बचपन से उत्साह रहता है पर्यावरण दिवस का, वैसे तो साल भर ही पेड़ - पौधे लगाना और उनका संरक्षण करना मेरी दिनचर्या में शामिल रहा किन्तु 5 जून की बात कुछ अलग ही थी, इसलिए डायरी के पन्ने पर 5 जून को पहले ही सुंदर से शब्दों में "पर्यावरण दिवस" लिखकर सजा दिया था. सुबह घर के सभी अनिवार्य कार्य निबटा कर अपनी बगिया में पहुंच गई और क्योंकि इस बार पर्यावरण दिवस रविवार के दिन था, इसलिए तुलसी के पौधे को हाथ भी नहीं लगा सकते थे. योजना ये बनाई कि आज मैं भोलेनाथ को पसंद आने वाले फ़ूलों के पेड़ ही बगिया में लगाऊंगी और बस फिर हरसिंगार और जुही के पेड़ नर्सरी से मंगाये और काफी गहरा गड्ढा खोदकर दोनों पेड़ लगा दिए. साथ ही, कुछ पौधों के आसपास हुई घास की छँटाई भी की, उसके बाद पौधों को पानी देकर मन को सुकून की ऐसी चरम सीमा पर पाया, जहां संसार का हर सुख ऐश्वर्य छोटा पड़ जाता है. पेड़ के बढ़ने पर भोलेनाथ पर चढ़ाने के लिए सफेद फूल प्राप्त कर पाएंगे, इस बात की खुशी तो मन में थी ही, सबसे बड़ी प्रसन्नता इस बात की थी कि आज धरती माँ का कुछ कर्ज उतारने में और पर्यावरण को पुष्ट बनाने में मैंने भी अपना कुछ योगदान किया था.
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