आत्महत्या -परिजनों की हत्या

आत्महत्या -परिजनों की हत्या 
  
Suicide : Image of guy cutting veins with a sharp dagger attempting suicide against black backgroundMurder : Blood covered knife, still dripping, in the hands of a murderer, with blood spatter on the brick wall.     आज आत्महत्या के आंकड़ों में दिन-प्रतिदिन वृद्धि हो रही है .कभी भविष्य को लेकर निराशा ,तो कभी पारिवारिक कलह ,कभी क़र्ज़ चुकाने में असफलता तो कभी कैरियर में इच्छित प्राप्त न होना ,कभी कुछ तो कभी कुछ कारण असंख्य युवक-युवतियों ,गृहस्थों ,किशोर किशोरियों को आत्म हत्या के लिए विवश कर रहे हैं और हाल ये है कि आत्महत्या ही उन्हें करने वालों को समस्या के एक मात्र हल के रूप में दिखाई दे रही है ,शायद उनकी सोच यही रहती है कि इस तरह वे अपनी परेशानियों से अपने परिजनों को मुक्ति दे रहे हैं किन्तु क्या कभी इस ओर कदम बढाने वालों ने सोचा है कि स्वयं आत्महत्या की ओर कदम बढ़ाकर  वे अपने परिजनों की हत्या ही कर रहे हैं ?
                 आत्महत्या एक कायरता कही जाती है किन्तु इसे करने वाले शायद अपने को बिलकुल बेचारा मानकर इसे अपनी बहादुरी के रूप में गले लगाते हैं .वे तो यदि उनकी सोच से देखा जाये तो स्वयं को अपनी परेशानियों से मुक्त तो करते ही हैं साथ ही अपने से जुडी अपने परेशानियों से अपने परिजनों को भी मुक्ति दे देते हैं क्योंकि मृत्यु के बाद उन्हें हमारे वेद-पुराणों के अनुसार क्या क्या भुगतना पड़ता है उसके बारे में न तो हम जानते हैं न जानना ही चाहते हैं और उनकी मृत्यु उनके परिजनों को क्या क्या भुगतने को विवश कर देती है इसे शायद ये कदम उठाने से पहले वे जानते हुए भी नहीं जानना चाहते किन्तु हम जानते हैं कि इस तरह की मृत्यु उनके परिजनों को क्या क्या भुगतने को विवश करती है .सबसे पहले तो समाज में एक दोषी की स्थिति उनकी हो जाती है आश्चर्य इसी बात का होता है कि जिनके साथ ऐसे में सहानुभूति होनी चाहिए उन्हें उनकी पीठ पीछे आलोचना का शिकार होना पड़ता है .कोई भी वास्तविक स्थिति को नहीं जानता और एक ढर्रे पर ही चलते हुए परिजनों को दोषी ठहरा  देता है ढर्रा मतलब ये कि यदि किसी युवक ने आत्महत्या की है तो उसका कोई प्रेमप्रसंग था और उसके परिजन उसका विरोध कर रहे होंगे ?यदि कोई किशोर मरता है तो उसे घर वालों ने डांट दिया इसलिए मर गया ,भले ही इन आत्महत्याओं के पीछे कुछ और वजह रही हो किन्तु आम तौर पर लोग पुँराने ढर्रे पर ही चलते हैं और परिजनों को अपराधी मान लेते  हैं और एक धारणा ही बना लेते हैं कि इनके परिवार के व्यक्ति ने ऐसा कृत्या किया और ये रोक न सके .परिजनों की ऐसी स्थिति को दृष्टि में रखते हुए डॉ.शिखा कौशिक ''नूतन''जी ने सही कहा है -
  ''अपनी ख़ुशी से ख़ुदकुशी करके वो मर गया ,
  दुनिया की नज़र में हमें बदनाम कर गया .''

और शायद दूसरों पर ऐसा दोषारोपण करने वाले उनकी विवशता को तभी समझ पाते हैं जब दुर्भाग्य से अनहोनी उनके लिए होनी बन जाती है .दूसरे बहुत कम लोग ही ऐसे होते हैं जो इसे -
       ''होई  है सोई जो राम रची राखा ''
कह स्वीकार कर लेते हैं और जिंदगी के साथ आगे बढ़ जाते हैं किन्तु अधिकांश जहाँ तक देखने में आया है बंद घडी की सुइयों की भांति ठिठक जाते हैं और अपने भूतकाल में खो जाते हैं .कहते हैं कि आत्महत्या करने वालों की सोचने समझने की शक्ति विलुप्त हो जाती है वैसे ही जैसे -
  ''विनाश काले विपरीत बुद्धि ''
और ऐसा लगता भी है क्योंकि यदि सोचने समझने की शक्ति उनमे रहती ,उन्हें अपने परिवार के लिए अपने महत्व का ,अपने अस्तित्व का अहसास होता तो वे कदापि ऐसा कदम नहीं उठाते ,वर्तमान के प्रति भय व् निराशावाद उन्हें ऐसे कुत्सित कृत्य की ओर धकेल देता है जिसके कारण वे स्वयं की मृत्यु द्वारा अपने परिजनों को जिन्दा लाश बनाकर इस दुष्ट संसार में जूझने  को छोड़ जाते हैं और समय के दुर्दांत गिद्ध उनके परिजनों का मांस नोचकर कैसे खाते हैं इस विषय में वे ये कदम उठाने से पहले सोच भी नही पाते हैं .शायद ऐसे में परिजनों की आत्मा यही कहती होगी -
''गर चाहते हो जिंदगी जिए हम ,
  पहले चलो इस राह पर तुम .''

