प्रथम पुरुस्कृत निबन्ध -प्रतियोगिता दर्पण /मई/२००६ यदि महिलाएं संसार पर शासन करतीं -अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

 प्रथम पुरुस्कृत निबन्ध -प्रतियोगिता दर्पण /मई/२००६
 यदि महिलाएं संसार पर शासन करतीं
यदि महिलाएं संसार पर शासन करतीं
८ मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर मई २००६ में प्रथम घोषित अपना एक निबन्ध आपसे साझा कर रही हूँ .
इतिहास साक्षी है कि जब भी नारी को समाज व् राष्ट्र ने अपनी योग्यता दिखाने  का अवसर और अधिकार दिया तब तब नारी ने अपने को नेतृत्व  की कसौटी पर खरा साबित किया है .विश्व में महिलाओं की योग्यता का एक भरा पूरा इतिहास है .भारतीय महिलाओं द्वारा विश्व में अपनी योग्यता का कीर्तिमान नेतृत्व के क्षेत्र में स्थापित किया गया है .
      कर्नाटक प्रदेश के एक छोटे से राज्य कित्तूर के राजा मल्ल्सर्जा की पत्नी रानी चेनम्मा थी .१८१६ ईस्वी  में  मल्लसर्जा का असामयिक निधन होने पर और फिर उसके बाद पुत्र रुद्र्सर्जा के उत्तराधिकारी होने पर श्री भगवान को प्यारे हो जाने पर अंग्रेजों ने कित्तूर को हड़पने का प्रयास किया .पुत्र की मृत्यु के बाद रानी चेनम्मा ने अपना कर्तव्य समझकर राज्य की बागडोर संभाली और अंग्रेजों के साथ प्रथम युद्ध में नेतृत्व विहीन अंग्रेजी सेना पर विजय प्राप्त की .
             इंदौर के राजघराने में एक आदर्श हिन्दू कुलवधू की तरह रहने वाली अहिल्या बाई होल्कर भगवद्भक्त व् धार्मिक किस्म की महिला थी .दुर्भाग्य से मात्र २९ वर्ष की आयु में उनके पति खंडेराव की अचानक मृत्यु हो गयी .पति की मृत्यु से व्यथित होकर उन्होंने भी आत्मदाह करना चाहा  पर सास-ससुर ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया .मल्हार राव ने उन्हें उन्हें सारे अधिकार सौंप दिए .अहिल्याबाई ने अपनी कुशलता व् साहस से इंदौर का शासन प्रबंध संभाल लिया .पुत्र मालेराव की संरक्षिका बनकर कर्मठता से राज्य व्यवस्थाओं का सञ्चालन करने लगी .पुत्र की मृत्यु के पश्चात् भी वे विचलित नहीं हुई और राज्य के शासन को सुचारू रूप से चलाती रही और इंदौर राज्य पर १७६६ से १७९५ तक शासन किया उन्होंने भीलों के विद्रोह को दबाया.काशी  ,मथुरा और अयोध्या के जन्मस्थलों को मुक्त करने के लिए बहुत प्रयास किये .उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर के खंडहरों के पास एक नया मंदिर भी बनवाया .
        झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई तथा खूब लड़ी मर्दानी के रूप में इतिहास में प्रसिद्ध रानी लक्ष्मीबाई गंगाधर राव की पत्नी थी .उनकी मृत्यु पर वह झाँसी की शासिका बनी .गंगाधर राव के निस्संतान होने के कारण रानी ने दामोदर राव को अपना उतराधिकारी बनाया ,परन्तु अंग्रेजों ने इसे नहीं माना और 'व्यपगत सिद्धांत ' के तहत लॉर्ड डलहौजी ने झाँसी को हड़पना चाहा रानी ने चतुरता से इस कठिन परिस्थिति का सामना किया और १८५७ में हुए विद्रोह से पूर्व ही किले पर अपना कब्ज़ा पुनर्बहाल किया .उन्होंने जीते जी अंग्रेजों की गुलामी स्वीकार नहीं की और अपनी व् राज्य की आजादी के लिए संघर्ष किया .जनरल ह्यूरोज़ ने अपने दुर्जेय शत्रु के बारे में कहा था कि,''यहाँ वह औरत सोई हुई है ,जो विद्रोहियों में एकमात्र मर्द थी .''
