भ्रष्टाचार का वास्तविक दोषी कौन ?

२० मार्च २०११ का हिंदुस्तान देखिये क्या कहता है-
करप्शन कप का जारी खेल,पैसे की है रेलमपेल,
कलमाड़ी के चौके तो ए-राजा के छक्के,सब हैं हक्के-बक्के,
बना कर गोल्ड नीरा यादव हो गयी क्लीन-बोल्ड,
नीरा राडिया की फील्डिंग,और वर्मा-भनोट की इनिंग,
सी.बी.आई ने लपके कुछ कैच,
हसन अली मैन ऑफ़ द मैच ,
आदर्श वालों की बैटिंग,
बक अप जीतना है वर्ल्ड करप्शन कप.
हांग-कांग स्थित पोलटिकल एंड इकोनोमिक रिस्क कंसल्टेंसी का खुलासा भ्रष्टाचार में भारत चौथे नंबर पर और स्थानीय स्तर के नेता राष्ट्रिय स्तर के नेताओं के मुकाबले अधिक भ्रष्ट .
२४ मार्च २०११ के हिंदुस्तान के नक्कारखाने शीर्षक के अंतर्गत राजेंद्र धोद्परकर लिखते हैं''यहूदी की लड़की''नाटक का प्रख्यात संवाद है ,
''तुम्हारा गम गम है हमारा गम कहानी ,
तुम्हारा खून खून है,हमारा खून पानी.''
अमेरिका के राष्ट्रपति थिओडोर रूजवेल्ट का एक वाक्य है  ,जो उन्होंने निकारागुआ के तानाशाह सोमोजा के बारे में कहा था कि''यह सही है कि वह है लेकिन वह हमारा है [छूटे हुए शब्द का अंदाज़ा आप खुद लगा लें]ये दोनों वाक्य भारतीय राजनीति के सूत्र वाक्य हैं.''
भारतीय  राजनीति  भ्रष्टाचार  के  दल  दल  में  फंसी  है  .भारतीय  राजनीति  ही  क्या  कहें हर  क्षेत्र  भ्रष्टाचार की गहरे को छू रहा है .सबसे पहले नगर पालिकाओं में भ्रष्टाचार जहाँ मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाने   तक के लिए ऊपर से पैसे देने पड़ते हैं ताकि वह ठीक समय से मिल जाये.दुकानों पर जाओ तो खाने के सामान में पौष्टिक तत्व कम और कंकड़ पत्थर ज्यादा मिलते हैं.सब्जी मंडी जाओ तो  चमकदार अपनी और आकृष्ट करने वाली सब्जियों में रासायनिक तत्वों की महक ज्यादा आती है.दूध में दूध कम  पानी ज्यादा मिलता है.विद्यालयों में जाओ तो पढाई ,प्रवेश के नाम पर लूट खसोट ज्यादा दिखती है .प्रतियोगी परीक्षा देने जाओ तो अभ्यर्थी के ज्ञान से ज्यादा महत्व उसके माँ-बाप की कमाई रखती है .न्याय के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाओ तो स्वयं सुप्रीम कोर्ट के अनुसार ३० अप्रैल  हिंदुस्तान में प्रकाशित वक्तव्य-''भ्रष्टाचार से सुप्रीम कोर्ट आहत शीर्षक के अंतर्गत-दूसरों को क्या कहें जब हम खुद शीशे के घर में बैठे हैं .हमारी बिरादरी के लोग ऐसे मुकदमों का फैसला करते हैं जिनसे  वे खुद लाभान्वित होते हैं.साथ ही नौकरशाहों के लिए भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा-इनमे यह जबरदस्त आपसी समझ है-,''तू मेरी कमर खुजा मैं तेरी खुजाऊं.'' विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लेख आदि छपवाने में पहचान लेखक की आलेखन क्षमता से ज्यादा वजन रखती है.हालात ये हैं कि नदीम नैय्यर कहते हैं-
''उम्मीदों पर ओस गिरा दी जाती है,
चूल्हे की आग बुझा दी जाती है ,
पहले हमको खाक बनाया जाता है,
फिर चुपके से खाक उड़ा दी जाती है.''
आज भारत में भ्रष्टाचार एक अहम् मुद्दा है और जहाँ देखो वहां भ्रष्टाचार पर हमले हो रहे हैं और तब भी रक्तबीज की तरह भ्रष्टाचार का राक्षस फैलता जा रहा है .जिसे देखो वह भ्रष्टाचार के खिलाफ गला फाड़ रहा है और ऐसा लगता है कि उस गला फाड़ने वाले को ही भ्रष्टाचार से सबसे ज्यादा तकलीफ है .राज्य के लोग केंद्र को कोस रहे हैं और केंद्र सारा ठीकरा राज्य के सर फोड़ रहा है.हरेक राजनीतिक दल,सामाजिक गुट व्यापारी वर्ग आदि के लिए दुसरे का भ्रष्टाचार भ्रष्टाचार है और अपना खुद का भ्रष्टाचार मजबूरी है.इस सन्दर्भ में सबसे चौन्काऊँ व् नाटकीय टिपण्णी कर्नाटक के पूर्व मुख्या मंत्री एच.डी. कुमारस्वामी ने की है .उनका मानना है-''कि यदि महात्मा गाँधी भी होते तो आज भ्रष्टाचार के जल से निकलने का रास्ता नहीं दूंढ पाते और वह भी भ्रष्टाचार के जरिये बैंक में  धन इकठ्ठा करते या राजनीति छोड़ देते.''
