कभी कभी मैं सोचती हूँ मैं कौन हूँ? क्या है मेरा अस्तित्व तब विचार आता है कि हो सकता है मैं छाया हूँ . जो रोशनी में तो दिखती है अँधेरे में उसका पता नहीं कभी सोचती हूँ कि मैं अनेकों छिद्रों वाली एक नाव हूँ जो कब डूब जाये किसी को पता नहीं, कदाचित मन में विचार आता है कि मैं एक गीली लकड़ी हूँ जो जल रही है भीतर ही भीतर और अपने धुंए से लोगों की आँखों को भी जलाने का प्रयास कर रही है. जो स्वयं भी मिट रही है और मिटा रही है औरों को भी काश मैं बन पाती एक पुष्प जो सब ओर सुगंध बिखेरता है काश मैं होती एक वृक्ष जो छाया देता है, कभी किसी से कुछ नहीं चाहता, क्योंकि मैं वह नहीं हूँ इसीलिए कभी कभी मैं सोचती हूँ मैं कौन हूँ?
पुष्प समान समझ कर तुमको, सुगंध तुम्हारी बन जायेंगे. जग में गर खो दिया जो तुमको, शायद कुछ ना पा पाएंगे. मस्त हवा सा चलना तेरा, अपलक मुझको देखना तेरा. तेरे हस्त को ना छू पाए, क्या फिर कुछ हम छू पाएंगे. ये जीवन है एक कठपुतली, चलना इसका हाथ में तेरे. तुमने हाथ जो नहीं हिलाए, कैसे फिर हम चल पाएंगे. नहीं जानते तेरे मन को, क्या देखा है तुमने सपना. तेरा फिर भी पूर्ण स्वप्न हो , ऐसी कामना कर जायेंगे.
प्यार का कोई मोल नहीं, मगर प्यार अनमोल नहीं, क्या प्यार नहीं खरीद सकता प्यार का एक बोल नहीं? जहाँ में बाँटो प्यार जितना, मिले है उससे कहीं दुगना , क्या यहाँ पर रहकर भी प्यारे नहीं जान सके मतलब इतना ?
[शालिनी कौशिक एडवोकेट मुज़फ्फरनगर ] लो फिर से ६ दिसंबर आ गयी .आज ये दिन एक सामान्य दिन लगता है किन्तु आज से १८ वर्ष पूर्व हुए घटनाक्रम ने इस दिन को इतिहास में अमर कर दिया.मैं नहीं कहती कि गलत हुआ या सही हुआ क्योंकि मैं ये कहने का अधिकार नहीं रखती क्योंकि ये धार्मिक भावनाएं हैं जो व्यक्ति से ऐसे काम करा देती हैं जिन्हें शायद कोई व्यक्ति सामान्य स्थितियों में नहीं करेगा. तब मैं छोटी थी और अगले दिन परीक्षा होने के कारण उसकी तैयारी में जुटी थी और यह बात सारे में थी कि यदि मस्जिद टूट जाती है तो हमारी परीक्षा टल जाएगी इसीलिए चाह रही थी कि ऐसा हो जाये किन्तु आज जब मैं उस वक़्त कि बात सोचती हूँ तो वास्तव में मन यही सोचता है कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में क्या ऐसी घटना होनी चाहिए थी? भारत सदैव से हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई का गीत गाता रहा है और इस भाईचारे के दम पर ही भारत से ब्रिटिश ताक़त को भगाया जा सका था.हालाँकि अंग्रेजो की फूट डालो शासन करो की नीति से हिंदुस्तान भारत-पाकिस्तान में बाँट गया किन्तु इससे हिन्दू मुस्लिम प्रेम पर कोई फर...
कहते हैं नेता यहाँ , बढ़ने ना देंगे आतंकवाद. एक ही संकल्प है उनका, फिर भी आपस में है विवाद. आपस में गर लड़ना छोड़ें, और ख़त्म करें ये दलवाद. तो मिल सकता है दुनिया को, सुरक्षा का शांतिपूर्ण स्वाद.