   महिलाओं का इतिहास न केवल सत्ता के नेतृत्व में स्वर्णिम रहा है अपितु महिलाओं ने सत्ता को कुशल नेतृत्व दिए जाने में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है .
     शिवाजी की माता जीजाबाई का नाम विश्व में ऐसी ही माताओं [महिलाओं]में स्थान पाता है .शादी के कुछ वर्षों के पश्चात् पति शाहजी द्वारा छोड़े जाने पर उन्होंने बालक शिवाजी का पालन पोषण किया ,उन्हें हिन्दू धर्म तथा शास्त्रों की शिक्षा दी .वे उन्हें रामायण और महाभारत की कहानियां सुनाया करती थी .उन्होंने शिवाजी को अपने गौरवशाली अतीत का परिचय दिया .उन्होंने विश्व के समक्ष मातृत्व का श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत किया और शिवाजी का राज्याभिषेक किया .
    गौंडवाना के शासक संग्राम शाह के बेटे की पत्नी रानी दुर्गावती ने पति की मृत्यु के बाद शासन सत्ता संभाली और अपने अल्पवयस्क  पुत्र वीर नारायण को गद्दी पर बिठाकर उसकी संरक्षिका बनकर कुशलता पूर्वक शासन किया और साहस का परिचय दिया .
     बीजापुर के भूतपूर्व सुल्तान की पत्नी तथा अहमदनगर के सुल्तान बुरहान की बहन चांदबीबी एक योग्य महिला थी वह मृतक सुल्तान के पुत्र बहादुर की बुआ लगती थी .वह अपने भतीजे के पक्ष में थी .बीजापुर का शासन उन्होंने आदिलशाह के वयस्क  होने तक भली-भांति संभाला था .अहमदनगर में वे सुल्तान बहादुर के पक्ष में थी .वजीर से अनबन हो जाने पर वह स्वयं सुल्तान बहादुर के साथसतारा के किले में कैद हो गयी .इस फूट का लाभ उठाते हुए अकबर ने गुजरात के सूबेदार शाहजादे मुराद और अब्दुर्रहीम खान-खाना के नेतृत्व में आक्रमण करने भेजा .चांदबीबी  ने दुर्ग की रक्षा करने में अद्भुत साहस का परिचय दिया और १५९६ ईस्वी  में समझौता कर लिया .बहादुर को जो अल्पवयस्क  था अहमदनगर का सुल्तान मान लिया गया .
        इस प्रकार भारत का प्राचीन इतिहास सत्ता में रजिया सुल्तान ,ताराबाई ,सावित्रीबाई आदि महिलाओं की शौर्यगाथाओं से भरा हुआ है .ये उदाहरण तो ऐसे हैं जिन्होंने रुढियों से दबे भारतीय समाज में महिला शक्ति की चिंगारी पैदा की थी और सम्पूर्ण विश्व के समक्ष अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया था ,किन्तु आज जब प्रतिस्पर्धा का युग है तब भी महिलाओं ने अपनी इस चिंगारी को बुझने ही नहीं दिया है अपितु इसके प्रज्ज्वलित रहने में घी डालने का काम किया है .
                                          