आज राजनीतिक क्षेत्र में तो लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ उठ खड़े हुए हैं किन्तु यह तो भ्रष्टाचार का मात्र एक क्षेत्र है और सर्वाधिक महत्व यह इसलिए रखता है क्योंकि यदि इस क्षेत्र में किसी की अच्छी पहचान है तो उसके अपने कम चुटकियों में हो जाते हैं किन्तु यदि हम पूर्ण रूप से विचार करें तो भ्रष्टाचार के सम्पूर्ण स्वरुप पर विचार करना होगा और इसको हटाने के लिए एकजुट होकर ठोस प्रयास करना होगा.वसीम बरेलवी ने कहा है-
''वैसे तो एक आंसू ही बहाकर मुझे ले जाये ,
वैसे कोई तूफान मुझे हिला नहीं सकता.
उसूलों पे अगर आंच आये टकराना ज़रूरी है,
जिंदा हैं तो जिंदा नज़र आना ज़रूरी है.''
आज भ्रष्टाचार मिटाने को अन्ना खड़े हो रहे हैं ,बाबा रामदेव आगे बढ़ रहे हैं साथ इनके करोड़ों हाथ जुड़ रहे हैं किन्तु सर्वाधिक महत्वपूर्ण है सम्पूर्ण जन समाज का उठ खड़े होना जिसने अपना मतलब पूरा करने को हर क्षेत्र में स्वयं को दबाना ज़रूरी समझा .कैसे भी हो अपना भविष्य संवारने का स्वप्न देखा .भ्रष्टाचार  में स्वयं में कोई बुरे नहीं है ये तो जनता का भय व् स्वार्थ है जो इसे बढ़ने का समय व् स्थान दे रहा है .स्वयं देखें कि एक मच्छर जो आपके आस-पास उड़ता है आप या तो उससे डरकर मच्छरदानी का सहारा लेते हैं या कोइल जला कर अपने पास से दूर भगा देता हैं किन्तु ये मच्छर से मुक्ति नहीं होती मुक्ति के लिए प्रशासन द्वारा फोगिंग कराये जाने पर ही पूर्ण राहत दिखाई देती है.मतलब सम्पूर्ण सफाया.हमारे क्षेत्र का ही उदहारण लें-विभिन्न सफाई कर्मी जो घरों से गंदगी ढोकर लाते हैं कहीं भी चाहे वह सुन्दर स्वच्छ इलाका हो या भरी जन समूह का इलाका गंदगी डालना शुरू कर देता हैं और लोग उनसे सम्बन्ध न बिगड़ जाएँ ,वे उनके घर कम करना बंद न कर दें इस डर से उनसे कुछ नहीं कहते,क्योंकि वे मात्र अपना हित देखते हैं और इस स्वहित देखने की नीति ने ही भ्रष्टाचार को बढाया है .और इस लिए मेरी नज़र में भ्रष्ट्राचार का वास्तविक दोषी और कोई नहीं सम्पूर्ण जनसमूह है .आप ही बताइए कि वही सी.बी.आई.जिसने आरुशी केस बंद कर दिया था आखिर न्यायालय का आदेश आने पर कैसे क्लोज़र रिपोर्ट ले आयी?जिस लोकपाल बिल पर सरकार आगे बढ़ने को तैयार नहीं होती थी कैसे जनता के एकजुट होने पर समिति बना आगे की कार्यवाही को तैयार हो गयी?क्यों मुज़फ्फरनगर की कचहरी में मास्टर विजय सिंह दबंग लोगों के भूमि हथियाने के खिलाफ १४-१५ साल से धरने पर बैठे है और उनकी एक नहीं सुनी जाती ?कारण है अन्ना के साथ जन समूह का जुड़ना और मास्टर विजय सिंह के साथ जन समूह का अभाव.
बेस मेयेरसेन  ने कहा है-
''भ्रष्टाचार के अपराध का हमेशा ही एक और गुनाहगार होता है और वह है हमारी उदासीनता.''
और हम यही अपनाते हैं,और इस तरह हम इस आचरण के सबसे बड़े दोषी हैं.हर जगह या हर गलत काम के खिलाफ हमें अन्ना या बाबा रामदेव नहीं मिलेंगे हमें स्वयं ही इस दिशा में मजबूती से आगे बढ़ना होगा.हम लोग यह मानते हैं कि ये हमारे बस का काम नहीं है ,आर्थर एश के शब्दों में -
''सफलता सफ़र है मंजिल नहीं,काम करना अक्सर नतीजे से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है.''
हमें'' जैसे भी हो अपना काम हो ''की नीति  से हटना होगाताभी हम भ्रष्टाचार की आग में पानी डाल पाएंगे,अन्यथा तो हम ही वह घी हैं जो इस आग को भड़का रहे हैं .आज राठोड ,कलमाड़ी पिट रहे हैं कोई मनोज शर्मा व् कोई उत्सव शर्मा बनकर इनपर हमले कर रहे हैं और यही जनाक्रोश है जो इसे जड़ से उखड कर फैंकेगा.हम ही हैं जो इसे बढ़ाने के दोषी हैं और हम ही हैं जो इसे आइना दिखा सकते हैं,माधव मधुकर के शब्दों में -
''दोष किसका है इसे बाद में तय कर लेंगे,
पहले इस नाव को तूफां से बचाया जाये.
ऐब औरों के गिनाने में महारत है जिसे,
ऐसे हर शख्स को आइना दिखाया जाये.
पी सकें आके जहाँ मन के मुताबिक प्यासे,
आओ मयखाना कोई ऐसा बनाया जाये.
मिल सके धूप हर आँगन को बराबर जिससे,
ऐसा सूरज कोई धरती पे उगाया जाये.
जल्द मंजिल पे पहुंचना है तो लाजिम है यही,
अपने क़दमों को जरा तेज़ बढाया जाये.''
शालिनी कौशिक
[कौशल ]

टिप्पणियाँ

रविकर ने कहा…
सुन्दर प्रस्तुति-
आभार आदरणीया

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