प्रतिबन्ध की लाइन में मोदी राहुल व् भंसाली
प्रतिबन्ध की लाइन में मोदी राहुल व् भंसाली
आज मोदी की खुनी पंजा टिप्पणी पर चुनाव आयोग ने उन्हें आगे से सतर्क रहने को कहा ,इससे पहले राहुल गांधी को मुज़फ्फरनगर दंगों के सम्बन्ध में यहाँ के युवकों से आई.एस.आई.के संपर्क की बात पर उन्हें भी चुनाव आयोग ने चेताया था .इधर भंसाली की रामलीला को लेकर कभी प्रतिबन्ध लगाये जाते हैं तो कभी नाम बदलवाया जाता है .सवाल ये उठता है कि ये सब कदम जब ये लोग अपना मनचाहा कर चुके होते हैं तभी क्यूँ उठाये जाते हैं ?क्यूँ चुनाव आयोग स्वयं संज्ञान नहीं लेता उच्चतम न्यायालय की तरह ?क्यूँ सेंसर बोर्ड को नहीं दिखता गलत शीर्षक व् भ्रमित करने के इरादे ?इसी कारण जो इन्हें करना होता है वे ये कर चुके होते हैं और इन आयोगों की कार्यप्रणाली भी ऐसी ही दृष्टिगोचर होती है जो इन्हें ये करने की आज़ादी देती है क्या इसके दुष्परिणाम जो जनता को भुगतने होते हैं वे उसी को दिखने चाहिए ?फिर इनके अस्तित्व का उद्देश्य ही क्या रह जाता है ?
रोज़ रोज़ की ऐसी हरकतों से परेशानी जनता को ही झेलनी पड़ रही है ,कहीं दंगे तो कहीं आगजनी ,कहीं तोड़-फोड़ तो कहीं जाम किन्तु कानून व्यवस्था गायब .इन कार्यों द्वारा इन्हें जो प्रचार चाहिए होता है ये ले लेते हैं और रही सजा की बात तो यहाँ को कड़ाई नहीं की जाती ,आखिर इतना ढीलापन क्यूँ है यहाँ ?रोज़ मोदी अनर्गल प्रलाप किये जा रहे हैं हाँ राहुल गांधी द्वारा ज़रूर चुनाव आयोग की चेतावनी को गम्भीरता से लेते हुए अपने भाषणों में सावधानी बरती जा रही है किन्तु मोदी द्वारा नहीं और आगे भी वे कितना देश के कानून का सम्मान करते हैं ये दिख ही जायेगा और इधर भंसाली ने सारे में रामलीला का अपनी फ़िल्म को प्रचार दिला ही लिया है .अब चाहे कुछ भी किया जाये ये सब चर्चा में हैं और इन्हें यही करना था किन्तु देश की व्यवस्था यदि ऐसे में बिगड़े तो इनके लिए मात्र चेतावनी क्या सही सजा है या देश को झुलसने से बचाने का सही उपाय ?
ऐसे में ऐसे नेताओं पर कम से कम कुछ समय तक चुनाव प्रचार न करने का और फ़िल्म वालों पर कुछ समय तक फ़िल्म न बनाने का प्रतिबन्ध तो लगना ही चाहिए ताकि ये कम से कम एक बार तो सोचें और देश के कानून का यूँ मखौल न उड़ायें जैसे अपने ऐसे कृत्यों द्वारा ये महानुभाव उड़ाते हैं .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
रोज़ रोज़ की ऐसी हरकतों से परेशानी जनता को ही झेलनी पड़ रही है ,कहीं दंगे तो कहीं आगजनी ,कहीं तोड़-फोड़ तो कहीं जाम किन्तु कानून व्यवस्था गायब .इन कार्यों द्वारा इन्हें जो प्रचार चाहिए होता है ये ले लेते हैं और रही सजा की बात तो यहाँ को कड़ाई नहीं की जाती ,आखिर इतना ढीलापन क्यूँ है यहाँ ?रोज़ मोदी अनर्गल प्रलाप किये जा रहे हैं हाँ राहुल गांधी द्वारा ज़रूर चुनाव आयोग की चेतावनी को गम्भीरता से लेते हुए अपने भाषणों में सावधानी बरती जा रही है किन्तु मोदी द्वारा नहीं और आगे भी वे कितना देश के कानून का सम्मान करते हैं ये दिख ही जायेगा और इधर भंसाली ने सारे में रामलीला का अपनी फ़िल्म को प्रचार दिला ही लिया है .अब चाहे कुछ भी किया जाये ये सब चर्चा में हैं और इन्हें यही करना था किन्तु देश की व्यवस्था यदि ऐसे में बिगड़े तो इनके लिए मात्र चेतावनी क्या सही सजा है या देश को झुलसने से बचाने का सही उपाय ?
ऐसे में ऐसे नेताओं पर कम से कम कुछ समय तक चुनाव प्रचार न करने का और फ़िल्म वालों पर कुछ समय तक फ़िल्म न बनाने का प्रतिबन्ध तो लगना ही चाहिए ताकि ये कम से कम एक बार तो सोचें और देश के कानून का यूँ मखौल न उड़ायें जैसे अपने ऐसे कृत्यों द्वारा ये महानुभाव उड़ाते हैं .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
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