इस्लाम इतना कमजोर नहीं ?

नहीं रहे मशहूर शायर अनवर जलालपुरी, गीता का उर्दू में किया था अनुवादControversy over reading Geeta verse, Aliya Khan said - I am the first Hindustani

   मशहूर शायर अनवर जलालपुरी का आज लखनऊ में निधन हो गया. वह करीब 70 वर्ष के थे. जलालपुरी के बेटे शाहकार के मुताबिक, उनके पिता ने आज सुबह लखनऊ स्थित ट्रॉमा सेंटर में आखिरी सांस ली. उनके परिवार में पत्नी और तीन बेटे हैं. उन्होंने बताया कि जलालपुरी को गत 28 दिसंबर को उनके घर में मस्तिष्क आघात के बाद किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया गया था, जहां सुबह करीब सवा नौ बजे उन्होंने अंतिम सांस ली. जलालपुरी को कल दोपहर में जोहर की नमाज के बाद अम्बेडकर नगर स्थित उनके पैतृक स्थल जलालपुर में सुपुर्द-ए-खाक किया जाएगा.मुशायरों की जान माने जाने वाले जलालपुरी ने 'राहरौ से रहनुमा तक', 'उर्दू शायरी में गीतांजलि' तथा भगवद्गीता के उर्दू संस्करण 'उर्दू शायरी में गीता' पुस्तकें लिखीं जिन्हें बेहद सराहा गया था. उन्होंने 'अकबर द ग्रेट' धारावाहिक के संवाद भी लिखे थे.
      बस जैसे ही ध्यान गया जलालपुरी जी के भगवत गीता के उर्दू में अनुवाद पर  ''उर्दू शायरी में गीता ''पुस्तक लिखने की ओर  गया तो मन एकदम चला गया कल के अख़बारों की एक सुर्खी की ओर , जिसमे देवबंदी मुफ़्ती अरशद फारुकी द्वारा एक मुस्लिम छात्रा द्वारा श्रीकृष्ण का रूप धरकर गीता के श्लोक पढ़ने को इस्लाम विरोधी बताया गया ,जबकि वह छात्रा संस्कृत श्लोक गायन की प्रदेश स्तरीय प्रतियोगिता में प्रतिभागी के रूप में ऐसा मात्र स्वांग रच रही थी और श्रीकृष्ण का रूप धारण करने का एक मात्र मकसद अपने कृत्य में वास्तविकता का पुट लाना था जिससे वास्तव में यह लगे कि भगवान कृष्ण ही उपस्थित होकर गीता के उपदेश दे रहे हैं क्योंकि भगवान कृष्ण ने ही महाभारत में गीता के उपदेश दिए हैं .
           कैसा दोगला रवैय्या है इस्लाम धर्म में नर और नारी को लेकर ,जहाँ एक कार्य पर एक की सराहना की जाती है वहीँ उसी कार्य पर दूसरे को इस्लाम विरोधी करार देना मात्र इसलिए कि वह नारी है ,कहाँ का इंसाफ है ? अगर जलालपुरी जी का गीता का उर्दू अनुवाद उन्हें सराहना का पात्र बना रहा है तो आलिया का श्रीकृष्ण बनकर गीता के श्लोकों का उच्चारण उसे इस्लाम विरोधी क्यों दिखा रहा है ? जब संस्कृत पढ़ने पर ,स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने पर ,विद्यालयों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेने पर और तो और फिल्मों में शाहरुख़ ,सलमान द्वारा माँ काली के दरबार में नृत्य करने पर धर्म कहीं आड़े नहीं आता तो यहाँ एक बच्ची द्वारा अपने कार्य को वास्तविकता का पुट दिए जाने मात्र से धर्म विरोध कैसे आड़े आ गया ?
         सद्भाव की बातें की जाती हैं,सौहार्द की बातें की जाती हैं ,जो ताकतवर हो उसकी मदद की जाती हैं ,सराहना की जाती हैं पर जो कमजोर हैं उसको लानतें भेजी  जाती हैं उसकी बेइज़्ज़ती की जाती हैं और यही कारण हैं कि जलालपुरी जी की सराहना की गयी गीता का उर्दू अनुवाद करने पर और आलिया को इस्लाम विरोधी कहा गया उसी गीता श्लोक उच्चारण को श्रीकृष्ण रूप धरकर करने पर और ऐसा साफ तौर पर इस्लाम में तालीम की कमी के कारण हैं क्योंकि अगर इस्लाम में तालीम की स्थिति अच्छी होती तो मुस्लमान मुफ़्ती कम से कम अपने मजबूत दरख्तों को तो पकड़कर बैठते और यूँ ही हवा के मामूली से झौंके से लुढ़क न जाया करते ,अरे एक बार जलालपुरी जी द्वारा किया गया गीता का उर्दू अनुवाद तो पढ़ लिया होता। 
