रिश्ते







कभी हमारे मन भाते हैं,
     कभी हैं इनसे दिल जलते,
कभी हमें ख़ुशी दे जाते हैं,
      कभी हैं इनसे गम मिलते,
कभी निभाना मुश्किल इनको,
     कभी हैं इनसे दिन चलते,
कभी तोड़ देते ये दिल को,
      कभी होंठ इनसे हिलते,
कभी ये लेते कीमत खुद की,
      कभी ये खुद ही हैं लुटते,
कभी जोड़ लेते ये जग को,
     कभी रोशनी से कटते,
कभी चमक दे जाते मुख पर,
     कभी हैं इनसे हम छिपते,
कभी हमारे दुःख हैं बांटते,
     कभी यही हैं दुःख देते,
इतने पर भी हर जीवन के प्राणों में ये हैं बसते,
और नहीं कोई नाम है इनका हम सबके प्यारे''रिश्ते''
                   शालिनी  कौशिक 


टिप्पणियाँ

kshama ने कहा…
Rishte dard bhee pahunchate hain aur khushee bhee....inhen nibhana bada mushkil hota hai!
M VERMA ने कहा…
रिश्ते ऐसे ही होते हैं
Brijendra Singh ने कहा…
बहुत खूब..
रिश्तों को नाम देने के साथ महसूस करना भी जरूरी है..
S.N SHUKLA ने कहा…
बहुत ख़ूबसूरत, बधाई.

कृपया मेरे ब्लॉग" meri kavitayen" की नयी पोस्ट पर भी पधारें, आभारी होऊंगा.
Sunil Kumar ने कहा…
मंथन करने योग्य सार्थक पोस्ट आभार
सदा ने कहा…
वाह ... बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।
भाव -भरी रचना हार्दिक बधाई .........
भाव -भरी रचना हार्दिक बधाई .........
भाव -भरी रचना हार्दिक बधाई .........
भाव -भरी रचना हार्दिक बधाई .........
Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…
sach me bde acche hote hain ye rishte.....
ANULATA RAJ NAIR ने कहा…
बहुत सुंदर..........
भावपूर्ण रचना..
babanpandey ने कहा…
आपके ब्लॉग पर आकर पढना अच्छा लगा
रिश्तों के उपर आपकी मोहक कविता मन को भा गई शालिनी जी
मेरे भी ब्लॉग पर आकर प्रोत्शाहित करने की कृपा करें
गुड्डोदादी ने कहा…
कभी हमारे दुःख हैं बांटते,
कभी यही हैं दुःख देते,


अधिकतर रिश्ते ही अपने आप को दुखी करते है

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