आधुनिक युग में विश्व के कई देश महिलाओं के नेतृत्व में प्रगति की ओर अग्रसर हैं .विश्व में प्रथम महिला प्रधानमंत्री के गौरव श्रीलंका की श्रीमाओ भंडारनायके ने प्राप्त किया था .मारियो एस्तेला ने  अर्जेंटीना की राष्ट्रपति के रूप में विश्व की प्रथम महिला राष्ट्रपति के रूप में स्थान पाया था और अब कई देश ऐसे हैं जो महिला नेतृत्व में प्रगति की ओर बढ़ रहे हैं .भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ,श्रीलंका की राष्ट्रपति चन्द्रिका कुमारतुंग ,पाक प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ,म्यांमार की आंग सान सू की ,ब्रिटेन की मार्गरेट थैचर आदि कितनी ही महिलाओं ने सत्ता में अपनी श्रेष्ठता साबित की .यह महिला नेतृत्व ही है जो बांग्लादेश जैसे कट्टरपंथी  देश में भी महिला नेतृत्व में सुरक्षित महसूस करने की प्रवृति  उत्पन्न करता है .वहां सत्ता खालिदा जिया और शेख हसीना वाजेद के हाथों में ही पलटती रहती है .यह सत्ता में महिलाओं की योग्यता ही है जो अमेरिका के राष्ट्रपति को अपनी कैबिनेट में विदेश मंत्री जैसा महत्वपूर्ण पद महिलाओं को प्रदान कराती है .मेडलिन अल्ब्राईट और कौंडोलीज़ा  राइस  ने अमरीकी विदेश मंत्री के पद को सुशोभित ही नहीं किया अपितु उसे विश्व में एक नई पहचान भी दिलाई है .
           महिलाओं के नेतृत्व की सफलता पर पुरुष प्रधान इस विश्व में महिलाओं की योग्यता पर अनेकों प्रश्न खड़े कर महिलाओं की योग्यता को दरकिनार करने की कोशिश की जाती है .उनके बारे में कहा जाता है कि वह कमजोर है .पुरुषों की अपेक्षा कम शक्तिशाली है .पुरुषों के मुकाबले कम दिमाग रखती है .वह भावुक होती है और तुरंत निर्णय पर पहुँचने में अक्षम होती है .
           यदि इन्ही आरोपों के मद्देनज़र महिलाओं की ताकत के परिप्रेक्ष्य में देखा जाये तो यह आरोप कहीं से भी गले के नीचे नहीं उतरता .भारत की सबसे शक्तिशाली प्रधानमंत्री की उपाधि अब तक केवल श्रीमती इंदिरा गाँधी को प्राप्त है जिन्होंने कठोर सैनिक कार्यवाही द्वारा पाकिस्तानी आक्रमण की सम्भावना हमेशा के लिए समाप्त की .वे भारत जैसे विकासशील राष्ट्र में एक मजबूत प्रधानमंत्री साबित हुई .जिनकी मजबूती की मिसाल आज भी भारतीय सेना और जनता के मुख पर है .अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर की आतंकवादी कार्यवाही के मद्देनज़र इंदिरा गाँधी ही थी जिन्होंने राजनीतिक महत्वाकांक्षा से ऊपर उठकर देश हित को देखा और वहां सेना भेजकर आतंकवादी कार्यवाही पर रोक लगाई .
Indira GandhiMamata BanerjeeSheila DikshitJayalalithaa Vasundhara Raje
प्रथम आई.पी.एस.महिला किरण बेदी तो कुशल प्रशासन के क्षेत्र में एक मिथक बन चुकी है बड़े से बड़े दुर्दांत गुंडे उनके नाममात्र से कांपते थे .अपनी प्रशासनिक क्षमता के बल पर वह आज तक संयुक्त राष्ट्र संघ की पुलिस विभाग के शीर्ष पद पर विराजमान है .
             राजनीति के क्षेत्र में दिमाग से आशय कूटनीति से होता है और पाकिस्तान से अलगकर स्वतंत्र बांग्लादेश का निर्माण कराना श्रीमती इंदिरा गाँधी की कूटनीतिक सफलता ही थी .ऐसे ही किसी भी राष्ट्र के लिए विदेश मामले सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं क्योंकि राष्ट्र को अन्य राष्ट्रों के प्रति विभिन्न नीतियाँ अपनाकर राष्ट्रहित देखना पड़ता है .ऐसे में कौडोलिज़ा राईस को जॉर्ज बुश द्वारा अपना विदेश मंत्री बनाना महिला के दिमाग की क्षमता पर उठे सब सवालों को दरकिनार करने हेतु पर्याप्त है .
