जिंदगी की हैसियत मौत की दासी की है .
बात न ये दिल्लगी की ,न खलिश की है ,
जिंदगी की हैसियत मौत की दासी की है .
न कुछ लेकर आये हम ,न कुछ लेकर जायेंगें ,
फिर भी जमा खर्च में देह ज़ाया की है .
पैदा किया किसी ने रहे साथ किसी के ,
रूहानी संबंधों की डोर हमसे बंधी है .
नाते नहीं होते हैं कभी पहले बाद में ,
खोया इन्हें तो रोने में आँखें तबाह की हैं.
मौत के मुहं में समाती रोज़ दुनिया देखते ,
सोचते इस पर फ़तेह हमने हासिल की है .
जिंदगी गले लगा कर मौत से भागें सभी ,
मौके -बेमौके ''शालिनी''ने भी कोशिश ये की है .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
टिप्पणियाँ
जिंदगी की हैसियत मौत की दासी की है .
वाह ... बहुत खूब
फलसफा ए ज़िन्दगी से मुलाक़ात की है ,
कुछ ऐसी बात की है आपने इस पोस्ट में ,
सभी के तो ये सवालात हैं ,ख्यालात हैं शालिनी जी .मुबारक इस पोस्ट के लिए .
फलसफा ए ज़िन्दगी से मुलाक़ात की है ,
कुछ ऐसी बात की है आपने इस पोस्ट में ,
सभी के तो ये सवालात हैं ,ख्यालात हैं शालिनी जी .मुबारक इस पोस्ट के लिए .
फलसफा ए ज़िन्दगी से मुलाक़ात की है ,
कुछ ऐसी बात की है आपने इस पोस्ट में ,
सभी के तो ये सवालात हैं ,ख्यालात हैं शालिनी जी .मुबारक इस पोस्ट के लिए
मौत के मुहं में समाती रोज़ दुनिया देखते ,
सोचते इस पर फ़तेह हमने हासिल की है .
फिर भी गुमान है कितना हैवान को अपनी हविश पे ,
पृथ्वी के संसाधनों की हड़प पे .
खोया इन्हें तो रोने में आँखें तबाह की हैं.
वाह,,,बहुत खूब सुंदर प्रस्तुति,,,
resent post काव्यान्जलि ...: तड़प,,,
ram ram bhai
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बुधवार, 28 नवम्बर 2012
किस कांग्रेस पर गर्व करते हैं मनीष तिवारी ?
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