'चोर ने कभी भी खुद को चोर नहीं कहा'. आज राजनीति में मोदी जी ने जिस तालाब की खुदाई कराई है वह केवल और केवल कीचड़ से भरा हुआ था, ये औरों पर कीचड़ उछाल रहे हैं और सब इन पर किन्तु न इनका कोई नुकसान न उनका, बल्कि कीचड़ उछालने वालों को ये बाहर तक छोड़ने आते हैं और कहते हैं-"आते रहिये. "नुकसान केवल जनता का जो आज हर तरफ से निराशा के घेरे में है.
        आंखों में आंसू भर मोदी ने 50 दिन मांगे थे, आज वे भी पूरे हो गए और क्या हुआ सब जानते हैं. काले धन की आड़ में सभी की जिंदगी में उथल-पुथल मचाने वाले इस निर्णय ने सब्जी व्यापारियों का स्वाद बिगाड़ दिया है. शामली जिले के सब्जी की दुकान करने वाले हाजी इलियास कहते हैं - " जितनी सब्जी खरीदकर लाते हैं वह पूरी बिक नहीं पाती, कच्चा माल होने के कारण अगले दिन खराब हो जाता है जिससे काफी नुकसान हो रहा है. नोटबंदी का काफी असर व्यापार पर हुआ है, कैशलेस व्यापार करना मुश्किल है क्योंकि अनपढ़ व्यापारी उसे संभाल नहीं पायेगा."
     अनपढ़ व्यापारी ही क्या करेगा जब परिस्थितियों को पढे लिखे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ही नहीं समझ रहे. यूपी में राज करने की ख्वाहिश ने मोदी जी को बौरा दिया है. जो कभी दूसरों की आंखों के आंसू का मजाक उड़ाया करते थे आज स्वयं की आंखों में आंसू भर जनता को भावुक करना चाह रहे हैं उसी जनता को जिसके मन में उनके लिए फिलहाल यही भाव हैं -
"दिलों में जिनके लगती है वो आंखों से नहीं रोते,
 जो अपनों के नहीं होते किसी के भी नहीं होते,
  जो पराया दर्द अपने दर्द से ज्यादा समझते
  किसी के रास्ते में वो कभी कांटे नहीं बोते. "
       पर क्या फर्क पड़ता है सत्ता के नशे में चूर इन पर जो आज के हालात में अपने हाथों में आयी ताकत का ये सोचकर पुरजोर इस्तेमाल कर लेना चाहते हैं कि पता नहीं आगे ये मौका नसीब हो भी या नहीं. कैशलेस व्यवस्था और वह भी उस  देश में जहां लोगों को अभी साधारण पढाई भी ढंग से करनी नहीं आती. मोबाइल का, स्मार्टफोन का चलन बढ गया विश्व की एक बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था हो गई जहाँ इनका इस्तेमाल अत्यधिक है, इन्टरनेट का इस्तेमाल विश्व में चौथे - पांचवें स्थान पर है, यह साबित नहीं करता कि लोग डिजीटल रूप से शिक्षित हो गये हैं. न तो शिक्षा का यहां पूरा प्रसार है न संसाधनों का, देखा जाए तो अधिकांश मोबाइल व स्मार्टफोन उपयोगकर्ता केवल बात करने, गाने सुनने व वीडियो देखने के लिए ही इनका इस्तेमाल कर रहे हैं. मदनलाल आढती कहते हैं - "कैशलेस कारोबार कैसे करें, सभी ग्राहक भी तो नकदी देकर ही सामान खरीदते हैं, हमें भी किसानों को कैश ही भुगतान करना पड़ता है तो हम व्यापारियों से भी माल की कीमत कैश में ही लेते हैं."  अच्छे दिन की सोचकर जिस मोदी को लोगों ने वोट दी आज उसी सोच पर पछतावा करने को जनता विवश है. व्यापारी दीपावली पूजन में कमी मान रहे हैं और जनता अपने भाग्य में ,फलस्वरूप जगह जगह भंडारे, भगवान् की कथाएँ करायी जा रही हैं ऐसी स्थिति पर कवि दुष्यंत कुमार कहते हैं -
"पुख्ता होते ही मर गयी चीजें,
 बात कच्ची थी, बात सच्ची थी,
 घर बनाकर मैं बहुत पछताया
 इससे खाली जमीन अच्छी थी. "
    दो दिन में उत्तर प्रदेश चुनाव की तिथि की घोषणा हो जायेगी, हो सकता है सफेद धन वाले सफेद मन वाले मोदी जनता में अपना" इम्प्रेशन "ठीक करने को नोटों का जखीरा बैंकों में पहुंचवा दें, जनता को मौत की त्रासदी झेलने के बाद अब स्वर्ग में पहुंचवा दें, उन्हें उनका ही धन अपने एहसान तले दबाकर दिलवा दें, रिजर्व बैंक की नीति में फिर कोई नया परिवर्तन करवा दें किन्तु जनता दूध की जली है छाछ भी फूंक - फूंक कर पीयेगी. उसे तो अब बस यही कहना है कि 50 दिन कम नहीं होते अब और न मरेंगे मोदी जी, उसने तो सत्यपाल "सत्यम" जी के शब्दों में बस यही कहने की ठान ली है -
"अंजाम बदल जायेगा गर तुम आगाज बदल दो,
 जो दर्द नहीं सुनता ऐसा हर राज बदल दो. "
शालिनी कौशिक
   (कौशल) 

टिप्पणियाँ

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (30-12-2016) को "महफ़ूज़ ज़िंदगी रखना" (चर्चा अंक-2572) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Unknown ने कहा…
अच्छा लेख
नव बर्ष की शुभकामनाएं
http://savanxxx.blogspot.in

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