       यह महिला शक्ति ही है जिसका बखान हमारे धार्मिक ग्रंथों में भी अति सुन्दर शब्दों में किया गया है .देवी सप्तशती की कथा के अनुसार देवताओं को भी महिषासुर ,चंड-मुंड ,शुम्भ-निशुम्भ आदि राक्षसों से रक्षा हेतु देवी दुर्गा की शरण में जाना पड़ा था और उन्होंने ही राक्षसों का वध कर देवताओं को भयमुक्त राज्य प्रदान किया था .
   भावुकता को स्त्री की कमजोरी कहना एक पत्थर ह्रदय पुरुष का ही काम है .भावुकता तो वह गुण है जो स्त्री को जगत जननी के रूप में प्रतिष्ठापित किये है .दूसरों के दुःख दर्द को समझना और महसूस करना ही भावुकता है और आज के कठोर हो चले संसार में नारी का यही गुण है जो नारी को सत्ता दिलाने और सत्ता में उसकी सफलता को सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त है .
       आज संसार महिलाओं की योग्यता को पहचान चुका है और इसी का प्रभाव है जो यूरोप ,एशिया ,अमरीका ,अफ्रीका आदि सभी स्थानों पर महिला नेतृत्व की स्थापना हो रही है .संसार में आज तक कितने ही पुरुषों ने तानाशाह के रूप में शासन कर जनता से बर्बरतापूर्वक व्यवहार  किया है और ऐसे शासकों द्वारा प्रगति के सम्बन्ध में भी कोई विशेष प्रयास नहीं किये गए .आज समय महिलाओं के साथ है और सम्पूर्ण विश्व के वासी अपने घावों पर मरहम लगाने हेतु महिला नेतृत्व को स्वीकार कर रहे हैं .विश्व की सबसे छोटी इकाई परिवार है और परिवार के सभी सदस्यों की सफल जीवन की सूत्रधार महिला ही होती है ,किन्तु ऐसा नहीं कि वह केवल परिवार तक सीमित होती है या केवल एक परिवार को ही सफल कर सकती है .विश्व में महिलाओं ने अपनी योग्यता द्वारा यह साबित कर दिया है कि भले ही वह छोटे से परिवार से जुडी हो या विश्व रुपी विस्तृत परिवार से ,दोनों से सम्बद्ध हो अपने परिवार को सफलता की ओर अग्रसर करने में सक्षम है .नेपोलियन बोनापार्ट ने नारी में निहित इन्ही संभावनाओं को लक्ष्य करके कहा था ,''मुझे एक योग्य माता दो ,मैं तुमको एक योग्य राष्ट्र दूंगा .''और आज यह बात विश्व में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान बना चुकी है और देखते ही देखते जर्मनी में एंजेला मर्केल को पहली महिला चांसलर व् लाइबेरिया की राष्ट्रपति के रूप में चुनी गयी एलन जोन्सन सरलीफ अफ्रीका की पहली चुनी महिला राष्ट्राध्यक्ष के रूप में विश्व में सम्मान पा रही हैं और विश्व इनकी योग्यता को स्वीकार कर रहा है .
    ये तो रही २००६ में मेरे निबन्ध की बात किन्तु आज यह स्थिति और भी प्रशंसनीय हो चुकी है .भारत में श्रीमती .प्रतिभा देवी सिंह पाटिल प्रथम महिला राष्ट्रपति और मीरा कुमार प्रथम महिला लोकसभा अध्यक्ष के रूप में महिलाओं का सर ऊँचा कर चुकी है आज सभी क्षेत्रों में महिलाएं नाम कमा रही हैं और आने वाला समय भी इनका ही रहने वाला है यह स्थापित कर रही हैं .मेरा तो यही कहना है -
  तू अगर चाहे झुकेगा आसमां भी सामने ,
      दुनिया तेरे आगे झुककर सलाम करेगी .
           जो आज न पहचान सके तेरी काबिलियत
                कल उनकी पीढियां तक इस्तेकबाल करेंगी .
                      शालिनी कौशिक
                              [कौशल]


