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जनवरी, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मतलब नहीं रहा..

हम तुमसे मिलने आयें हैं सब काम छोड़कर , तुम पर ही हमसे मिलने को वक़्त  न हुआ. $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ सुनना तो चाहते थे तुमसे बहुत कुछ मगर , तुमने ही हमसे अपने दिल का हाल न कहा. $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ गायब तो तुम ही हो गए थे बीच राह में, मिलने को तुमसे हमने कितनी बातों को सहा. $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ सब कुछ गवां के हमने रखी दोस्ती कायम, तुम कहते हो हमसे कभी मतलब नहीं रहा. $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$

आदमी क्या है....

आदमी क्या है एक खिलौना है, जीवन में हँसना कम अधिक रोना है.     खुशियाँ मिलती हैं कभी कभी , संग दुःख लाती हैं तभी तभी.    खुशियाँ आयें या ना आयें, दुःख के पड़ जाते हैं साये.    दुःख अपना प्यारा साथी है, निरंतर साथ निभाता है,    खुशियाँ बुलाने पर भी ना आयें. दुःख आ जाता बिन बुलाये.    दुःख में विधि को हम याद करें, सुख में इसका ना ध्यान करें.    जो सुख में इसका ध्यान करें, तो दुःख हम सब पर कैसे पड़े.    गलती हम करते जाते हैं, पर स्वीकार ना करते कभी.   इस कारण ही तो ऐसा है, पड़ जाते जल्दी दुःख सभी.   दुखों की परम परंपरा है, सुख तो एक व्यर्थ अप्सरा है.   दुखों की ही हर पल सोचें, सुखों का कभी ना ध्यान करें.

क्या आज का सच यही है?

एक शेर जो हम बहुत जोर-शोर से गाते हैं- "खुश रहो अहले वतन हम तो सफ़र करते हैं." क्या जानते हैं कि यूं तो ये मात्र एक शेर है किन्तु चंद शब्दों में ये शेर उन शहीदों के मन की भावना को हमारे  सामने खोल का रख देता है .वे जो हमें आजादी की जिंदगी देने के लिए अपनी जिंदगी कुर्बान कर गए यदि आज हमारे सामने अपने उसी स्वरुप में उपस्थित हो जाएँ तो शायद हम उन्हें एक ओर कर या यूं कहें की ठोकर मार कर आगे निकल  जायेंगे,कम  से कम मुझे आज की भारतीय  जनता को देख ऐसा ही लगता है.आप सोच रहे होंगे कि  ऐसा क्या हो गया जो मुझे इतना कड़वा सच आपके सामने लाना पड़ गया.कल का हिंदी का हिंदुस्तान इसके लिए जिम्मेदार है जिसने अपने अख़बार की बिक्री बढ़ाने के लिए एक ऐसे शीर्षक युक्त समाचार को प्रकाशित किया कि मन विक्षोभ से भर गया.समाचार था "ब्रांड सचिन तेंदुलकर ने महात्मा गाँधी को भी पीछे छोड़ा"ट्रस्ट रिसर्च एड्वयिजरी   [टी.आर.ऐ.]द्वारा किये गए सर्वे में भरोसे के मामले में सचिन को ५९ वें स्थान पर रखा गया है और महात्मा गाँधी जी को २३२ वें स्थान पर रखा ग...

jo bhi ray ho avashay den..

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पहले आप ये मेरे ब्लॉग व मेरी कविता का अवलोकन करें- इस पर एक टिप्पणी पोस्ट करें: कौशल "उचित निर्णय युक्त बनाना" 12 टिप्पणियाँ - मूल पोस्ट छिपाएँ टिप्पणियों को संकुचित करें जो बनते हैं सबके अपने,   निशदिन दिखाते हैं नए सपने,       ऊपर-ऊपर प्रेम दिखाते,           भीतर सबका चैन चुराते, ये लोगों को हरदम लूटते रहते हैं, तब भी उनके प्रिय बने रहते हैं.   ये करते हैं झूठे वादे,     भले नहीं इनके इरादे,        ये जीवन में जो भी पाते,           किसी को ठग के या फिर सताके, ये देश को बिलकुल खोखला कर देते हैं  , इस पर भी लोग इन पर जान छिड़कते हैं.    जब तक ऐसी जनता है,   तब तक ऐसे नेता हैं,   जिस दिन लोग जाग जायेंगे, ऐसे नेता भाग जायेंगे,       अब यदि चाहो इन्हें हटाना,       चाहो उन्नत देश बनाना,    ...

तभी नाम ये रह जायेगा.....

जीवन था मेरा बहुत ही सुन्दर, भरा था सारी खुशियों से घर, पर ना जाने क्या हो गया कहाँ से बस गया आकर ये डर. पहले जीवन जीने का डर, उस पर खाने-पीने का डर, पर सबसे बढ़कर जो देखूं मैं लगा है पीछे   मरने का डर. सब कहते हैं यहाँ पर आकर, भले ही भटको जाकर दर-दर, इक दिन सबको जाना ही है यहाँ पर सर्वस्व छोड़कर.                    ये सब कुछतो मैं भी जानूं,                      पर मन चाहे मैं ना मानूं,                        होता होगा सबके संग ये                           मैं तो मौत को और पर टालूँ.          ...

उचित निर्णय युक्त बनाना

जो बनते हैं सबके अपने,   निशदिन दिखाते हैं नए सपने,       ऊपर-ऊपर प्रेम दिखाते,           भीतर सबका चैन चुराते, ये लोगों को हरदम लूटते रहते हैं, तब भी उनके प्रिय बने रहते हैं.   ये करते हैं झूठे वादे,     भले नहीं इनके इरादे,        ये जीवन में जो भी पाते,           किसी को ठग के या फिर सताके, ये देश को बिलकुल खोखला कर देते हैं  , इस पर भी लोग इन पर जान छिड़कते हैं.    जब तक ऐसी जनता है,   तब तक ऐसे नेता हैं,   जिस दिन लोग जाग जायेंगे, ऐसे नेता भाग जायेंगे,       अब यदि चाहो इन्हें हटाना,       चाहो उन्नत देश बनाना,        सबसे पहले अपने मन को,        उचित निर्णय युक्त बनाना.

khil jayega ye jeevan

मस्त बहारें छाने लगती हैं अनचाहे जीवन में, खुशियाँ हजारों बस जाती हैं चुपके से मेरे मन में . इच्छा होती है मिलकर सबसे कह दूं मन की सारी बात, कि क्या चाहा था हो गया क्या देखो अब मेरे साथ . मेरी चाह थी इस जीवन में कुछ ऊंचाईयों  को  छू  लूं, उठ सकती नहीं सबसे ऊपर इस स्तर से तो उठ लूं. पाकर थोड़ी सी सफलता प्रफुल्लित हो उठता है मन, पा लूं मैं यदि पूर्ण सफलता खिल जायेगा ये जीवन. ,