एक और नौकर अपनी गरीबी की भेंट चढ़ गया .
कहने के लिए देश की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री किन्तु जो कहना चाहिए वह कोई नहीं कहता जो कि वास्तव में शर्मनाक भी है और दुखद भी क्योंकि ये पहला मामला होगा जिसमे माँ-बाप ने अपनी बेटी को मारा और उसके बाद अपने अपराध को स्वीकार नहीं किया ,आमतौर पर जिन मामलों में ऑनर किलिंग होती है वहाँ अपनी संतान को मारने के बाद व्यथित माँ-बाप स्वयं अपने अपराध को स्वीकार लेते हैं किन्तु यहाँ मामला उल्टा ही है ,यहाँ न केवल अपराध को अलग रूप देने की कोशिश की गयी बल्कि कानून को भी धोखा देने के लिए भरसक प्रयत्न किये गए .
आरुषि हेमराज की हत्या मामले को कोई अलग रूप देने की तो आवश्यकता ही नहीं थी एक सामान्य घटना को देखते हुए फ़ौरन ही ये मान लिया गया कि हेमराज से उसके अवैध ताल्लुकात थे और राजेश तलवार ने ये देखा और अचानक व् गम्भीर प्रकोपन के अधीन हेमराज व् आरुषि की हत्या की किन्तु समझ में ये नहीं आता कि जो बात सब समझ चुके हैं वह बात राजेश और नुपुर किससे छिपा रहे हैं ?
एक नौकर की स्थिति यहाँ बहुत ख़राब है इसका ताज़ा मामला डॉ.जागृति ने दिखा ही दिया है और सभी देखते भी हैं कि जिस घर में नौकर हैं वहाँ कोई भी गलत काम हो दोष उन्ही के मत्थे मढ दिया जाता है भले ही वह काम घर के ही किसी सदस्य ने किया हो .आरुषि केस में भी पहले घर के अन्य नौकर दोषी माने गए थे किन्तु हेमराज की लाश घर में मिलते ही स्थिति पलट गयी ,इस सम्बन्ध में अगर संवेदनशील सोच लिए अगर कुछ दिखा है तो वह अमर उजाला का २६ नवम्बर का सम्पादकीय है -
तलवार दंपति कोई पेशेवर हत्यारे नहीं हैं, लेकिन उन्होंने जो कुछ किया, उसकी सभ्य समाज में कोई जगह नहीं है।
[हमारे समय की सबसे बड़ी ′मर्डर मिस्ट्री′ माने जा रहे आरुषि-हेमराज हत्याकांड पर सीबीआई की विशेष अदालत का फैसला स्तब्ध करने वाला है। अभियोजन के तौर-तरीकों और लंबी कानूनी प्रक्रिया पर भले ही सवाल उठाए जाएं, मगर अदालत ने आखिरकार आरुषि के माता-पिता डॉ नुपूर और राजेश तलवार को ही उसकी और घरेलू नौकर हेमराज की हत्या का दोषी पाया है। असल में 16 मई, 2008 की जिस रात इस दोहरे हत्याकांड को अंजाम दिया गया था, उसके बाद से परिस्थितिजन्य साक्ष्य तलवार दंपति की ओर ही इशारा कर रहे थे। अभियोजन का यह तर्क अपने आपमें काफी मजबूत था कि जिस फ्लैट में चार लोग हों और दो की हत्या हो जाए और बचे दो को कुछ पता ही नहीं चले, यह कैसे संभव है! निश्चित रूप से इस मामले में सीबीआई की भूमिका भी शुरू से सवालों के घेरे में रही, जिसने एक समय इस मामले को बंद करने तक का फैसला ले लिया था। मगर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि तलवार दंपति ने भी अपने स्तर पर हर तरह के कानूनी दांव-पेच आजमाने में कोई कसर नहीं छोड़ी; स्थिति यहां तक भी आई कि सर्वोच्च अदालत को