टिप्पणियाँ

vishvnath ने कहा…
सच को जानते हुए भी लोग स्वीकारने में हिचकिचाते है ....पुरुष सत्तात्मक व्यवस्था को खोने का डर है शायद।
बहुत अच्छा लिखा है आपने .

Vishvnath

http://vishvnathdobhal.blogspot.in/
रविकर ने कहा…
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवारीय चर्चा मंच पर ।।

DR. ANWER JAMAL ने कहा…
दिलों पर आज भी औरतों की ही हुकूमत है।
महिला दिवस पर सुन्दर प्रस्तुति।
virendra sharma ने कहा…
राष्ट्र ने अपनी योग्यता दिखने (दिखाने )का अवसर और अधिकार दिया तब तब नारी ने अपने को नेतृत्व की कसौटी पर खरा साबित किया है।।।।।।।।। १८१६ इसवी(ईस्वी सन ) में मल्लसर्जा का असामयिक निधन होने पर और फिर उसके बाद पुत्र रुद्र्सर्जा ..............अपने अल्पव्यस्क (अल्प -वयस्क )पुत्र वीर।।।।।।। बुरहान की बहन चांद्बीबी (चाँदबीबी ).....जो बांग्लादेश जैसे कट्टर्पंती (कट्टरपंथी ).....देश।।।।।प्रवर्ति (प्रवृत्ति )उत्पन्न करता है .वहां सत्ता खालिदा जिया और शेख हसीना वाजेद के हाथों में ही पलटती रहती है .....कौडोलिज़ा राइस (.कोंडॉलिजा राइस )...........पुरुषों की अपेक्षा कम शक्तिशाली है (हैं )........ .पुरुषों के मुकाबले कम दिमाग रखती है .(हैं ,बहुवचन के रूप में प्रयुक्त हैंयहाँ "हैं "पुरुषों के सापेक्ष ,महिलाएं )............और तुरंत निर्णय पर पहुँचने में अक्षम होती है(हैं )....... भले ही वह छोटे से परिवार से जुडी।।।।।।।। (ड़ ).......हो या विश्व रुपी विस्तृत परिवार से ,दोनों से सम्बद्ध हो अपने परिवार को सफलता।।।।।।के रूप में महिलाओं का सर ऊँचा कर चुकी है(हैं )। कल उनकी पीढियां (पीढ़ियाँ ).....तक इस्तेकबाल करेंगी

व्यापक कलेवर की सुन्दर रचना जानकारी से लबालब इतिहास और वर्तमान से .रु -ब -रु कराती .
virendra sharma ने कहा…
राष्ट्र ने अपनी योग्यता दिखने (दिखाने )का अवसर और अधिकार दिया तब तब नारी ने अपने को नेतृत्व की कसौटी पर खरा साबित किया है।।।।।।।।। १८१६ इसवी(ईस्वी सन ) में मल्लसर्जा का असामयिक निधन होने पर और फिर उसके बाद पुत्र रुद्र्सर्जा ..............अपने अल्पव्यस्क (अल्प -वयस्क )पुत्र वीर।।।।।।। बुरहान की बहन चांद्बीबी (चाँदबीबी ).....जो बांग्लादेश जैसे कट्टर्पंती (कट्टरपंथी ).....देश।।।।।प्रवर्ति (प्रवृत्ति )उत्पन्न करता है .वहां सत्ता खालिदा जिया और शेख हसीना वाजेद के हाथों में ही पलटती रहती है .....कौडोलिज़ा राइस (.कोंडॉलिजा राइस )...........पुरुषों की अपेक्षा कम शक्तिशाली है (हैं )........ .पुरुषों के मुकाबले कम दिमाग रखती है .(हैं ,बहुवचन के रूप में प्रयुक्त हैंयहाँ "हैं "पुरुषों के सापेक्ष ,महिलाएं )............और तुरंत निर्णय पर पहुँचने में अक्षम होती है(हैं )....... भले ही वह छोटे से परिवार से जुडी।।।।।।।। (ड़ ).......हो या विश्व रुपी विस्तृत परिवार से ,दोनों से सम्बद्ध हो अपने परिवार को सफलता।।।।।।के रूप में महिलाओं का सर ऊँचा कर चुकी है(हैं )। कल उनकी पीढियां (पीढ़ियाँ ).....तक इस्तेकबाल करेंगी

