man kahin aur chal............
बढ़ते भ्रष्टाचार पर बोलें सारे दल, अपने को पावन कहें दूजे को दलदल. जो भी देखो कर रहा एक ही जैसी बात, भ्रष्टाचार के छा रहे भारत में बादल. जनता के हितों की खातिर करते हैं ये सब, कहते ऐसी ही बातें मंच को बदल-बदल. देश की खातिर कर रहे जो ये देखो आज, कोई नहीं कर पायेगा चाहे आये वो कल. सत्ता की मदहोशी में बहके नेतागण, बोले उल्टा-पुल्टा ही मन कहीं और चल. a