इम्तिहान-ए-तहम्मुल लिए जा रहे हैं ये ,
सरज़मीन नीलाम करा रहे हैं ये , सरफ़रोश बन दिखा रहे हैं ये , सरसब्ज़ मुल्क के बनने को सरबराह सरगोशी खुलेआम किये जा रहे हैं ये . .................................. मैकश हैं गफलती में जिए जा रहे हैं ये, तसल्ली तमाशाइयों से पा रहे हैं ये , अवाम के जज़्बात की मजहब से नज़दीकी जरिया सियासी राह का बना रहे हैं ये . ...................................................... ईमान में लेकर फरेब आ रहे हैं ये , मजहब को सियासत में रँगे जा रहे हैं ये , वक़्त इंतखाब का अब आ रहा करीब वोटें बनाने हमको चले आ रहे हैं ये . ..................................................... बेइंतहां आज़ादी यहाँ पा रहे हैं ये , इज़हारे-ख्यालात किये जा रहे हैं ये , ज़मीन अपने पैरों के नीचे खिसक रही फिकरे मुख़ालिफ़ों पे कसे जा रहे हैं ये . ............................................ फिरकापरस्त ताकतें उकसा रहे हैं ये , फिरंगी दुश्मनों से मिले जा रहे हैं ये , कुर्बानियां जो दे रहे हैं मुल्क की खातिर उन्हीं को दाग-ए-मुल्क कहे जा रहे हैं ये . ............................................. इम्तिहान-ए-तहम्मुल लिए जा रहे हैं ये , त...