व्यापक कलेवर की सुन्दर रचना जानकारी से लबालब इतिहास और वर्तमान से .रु -ब -रु कराती .
बेहतरीन प्रस्तुति.बहुत ही सटीक निबन्ध,,,,बधाई शालिनी जी,,,

Recent post: रंग गुलाल है यारो,
Neeraj Neer ने कहा…
बहुत सुन्दर निबंध. महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनायें .
नीरज 'नीर'
इस अवसर पर मेरी भी कविता पढ़ें :
KAVYA SUDHA (काव्य सुधा): “नारी”
Shalini kaushik ने कहा…
aapke margdarshan ke anusar post me sudhar kar diya gaya hai .aabhar
Udan Tashtari ने कहा…
दिवस विशेष की शुभकामनाएँ...
vijai Rajbali Mathur ने कहा…
आज भी इस लेख की ऐतिहासिकता एवं सार्थकता बहुत महत्वपूर्ण है। यह एक संग्रहणीय लेख है।
हमे पहले ही आभास हो गया था---विजय राजबली माथुर
Dinesh pareek ने कहा…
बहुत ही सार्धक प्रस्तुति

आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में

तुम मुझ पर ऐतबार करो ।
प्रभावशाली व सटीक लेख .....
शुभकामनाएँ !
आभार !
हमारे देश में एक नहीं कई हस्तियाँ (स्त्रियाँ) हैं जिन्होंने पुरुष समाज में भी इतिहास रचा है. इतिहास और वर्तमान की महत्वपूर्ण जानकारियों से परिपूर्ण लेख. आपके इस पुरस्कृत लेख के लिए बधाई.
---अच्छा परन्तु एक सामान्य आलेख है ....परन्तु कुछ अर्थहीन व अनर्गल दृष्टांत विसंगति उत्पन्न करते हैं और प्रभाव को कम----
१-जनरल ह्यूरोज़ ने अपने दुर्जेय शत्रु के बारे में कहा था कि,''यहाँ वह औरत सोई हुई है ,जो विद्रोहियों में एकमात्र मर्द थी .'.....इसका अर्थ है उस समय बाकी सभी स्वतन्त्रता सेनानी नामर्द थे ..यह एक अँगरेज़ भारतीयों की बुराई कर रहा है और हम प्रशंसा समझ कर फूल रहे हैं ..

२ .नेपोलियन बोनापार्ट ने नारी में निहित इन्ही संभावनाओं को लक्ष्य करके कहा था ,''मुझे एक योग्य माता दो ,मैं तुमको एक योग्य राष्ट्र दूंगा .'----और उसी नेपोलियन को दुनिया में डिक्टेटर, अत्याचारी, मानवता का शत्रु कह कर दुत्कारा जाता है ....
Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

दिनांक 11/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!

कविता रावत ने कहा…
यदि महिलाएं संसार पर शासन करतीं पर बहुत बढ़िया प्रस्तुति ..
काश यदि ऐसा होता तो महिला दिवस मनाने की नौबत ही नहीं आती!! ..

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