अफ़सोस ''शालिनी''को ये खत्म न ये हो पाते हैं .

अफ़सोस ''शालिनी''को ये खत्म न ये हो पाते हैं .


खत्म कर जिंदगी देखो मन ही मन मुस्कुराते हैं ,
मिली देह इंसान की इनको भेड़िये नज़र आते हैं .

तबाह कर बेगुनाहों को करें आबाद ये खुद को ,
फितरतन इंसानियत के ये रक़ीब बनते जाते हैं .

फराखी इनको न भाए ताज़िर  हैं ये दहशत के ,
मादूम ऐतबार को कर फ़ज़ीहत ये कर जाते हैं .

न मज़हब इनका है कोई ईमान दूर है इनसे ,
तबाही में मुरौवत की सुकून दिल में पाते हैं .

इरादे खौफनाक रखकर आमादा हैं ये शोरिश को ,
रन्जीदा कर जिंदगी को मसर्रत उसमे पाते हैं .

अज़ाब पैदा ये करते मचाते अफरातफरी ये ,
अफ़सोस ''शालिनी''को ये खत्म न ये हो पाते हैं .
 

शब्दार्थ :-फराखी -खुशहाली ,ताजिर-बिजनेसमैन ,
              मादूम-ख़त्म ,फ़ज़ीहत -दुर्दशा ,मुरौवत -मानवता ,
           शोरिश -खलबली ,रंजीदा -ग़मगीन ,मसर्रत-ख़ुशी ,
           अज़ाब -पीड़ा-परेशानी .

                             शालिनी कौशिक 
                                    [कौशल ]


टिप्पणियाँ

Shikha Kaushik ने कहा…
मासूमों के घर उजाड़ने वाले इन वहशी दरिंदों का अंत होना ही चाहिए .सार्थक प्रस्तुति .आभार
एक अजब सा हाल बना रखा है, इन लोगों ने विश्व का ।
काश इन्हें भी अन्त मिले..
travel ufo ने कहा…
बहुत बढिया
बड़ा मुश्‍किल है इनका मि‍ट पाना
virendra sharma ने कहा…
शालिनी जी एक मुश्किल इनके खात्में में भारत की सेकुलर ज़मात भी है अफज़ल गुरु को सज़ा की बात जब आती है उम्र अब्दुल्ला साहब को घाटी में अमन

चैन की चिंता हो जाती है .बहुत ही मौजू प्रस्तुति है आपकी

इस दौर से बिलकुल रु -ब -रु .बधाई स्वीकार करें .आप उर्दू ज़बान की अच्छी जानकार हैं .मुश्किल अल्फाजों को आपने मायने देकर हमारी मुश्किल आसान

कर दी .शुक्रिया .हमारे ब्लॉग को दस्तक देने के लिए भी

.आभार .
आह सच में इन बीमार लोगो से धरती को निजात हो.
Kailash Sharma ने कहा…
शर्म आती है इनकी वहशीपन पर...बहुत सटीक अभिव्यक्ति...

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मेरी माँ - मेरा सर्वस्व

बेटी का जीवन बचाने में सरकार और कानून दोनों असफल

बदनसीब है बार एसोसिएशन कैराना