''पता है ६ दिसंबर करीब है ''
''पानी की तरह बहता है सड़कों पे रात-दिन ,
इंसां के खून की कोई कीमत नहीं रही .''
'इरफ़ान कामिल 'का लिखा यह शेर साध्वी निरंजन ज्योति के दिल्ली में जनसभा के दौरान किये गए कथन में समाये उनके आशय को साबित करने हेतु पर्याप्त है .खाद्य एवं प्रसंस्करण राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति के अमर्यादित बोल संसद के दोनों सदनों में कोहराम मचाते हैं और राजनीतिक कार्यप्रणाली के रूप में विपक्ष् उन पर कार्यवाही चाहता है ,उनका इस्तीफा चाहता है और उन पर एफ.आई.आर. दर्ज़ करने की अपेक्षा रखता है और सत्ता वही पुराने ढंग में घुटने टेके खड़ी रहती है . अपने मंत्री के माफ़ी मांगने को आधार बना उनका बचाव करती है जबकि साध्वी निरंजन ज्योति ने जो कुछ कहा वह सामान्य नहीं था .भारतीय कानून की दृष्टि में अपराध था .वे दिल्ली की एक जनसभा के दौरान लोगों को ''रामजादे-हरामजादे में से एक को चुनने को कहती हैं '' वे कहती हैं -''कि दिल्ली विधानसभा चुनावों में मतदाताओं को तय करना है कि वह रामजादों की सरकार बनायेंगें या हरामजादों की .''राम के नाम पर ६ दिसंबर १९९२ की उथल-पुथल आज भी भारतीय जनमानस के मन से नहीं उतर पाई है और २२ वर्ष बाद फिर ये देश को उसी रंग में रंगने को उतर रहे हैं और ऐसे में इनके वेंकैय्या नायडू निरंजन ज्योति के माफ़ी मांगने को पर्याप्त कह मामले को रफा-दफा करने की कोशिश कर रहे हैं जबकि यह सीधे तौर पर राष्ट्र की अखंड़ता पर हमला है जिसके लिए भारतीय दंड संहिता की धारा १५३-ख कहती है -
१५३-ख- [1] जो कोई बोले गए या लिखे गए शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यरूपणों द्वारा या अन्यथा -
[क] ऐसा कोई लांछन लगाएगा या प्रकाशित करेगा कि किसी वर्ग के व्यक्ति इस कारण से ही कि वे किसी धार्मिक ,मूलवंशीय ,भाषाई या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के सदस्य हैं ,विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठां नहीं रख सकते या भारत की प्रभुता और अखंडता की मर्यादा नहीं बनाये रख सकते ,अथवा
[ख] यह प्राख्यान करेगा ,परामर्श देगा ,सलाह देगा ,प्रचार करेगा या प्रकाशित करेगा कि किसी वर्ग के व्यक्तियों को इस कारण से कि वे किसी धार्मिक ,मूलवंशीय ,भाषाई या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के सदस्य हैं ,भारत के नागरिक के रूप में उनके अधिकार न दिए जाएँ या उन्हें उनसे वंचित किया जाये ,अथवा
[ग] किसी वर्ग के व्यक्तियों की बाध्यता के सम्बन्ध में इस कारण कि वे किसी धार्मिक ,मूलवंशीय ,भाषाई या प्रादेशिक समूह या जाति या समुदाय के सदस्य हैं ,कोई प्राख्यान करेगा ,परामर्श देगा ,अभिवाक करेगा या अपील करेगा अथवा प्रकाशित करेगा और ऐसे प्राख्यान ,परामर्श ,अभिवाक या अपील से ऐसे सदस्यों तथा अन्य व्यक्तियों के बीच असामंजस्य अथवा शत्रुता या घृणा या वैमनस्य की भावनाएं उत्पन्न होती हैं या उत्पन्न होनी सम्भाव्य हैं ,
वह कारावास से ,जो तीन वर्ष तक का हो सकेगा ,या जुर्माने से या दोनों से दण्डित किया जायेगा .
और यहाँ साध्वी निरंजन ज्योति के ये बोल भारत की एकता व् अखंडता के प्रतिकूल हैं और इस धारा के अधीन दण्डित होने योग्य किन्तु दंड भुगतने को तो जब भारतीय जनता पड़ी है तब उससे इस पार्टी या ऐसी ही सोच रखने वाली अन्य पार्टी या किसी नेता के दंड भुगतने का तो कोई मतलब ही नहीं रह जाता .भारतीय जनमानस को याद है आज भी ३० अक्टूबर १९९० को श्रीराम कार सेवा समिति का वह विज्ञापन ,जिसमे कहा गया था -
६ दिसंबर करीब है और बाबरी विध्वंस के जरिये सत्ता सुख हासिल करने वाले पहले भी सत्ता में रहे और आज भी है किन्तु जिस राम मंदिर को बनाने का वादा कर इन्होने बरसों बरस के भाईचारे को ख़त्म किया उस राम मंदिर के लिए एक ईंट रखने तक के लिए इनके कदम आज तक आगे नहीं बढे ,हाँ इतना अवश्य हुआ कि हिन्दू-मुस्लिम में मतभेद के बीज बोने में ये अवश्य सफल हो गए .फखरूल आलम ने ऐसे ही हालातों को बयां करते हुए कहा है -
''आंधी ने तिनका-तिनका नशेमन का कर दिया ,
पल-भर में एक परिंदे की मेहनत बिखर गयी .''
यही तो है वह नफरत की राजनीति जिसके बारे में कॉंग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी जी ने पहले भी कहा था कि ''भाजपा नफरत की खेती करती है .''और अब भी कह रही हैं ''कि भाजपा नफरत बोती है .''यही राजनीति पिछले दिनों भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार कर रहे थे और यही राजनीति अब इनकी ये फायर ब्रांड नेता साध्वी निरंजन ज्योति कर रही हैं .वे ''शहजादे ''कहते थे ये ''हरामजादे ''कह रही हैं और उसपर तुर्रा ये कि ये देश के भला करने वाले हैं ऐसे ही अक्लमंदों की मंद पड़ती अक्ल के बारे में ''अकबर इलाहाबादी ''कह गए हैं -
''बेइल्म अगर अक्ल को आज़ाद करेंगे ,
दुनिया तो गई दीन भी बर्बाद करेंगे .
जब खुद नहीं रहने के किसी अक्ल पे कायम
क्या खाक वो कायम कोई बुनियाद करेंगे .''
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
टिप्पणियाँ
अश्लीलता जब लोगों के लिए जिरहबख्तर हो जाये तो मौन साधना ही उचित है।
क्षमा ।
सुन्दर प्रस्तुति