     अनवर जलालपुरी जी का महत्वपूर्ण कार्य गीता को उर्दू शायरी में ढालने  का था .गीता के 701 श्लोकों को उन्होंने 1761 उर्दू अशआर में व्याख्यापित किया हैं .उनका कहना था ,''आज जब समाज में संवेदनशीलता ख़त्म होती जा रही हैं तब गीता की शिक्षा बेहद प्रासंगिक हैं .मुझे लगता था कि शायरी के तौर पर इसे अवाम  के सामने पेश करूँ तो एक नया पाठक वर्ग इसकी तालीम से फायदा उठा सकेगा .''उनकी बानगी कुछ यूँ हैं -
 "कर्मणये वाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन । 
  मां कर्मफलहेतुर्भू: मांते संङगोस्त्वकर्मणि" ।।
जिसकी हिंदी यह हैं -
"श्री कृष्ण भगवान ने अर्जुन से कहा: आप को अपने निर्धारित कर्तव्य का पालन करने का अधिकार है, लेकिन आप कभी कर्म फल की इच्छा से कर्म मत करो (कर्म फल देने का अधिकार सिर्फ ईश्वर को है)। कर्म फल की अपेक्षा से आप कभी कर्म मत करें, न ही आप की कभी कर्म न करने में प्रवृर्ति हो (आप की हमेशा कर्म करने में प्रवृर्ति हो) ।।" (Bhagwat Gita: Chapter Two verse 47)
  और इसे जलालपुरी जी उर्दू में कहते हैं -
''सतो गुन सदा तेरी पहचान हो /कि रूहानियत तेरा ईमान हो ,कुआँ तू न बन ,बल्कि सैलाब बन /जिसे लोग देखें वहीँ ख्वाब बन ,तुझे वेद की कोई हाज़त न हो /किसी को तुझ से कोई चाहत न हो .''
ऐसे ही -
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्‌ ॥
भावार्थ :  हे भारत! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ अर्थात साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ॥7॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्‌ ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥
भावार्थ :  साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ॥8॥
और उर्दू अनुवाद में जलालपुरी जी कहते हैं -
''फ़राएज़ से इंसा हो बेज़ार जब /हो महल सारा गुनह्गार जब ,बुरे लोगों का बोलबाला रहे /न सच बात को कहने वाला रहे ,कि जब धर्म का दम भी घुटने लगे/शराफत का सरमाया लूटने लगे ,तो फिर जग में होना हैं जाहिर मुझे /जहाँ भर में रहना हैं हाज़िर मुझे ,बुरे जो हैं उनका करूँ ख़ात्मा / जो अच्छे हैं उनका करूँ मैं भला ,धरम का ज़माने में हो जाये राज /चलो नेक रस्ते पे सारा समाज ,इसी वास्ते जन्म लेता हूँ मैं /नया एक सन्देश देता हूँ मैं .''
         कितना बेहतरीन अनुवाद हैं जलालपुरी जी का और निश्चित रूप से यह तय हैं कि अगर इस्लाम को समझने वाले और इसके पैरोकारों ने गीता न पढ़कर भी अगर अपने ही धर्म के इस रहनुमा के अनुवाद को भी सच्चे मन से पढ़ा हो तो वह मात्र श्रीकृष्ण रूप धरने पर आलिया को इस्लाम विरोधी कहने की गलती नहीं करेगा क्योंकि इस्लाम का सच्चा बंदा सच की रहनुमाई करता हैं और सच की ही पैरवी भी ,ऐसे में देवबंदी मुफ़्ती को एक बार अपने कथन की ओर फिर से गौर फरमाना चाहिए और नहीं तो अनवर जलालपुरी जी की ये पंक्तियाँ ही अपने दिलोदिमाग पर बैठा लेनी चाहियें -
''मैं जा रहा हूँ मेरा इंतज़ार मत करना ,
मेरे लिए कभी भी दिल सोगवार मत करना .''
शालिनी कौशिक 
   [कौशल ]


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