              शालिनी कौशिक
                    [कौशल ]
 

टिप्पणियाँ

Nirantar ने कहा…
A man
Committed suicide
He did not die
His attitude died
Inability to fight the
Situation
Face the reality
Died
His patience
His confidence
Died
Faith in himself
Died
17-09-2011
1521-92-09-11

sundar saarthak lekh
राह लगे यदि बन्द, तो दायें मुड़ जाओ,
जीवन को पूरा जीना है, हर हालत।
devendra gautam ने कहा…
सामूहिक तनाव में लगातार बढ़ोत्तरी ने इस दौर में इंसान की विपरीत परिस्थितियों से लड़ने की क्षमता का हरण कर लिया है. इसीलिए आत्महत्या की प्रवृति बढ़ रही है.
सदा ने कहा…
''गर चाहते हो जिंदगी जिए हम ,
पहले चलो इस राह पर तुम .''
बहुत सही
देवेंद्र ने कहा…
शायद किसी के भी जीवन व परिवार में इससे दुखद कुछ नहीं होता।
सादर-
देवेंद्र
मेरी नयी पोस्ट- कार्तिकपूर्णिमा
सुज्ञ ने कहा…
घोर प्रतिस्पर्धा भरा जीवन और अधैर्य का मानस में निवास तनावों को जन्म देता है। चारों और से भय प्रसारित होता है किन्तु सम्वेदनाओं को कोई प्रवाहित नही करता। बस यही कारण है। जीवन में शान्ति का अभिन्न महत्व है। प्रतिस्पर्धा को कम करते हुए संतुष्टि की ओर गमन होना चाहिए। भले इसके लिए धार्मिक उपदेशों का आश्रय लिया भी जाय तो महंगा नहीं होगा।
आत्महत्या कायरता है,परिवार के लिए सबसे दुखद घटना ,,,,,

resent post : तड़प,,,
सूबेदार ने कहा…
आत्म हत्या किसी भी प्रकार से जटाज नहीं कहा जा साकता यह केवल कायरता के अलावा कुछ भी नहीं.
आत्मह्त्या कायर मानसिकता का परिणाम है.पर सफल आत्महत्या के लिए कोई दंड का प्रावधान नहीं है सिवाय इस विश्वास के कि आत्महत्या करने वाला सौ जन्मों तक नर्क भोगता है.
पहले तो में आपको धन्यवाद देना चाहूँगा जो आपने एक झकझोरने वाला विषय उठाया है ,आत्महत्या कायरता तो है ही साथ ही आत्महत्या करने वाला व्यक्ति खुद तो जीवन से मुक्त हो जाता है लेकिन अपने परिजनों को ढेर सारी परेशानियों के बंधन में बाँध जाता है जिससे निकलने कि कोशिश वो लोग जिंदगी भर करते रहते हैं !!
virendra sharma ने कहा…
अमूमन आत्म ह्त्या की प्रवृत्ति व्यक्ति में पहले से ही मौजूद रहती है हालात उसे उकसा देते हैं .ट्रिगर बन जाते हैं .अवसाद में मरीजों में यह प्रवृत्ति छिपी रहती है यदि कोई मरने की धमकी दे तो उसे

हल्के में न लें वह ऐसा कर भी सकता है .

अक्सर इन क्षणों ,में व्यक्ति अ -वश हो जाता है उसे लगता है किसी तीसरी शक्ति से उसे काबू किया हुआ है वही करवा रही है उससे सब कुछ .मृत्यु पूर्व छोड़े गए नोट में अक्सर इसका ज़िक्र होता है .

"मैं अ वश हूँ कोई और मुझसे यह सब करवा रहा है आप सब लोग बहुत अच्छे थे ,मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है .

कभी कभार कोई बड़ा गोलमाल करने पर ,बड़ी गलती हो जाने पर व्यक्ति आवेश आवेग में भी कुछ कर जाता है .दिवालिया हो जाने पर भी कर्ज़ में डूब जाने पर भी .जैसा महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में

किसान बहुत बार कर चुकें हैं हताश निराश होने पर .

हाँ दुष्ट परिवार जन भी ऐसे हालात कभी कभार रचते हैं धकेलते हैं व्यक्ति को आत्म हत्या की ओर .मानवीय पहलू से संसिक्त है आपकी पोस्ट .
virendra sharma ने कहा…
शुक्रिया .

माँ बाप की बालकों से बढती अपेक्षाएं ,स्कूल का दवाब ,परीक्षा के नतीजों से कामयाबी का निर्धारित करना बालकों को भी आत्म हत्या के अंध कूप में लिए जा रहा है .आपकी निरंतर टिप्पणियाँ हमारी धरोहर हैं .

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