इस तरह से नहीं बचेगी दुनिया




     आग बरस रही है पिछले डेढ़ महीने से पूरे उत्तर भारत में और आगे भी जो समाचार आ रहे हैं उनमे भी गर्मी से राहत की कोई खबर नहीं आ रही है. दिल्ली में लू का ओरेंज एलर्ट जारी किया गया है, आम जनता से घरों के अंदर रहने के लिए कहा जा रहा है, ज्यादा से ज्यादा पानी पीते रहें - फलां फलां निवेदन किए जा रहे हैं जो कि धरातल पर पूरे किए जाने मे लगभग असंभव है. तेज झुलसाने वाली धूप से, गर्मी से सब परेशान हैं किन्तु एक भी आवाज इसके मूल कारण को सामने लाने के लिए नहीं उभर रही है और न ही किसी के द्वारा भी सूर्य देव के इस तरह से फट पड़ने की जिम्मेदारी उठाई जा रही है. बस इतना है कि कहीं हाईवे निर्माण के नाम पर तो कहीं कांवड़ मार्ग बनाए जाने के लिए करोड़ों पेड़ों की अन्धाधुन्ध कटाई जारी है. 

     नेचर जर्नल के अध्ययन में वृक्ष आवरण हानि की वर्तमान और ऐतिहासिक दरों का अनुमान लगाया गया है। इसमें कहा गया है कि 12,000 साल पहले कृषि की शुरुआत के बाद से दुनिया भर में पेड़ों की संख्या में 46 प्रतिशत की गिरावट आई है और हर साल 15 अरब से अधिक पेड़ काटे जाते हैं। प्रतिदिन लगभग 42,000,000 पेड़ काटे जाते हैं । पहली बार अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी ने पेड़ों की सही संख्या बताने का दावा किया है। रिसर्च रिपोर्ट के हवाले से 'नेचर' जर्नल में छपी रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में अभी 30 खरब 40 अरब पेड़ हैं। पूरी दुनिया में हर साल 15 अरब पेड़ काटे जा रहे हैं।पृथ्वी के कुल भूमि क्षेत्र का केवल 31% भाग वनों से ढका हुआ है, लेकिन 1990 के दशक से, 420 मिलियन हेक्टेयर भूमि मानव गतिविधि से नष्ट हो गई है। मनुष्य प्रतिदिन 42 मिलियन पेड़ काटते हैं।

    भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण से प्राप्त जानकारी के अनुसार, परियोजना के लिए महाराष्ट्र से गुजरने वाले हाईवे के एक हिस्से के लिए 2,242 हेक्टेयर भूमि की ज़रूरत है, जिसमें पालघर, ठाणे और रायगढ़ ज़िलों में 39,000 से अधिक पेड़ों को काटा जा सकता है. राष्ट्रीय राजमार्ग 59 के 40 किलोमीटर के विस्तार के लिए ओडिशा के गंजाम जिले में विभिन्न प्रजातियों के 1,720 पूर्ण विकसित और पुराने पेड़ों को काटा जाएगा। मामला हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित एक खबर के बाद प्रकाश में आया था, जिसके मुताबिक उत्तरप्रदेश में ऊपरी गंग नहर के किनारे सड़क निर्माण के लिए 112,000 पेड़ों को हटाए जाने की अनुमति दी है.उत्तर प्रदेश लोक निर्माण विभाग ने अपनी एक रिपोर्ट में जानकारी दी है, कि ऊपरी गंग नहर के किनारे सड़क निर्माण के लिए 33,776 पेड़ों को हटाए जाने की जरूरत है। रिपोर्ट के मुताबिक हटाए जाने वाले पेड़ों की वास्तविक संख्या 33,776 से कम होगी, क्योंकि पेड़ों को केवल 15 मीटर की चौड़ाई के भीतर ही काटा जाएगा, जहां तटबंध की ऊंचाई कम है। इस 222.98 हेक्टेयर संरक्षित वन भूमि के उपयोग की भरपाई के लिए, 445.96 हेक्टेयर गैर-वन भूमि की आवश्यकता थी, लेकिन गाजियाबाद, मेरठ और मुजफ्फरनगर के प्रभावित जिलों में यह उपलब्ध नहीं थी। इसलिए, तीन अन्य जिलों में इसके बदले वनरोपण किया जा रहा है. 