उन्हें कई बार फटकार तक लगानी पड़ी। उनके व्यवहार से ऐसा लग रहा था, मानो वह इस मामले को लंबा खींचना चाहते हैं। तलवार दंपति वाकई कोई पेशेवर हत्यारे नहीं हैं, लेकिन उन्होंने जो कुछ किया, उसकी सभ्य समाज में कोई जगह नहीं है। यह मामला कहीं न कहीं उस जीवनशैली पर भी सवालिया निशान है, जहां वर्जनाएं तेजी से टूट रही हैं। हैरत की बात है कि दोषी ठहराए जाने के बावजूद तलवार परिवार का व्यवहार पीड़ितों जैसा है। जबकि जरूरत उन तीन नौकरों के बारे में भी सोचने की है, जिन्हें एक समय हत्यारा करार दिया गया था। क्या इस पर विचार नहीं होना चाहिए कि उन्हें और उनके परिजनों को जो यातनाएं झेलनी पड़ीं, उसकी भरपाई कैसे होगी? और फिर हेमराज के परिजनों पर जो बीत रही है, उसका क्या? इस फैसले से तलवार दंपति का असंतुष्ट होना स्वाभाविक है, मगर उनके लिए ऊपरी अदालतों के दरवाजे खुले हुए हैं, जहां उनके वकील जाने का ऐलान कर ही चुके हैं। नुपूर और राजेश तलवार को भारतीय न्याय व्यवस्था पर भरोसा रखना चाहिए।][अमर उजाला से साभार ]
राजेश व् नुपुर दोनों को अदालत ने दोषी माना और उन्हें उम्रकैद की सजा दी हालाँकि वे इससे कहीं अधिक सजा के हक़दार थे क्योंकि जो कुछ भी वे कर रहे थे वह कहीं से भी अचानक उपजी परिस्थिति का परिणाम नहीं था बल्कि सोची समझी साजिश थी किन्तु इन सबमे अगर कहीं उपेक्षा हो रही है तो वह है हेमराज की हत्या की .मात्र इसलिए कि उसकी हत्या इनके घर में हुई और इनकी लड़की आरुषि के साथ हुई ,ये मान लेना कि हेमराज के उससे गलत सम्बन्ध थे ,एक पुरातन सोच है ,क्यूँ नहीं सोचा जा रहा है ये कि हेमराज और आरुषि डॉ .राजेश तलवार के सम्बन्ध में ज़रूर कुछ ऐसा जान गए थे जो उनके अनुसार उन्हें नहीं जानना चाहिए था और ये हत्या उसी अनधिकृत जानकारी प्राप्त करने का परिणाम रही हो क्योंकि आरुषि की हत्या का यदि ऑनर किलिंग कारण है और राजेश तलवार व् नुपुर तलवार ने ही वह हत्या की है तो अब इसमें कुछ छिपा सकते ही नहीं हैं क्योंकि लगभग सारी दुनिया इस बारे में जान चुकी है और यदि उसकी हत्या उन्होंने नहीं की है और अदालत इस बारे में गलत समझ रही है तो वे ही बताएं कि हेमराज की लाश क्यूँ छिपाई ?आरुषि की अस्थियां जल्दी में क्यूँ विसर्जित की ?आरुषि के अंगों की सफाई क्यूँ की?दोनों कमरों के बीच की स्थिति में क्यूँ परिवर्तन किया ?और भी बहुत कुछ ऐसा है जो इन दोनों को संदेह के घेरे में लाता है और अब तो अदालत भी इन्हें ही दोषी मान चुकी है किन्तु अफ़सोस केवल ये है कि गरीब आदमी जो कि यहाँ हेमराज था मार डाला गया और हमेशा की तरह बदनाम मौत मारा गया उसका पक्ष न किसी ने रखा और न किसी ने इसकी ज़रुरत ही समझी और हमेशा के लिए एक और नौकर अपनी गरीबी की भेंट चढ़ गया .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
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