चंहु ओर विराजमान !


 सुन्दर कर्म
पुण्य और दान
फल
भविष्य में
अगले जन्म में ,
दुःख ,पाप ,
संताप
कष्ट
वर्त्तमान में
इसी जन्म में
फिर मनुज
की प्रतीक्षा
वर्त्तमान
या
भविष्य
चयन मात्र
वर्त्तमान
तभी पाप
का साम्राज्य
कष्ट का
अस्तित्व
दुःख की
उपस्थिति
संताप की
प्रत्यक्षता
आज है
चंहु ओर
विराजमान
अपने सशक्त
स्वरुप में
चंहु ओर
विराजमान !

 शालिनी कौशिक
[कौशल ]

टिप्पणियाँ

दुख तो होगा ही, वही सोचने को बाध्य भी करेगा।
Shikha Kaushik ने कहा…
bahut sundar prastuti .aabhar
virendra sharma ने कहा…

सुन्दर है रचना। दर्शन की गूँज है।
virendra sharma ने कहा…

सुन्दर है रचना। दर्शन की गूँज है।

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