खादिम है तेरा खाविंद ,क्यूँ सिर चढ़े पड़ी हो .
क्यूँ खामखाह में ख़ाला,खारिश किये पड़ी हो , खादिम है तेरा खाविंद ,क्यूँ सिर चढ़े पड़ी हो . ………………………… ख़ातून की खातिर जो ,खामोश हर घड़ी में , खब्ती हो इस तरह से ,ये लट्ठ लिए पड़ी हो . .................................................. खिज़ाब लगा दिखते,खालू यूँ नौजवाँ से , खरखशा जवानी का ,किस्सा लिए पड़ी हो . .................................................. करते हैं खिदमतें वे ,दिन-रात लग तुम्हारी , फिर क्यूँ न मुस्कुराने की, जिद किये पड़ी हो . .................................................. करते खुशामदें हैं ,खुतबा पढ़ें तुम्हारी , खुशहाली में अपनी क्यूँ,खंजर दिए पड़ी हो . .................................................. खिलवत से दूर रहकर ,खिलक़त को बढ़के देखो , क्यूँ खैरियत की अपनी ,खिल्ली किये पड़ी हो . .................................................. ऐसे खाहाँ की खातिर ,रोज़े ये दुनिया रखती , पर खामख्याली में तुम ,खिसियाये हुए पड़ी हो . .................................................. खुद-इख़्तियार रखते ,खुसिया बरदार हैं फिर भी , खूबी को भूल उनकी ...