विकास के लिए वी.आई.पी. के कन्धों के सहारे की उम्मीद आखिर क्यूँ ?


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Stephanie Strom
Bornc. 1963
Dickinson, Texas
Occupationjournalist
Notable credit(s)The New York Times
स्टेफ़नी स्ट्रॉम [अमर उजाला में प्रकाशित ] अपने एक आलेख ''बनारस को कैसे संवारेंगे मोदी '' में लिखती हैं -''इस शहर के लोगों के मन में सबसे बड़ा सवाल यही है कि बिजली कब तक साथ देगी ?नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद गंगा किनारे बसे इस शहर के लोगों को तकरीबन निर्बाध बिजली मिल रही है वरना पहले आठ से दस घण्टे उन्हें बिजली के बिना रहना पड़ता था .कालीन निर्यातक और कार डीलर एहसान खान कहते हैं पिछले महीने उन्हें जेनरेटर की खास ज़रुरत नहीं पड़ी .''
      ऐसे ही हाल इटावा मैनपुरी के होते हैं जब मुलायम सिंह सत्ता में आते हैं इसी तरह बादलपुर-सहारनपुर चमकते हैं जब मायावती सत्ता में आती हैं आखिर क्यों होता है ऐसा ? जिस देश में लोकतंत्र हो और लोकतंत्र को चलाने वाली प्रधान संस्था संसद के अहम सदन लोकसभा तक में यह रिवाज़ हो कि वहां लोकसभा अध्यक्ष चुने जाने पर अध्यक्ष मात्र अध्यक्ष होगा किसी पार्टी विशेष का सदस्य नहीं ,वहां इस तरह का भेदभाव कहाँ तक स्वीकार्य हो सकता है और उस स्थिति में जहाँ देश का संविधान धर्म ,जाति ,लिंग तक के भेदभाव पर रोक लगाता है वहां क्षेत्र-क्षेत्र का भेद ,कि कहने को देश में बिजली का हाहाकार है ,अनुपलब्धता है ,स्वयं मेरे क्षेत्र में ही बिजली सुबह ४ बजे भाग जाती है और दिन में कभी १२ बजे तो कभी एक बजे आती है किन्तु वी.आई.पी. क्षेत्र में बिजली की वर्षा हो रही है ,जहाँ कहीं वी.आई.पी.दौरे हों वहां वी.आई.पी. की उपस्थिति तक बिजली उपस्थित और वी.आई.पी. के जाते ही ऐसे गायब जैसे गधे के सिर से सींग .कहाँ तक बर्दाश्त योग्य है .
   आज बनारस को मोदी मिल गए और मोदी प्रधानमंत्री हो गए तो बनारस के उत्थान की आशा की जा रही है ,इटावा मैनपुरी की जगमग से बदहाल यू.पी.की आँखें चौधियां रही हैं ,क्यूँ इस देश में हर जगह विकास के लिए वी.आई.पी. के कन्धों के सहारे की उम्मीद की जाती है ?क्यूँ अपने क्षेत्र का विधायक /सांसद सत्ताधारी दल का होते हुए भी अपना क्षेत्र प्रगति के लिए तरसता है ?और सत्ताधारी दल के सांसदों/विधायकों के क्षेत्र जब बदहाल अवस्था में हो तो विपक्षी दल के सांसदों/विधायकों से फिर आशा ही क्या की जा सकती है ?
   हमारे देश में सांसदों/विधायकों को अपने क्षेत्र में कार्यों के लिए निधि दी जाती है कार्य होते नहीं ,विकास होता नहीं और निधि बच जाती है क्षेत्र ज़रूरतमंद ही बने रहते हैं और सांसद/विधायक करोड़पति से अरबपति बनते जाते हैं पर तब भी वैसे वी.आई.पी. नहीं बन पाते जो अपने क्षेत्र का वैसा कल्याण कर सके जैसा कुछ विशेष वी.आई.पी,.कर पाते हैं.    देश के संविधान ने हर सांसद विधायक को बराबर की अहमियत दी है ,राष्ट्रपति के चुनाव में उनके वोट का मूल्य इस बात का पुख्ता सबूत है किन्तु इस सबके बावजूद वी.आई.पी. व् सामान्य सांसद/विधायक का अंतर साफ़ दिखाई देता है सब क्षेत्रों का वह उद्धार नहीं होता ,वह कल्याण नहीं होता जो इन वी.आई.पी. पसंद के क्षेत्रों का होता है और ऐसे में अपनी समस्याओं से छुटकारे का बस एक ही उपाय नज़र आता है ऐसे वी.आई.पी. की पसंद का क्षेत्र अपने क्षेत्र को बनाने की भगवान से प्रार्थना करना क्योंकि यदि मोदी ,मुलायम,मायावती जैसे वी.आई.पी. हमारे क्षेत्र से विधायक या सांसद होंगे तो हम भी गर्मी में सुहाने मौसम का ,सर्दी में गरमाई का और बरसात में पकोड़ों का आनंद ले रहे होंगे अर्थात हमारे क्षेत्र का भी कल्याण हो जायेगा .ऐसे में बस भगवान से यही प्रार्थना है -
  ''मोदी,मुलायम,मायावती दे दो अब भगवान ,
    इनके आने से बनें जन-जन के सब काम ,
   बिजली मिले चौबीस घंटे चमके अपना क्षेत्र
   हर मुश्किल से मुक्ति के होवें सब इंतज़ाम .''

शालिनी कौशिक
  [कौशल ]

टिप्पणियाँ

Anita ने कहा…
बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी..कब तक यह vip बिजली आएगी
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (22-07-2014) को "दौड़ने के लिये दौड़ रहा" {चर्चामंच - 1682} पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सबी अपनी अपनी प्राथमिकताएं सेट हो जाती हैं अगले चुनाव देख कर ...
Shah Nawaz ने कहा…
सटीक लेख है!
बेहद उम्दा और बेहतरीन चर्चा....
नयी पोस्ट@मुकेश के जन्मदिन पर.

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