      पेड़ों के बड़ी संख्या में काट दिए जाने पर हर साल सरकारों द्वारा कई लाख पेड़ लगाये जाने का लक्ष्य स्थानीय प्रशासन के सामने रखा जाता है और स्थानीय प्रशासन द्वारा भी बड़े बड़े आयोजन कर, मीडिया कर्मियों की मौजूदगी में क्षेत्रीय सांसद, विधायक, जिलाधिकारी, आदि द्वारा पौधों का रोपण किया जाता है जिसके बारे में यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह लगभग हर 8 काटे गए पेड़ पर एक पेड़ लगाया जाता है किन्तु उसके बाद एक बार भी ऐसा कोई समाचार प्राप्त नहीं होता है कि जो पेड़ लगाये गये थे, उनमें से कितने जीवित हैं, कितने मर गए, जिसने लगाते समय खूब फोटो खिंचवाये थे, क्या कभी उसने उसमे एक लोटा भी पानी डाला, क्या कभी उस पौधे के खाद पानी मिलने का पता भी किया. एक पौधे को पेड़ बनने में छोटा पेड़ बनने में ही कम से कम 10-15 साल लगते हैं और वो भी तब जब उसकी पूरी तरह से देख रेख की जाए, समय से उसकी निराई गुड़ाई की जाए, समय से उसे खाद पानी दिया जाए, उसकी आवारा पशुओं से देखभाल की जाए, उसे बड़ी संख्या में नुकसान पहुंचा रहे बन्दरों से बचाने के लिए इंतजाम किए जाएं, केवल पौधा लगाने से थोड़े ही हम पर्यावरण संतुलन के लिए योगदान कर्ताओं मे शामिल हो जाएंगे, उसके लिए हमें बहुत कुछ करना होगा. आज बड़ी संख्या में पेड़ों को काटने के टेंडर पास हो रहे हैं और सही रूप में देखा जाए तो पेड़ नहीं काटे जा रहे हैं बल्कि वनों की कटाई की जा रही है और वनों की कटाई का अर्थ है बड़ी संख्या में पेड़ों को काटना और वन क्षेत्रों को साफ़ करना.

     बचपन में स्कूलों में स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर हमारे से नारे लगवाए जाते थे -

" पेड़ों के हैं लाभ अनेक, चार लगाकर काटें एक. "

      जिसे हम दिल से लगाते थे और तब ही से मन में वृक्षारोपण एक भावना के रूप में जगह बना गया था और आज वृक्षारोपण केवल एक दिन का समारोह के रूप में आयोजित किया जाता है जिसका हमारी नई पीढ़ी से कोई मतलब ही नहीं रह गया है, उनसे केवल इतना कहा जाता है कि वे अपनी कॉपी में दस पेड़ों या पौधों के पत्ते चिपकाकर ले आयें और इस तरह से प्रकृति से जुड़े. केवल ड्रामा रह गई है आज की शिक्षा पद्धति, बड़ी बड़ी बिल्डिंग में केवल कंप्यूटर्स शिक्षा, मोबाइल से जुड़े शैक्षणिक संस्थान केवल रोबोट बना रहे हैं, बच्चों में कोई भावना ही नजर नहीं आती है पर्यावरण संरक्षण की और आएगी भी क्या जब रील बनाने, सेल्फी लेने में ही उनकी सारी उम्र जाया हो रही है और शेष खत्म कर दे रहा है हमारा व्यापारी वर्ग, कृषक समुदाय जो सौंदर्यीकरण के नाम पर केवल व्यापारिक प्रतिष्ठान का निर्माण करा रहा है, खेतों की जमीन पर प्लॉट काट रहा है, कहीं भी पेड़ों के लिए, पौधों के लिए जनता के हृदय में जगह नहीं दिखाई दे रही है और इस सबके बीच वह बढ़ी हुई गर्मी में और घी डालने का काम कर रहा है अपने घर, काम के स्थान पर ए सी लगा कर और जिसका परिणाम आज हम सभी के सामने आ रहा है. पहले फ्रिज आदि की गैस से ही ओजोन परत को खतरा था, उसमे छेद बन गया था किंतु अब जिस तरह से हर मध्यम वर्ग के परिवार द्वारा भी ए सी का इस्तेमाल किया जा रहा है लगता नहीं कि इस ओजोन परत को फटने मे ज्यादा समय लगेगा और अभी तो कुछ गाड़ियों में आग लग रही है, कुछ ए सी फट रहे हैं, जब ओजोन परत ही फट जाएगी तब क्या होगा, उसकी शायद कल्पना भी नहीं की जा सकती है. 

      आज जरूरत है जनता के ही जागने की क्योंकि प्रकृति की मार आखिर में पड़नी आम जनता पर ही है,  कृषक समुदाय, व्यापारी वर्ग से निवेदन किया जाए कि खेतों की जमीन को रिहायशी मकानों में तब्दील न करें, और व्यापारी वर्ग  जब अपने घर में चार दुकान निकाल रहे हो तो कम से कम एक पेड़ के लिए भी जगह निकाल लीजिए, अन्यथा अपनी आने वाली पीढ़ियों को हम धन तो बहुत दे जाएंगे , पर साँस लेने के लिए स्वच्छ हवा, रहने लायक पर्यावरण नहीं दे पाएंगे. 

     और सबसे अंत में, ए सी का प्रयोग सीमित किया जाए, बहुत ज्यादा ही तबीयत खराब होने पर या फिर केवल रात्रि विश्राम हेतु ए सी चलाया जाए, अन्यथा जो जनसंख्या इस वर्ष की असहनीय गर्मी के बाद किसी तरह बच भी गई, वह अगले साल निश्चित रूप से अपनी जिंदगी खो देगी.

      शालिनी कौशिक

              एडवोकेट

       कैराना (शामली)


टिप्पणियाँ

Dharm Singh ने कहा…
पर्यावरण संरक्षण के लिए आपने शुद्ध सार्थक संदेश दिया है तथा आपके विचार कसौटी पर शत प्रतिशत खरे हैं।
Shalini kaushik ने कहा…
आभार धर्म सिंह जी 🙏🙏
Anita ने कहा…
वाक़ई मानव को अब चेतना होगा वरना बहुत देर हो जाएगी सार्थक लेखन
Shalini kaushik ने कहा…
आभार अनीता जी 🙏🙏
Shalini kaushik ने कहा…
आभार अनीता जी 🙏🙏

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