विरोधाभासी निर्णय :ये न्याय नहीं
News Flash: गौतमबुद्ध नगर चुनाव समय पर होंगे: सुप्रीम कोर्ट
गौतमबुद्ध नगर के लोकसभा चुनाव आज तय समय पर ही हो रहे हैं और इस छोटे से निर्णय से न्यायालय ने इस देश में न्याय पर से विश्वास ही उठा दिया और रमेश चंद तोमर व् भारतीय जनता पार्टी जैसी बद इरादे रखने वाली शक्तियों के हौसलों को और भी बुलंद कर दिया .
रमेश चंद तोमर का कॉंग्रेस की सदस्यता से ऐसे समय पर त्यागपत्र दिया जाना जब वे एक लोकसभा क्षेत्र के घोषित प्रत्याशी थे और कॉंग्रेस के पास अन्य प्रत्याशी की घोषणा के लिए समय भी नहीं था इस घटनाक्रम से साफ तौर पर साज़िश की बू आ रही है .रमेश चंद तोमर भाजपा के ही सदस्य थे और वापस भाजपा में ही चले गए आखिर क्यूँ उनकी श्रृद्धा कम हुई और फिर बढ़ गयी क्या इसे सामान्य तौर पर लिया जा सकता है ?शायद आज भाजपाई इसे सामान्य तौर पर या कहूं एक विजय के बतौर ग्रहण करेंगे किन्तु जब ये एक प्रचलन बन जायेगा तब सभी इसमें कोफ़्त महसूस करेंगे बिलकुल उसी तरह जैसे आज क्रिकेट में होती है जब तक क्रिकेट में फिक्सिंग का पता नहीं था मैच खुले दिल से देखे जाते थे हर पर दुःख और जीत पर ख़ुशी होती थी किन्तु अब कोई भाव नहीं रह गया क्योंकि हर जीत-हार में फिक्सिंग ही लगती है ऐसे ही अगर ये प्रचलन बढ़ा तो पार्टी में अपनी जगह मजबूत करने के लिए कार्यकर्ता बलि का बकरा बनेगे भी और बनाएंगे भी और यहाँ साज़िश नज़र आने का कारण ये भी है कि आमतौर पर कोई भी जब पार्टी छोड़ता है तो वह या तो स्वयं वापस नहीं जाता और या पार्टी ही उसे स्वीकार नहीं करती क्योंकि अपनी पार्टी छोड़ने पर दूसरी पार्टी में उसे जो तरजीह मिलती है वह उसे अपनी पार्टी में नहीं मिल पाती और यहाँ ये दोनों काम हुए और ऐसे में यह निर्णय कि वहाँ चुनाव तय समय पर ही होंगे उस साज़िश को सफल करता है जो कार्य रमेश चंद या उसकी पीछे की शक्ति उससे कराना चाह रही थी और इसलिए यह निर्णय दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जायेगा क्योंकि अब इस तरह की गतिविधियां ज़रूर बढ़ेंगी इसमें कोई शक नहीं रह गया है .
आश्चर्य तो इस बात का है कि चुनाव आयोग जिस पर निर्वाचन सम्बन्धी अधीक्षण ,निदेशन व् नियंत्रण की ज़िम्मेदारी संविधान द्वारा सौंपी गयी है ,जिसे चुनाव को रद्द तक करने की शक्ति दी गयी है [मोहिंदर सिंह गिल बनाम मुख्य चुनाव आयुक्त ए.आई.आर.१९७८ एस.सी. ८५१ ]वह उसका कोई भी कार्य स्वयं नहीं करता ,आचार सहिंता लगाने का कार्य नेताओं की शिकायत पर ही होता है जबकि सब कुछ खुलेआम चलता है ,अमित शाह ने किस कदर भड़काने वाले भाषण दिए यह सब न्यूज़ चैनल पर दिखाया गया किन्तु चुनाव आयोग ने तब संज्ञान लिया जब कॉंग्रेस व् अन्य दलों ने शिकायत की ,गौतमबुद्ध नगर के सम्बन्ध में चुनाव आयोग द्वारा तुरंत निर्णय लेते हुए यहाँ का चुनाव रद्द किया जाना चाहिए था क्योंकि जब कोई प्रत्याशी मर जाता है तो उस स्थिति में सम्बंधित क्षेत्र का चुनाव रद्द कर दिया जाता है क्योंकि वह सीट खाली हो जाती है फिर यहाँ ऐसा क्यूँ नहीं किया गया यहाँ भी तो प्रत्याशी के हटने के कारण सीट खाली हो गयी थी ऐसे में चुनाव आयोग ने तो सही कदम उठाया ही नहीं और सुप्रीम कोर्ट ने भी न्याय के लिए प्रतिबद्ध होते हुए यहाँ विरोधाभासी निर्णय दिया .जहाँ एक तरफ लोकतंत्र में कई तरह की स्वतंत्रताएं मिली हुई है वहाँ एक दल के साथ ऐसी धोखाधड़ी के समय न्यायालय द्वारा उसकी याचिका को निरस्त करते हुए पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम के अनुसार चुनाव किया जाना ,ऐसे समय में जबकि वह अपना प्रतिनधि सम्बंधित क्षेत्र में नियुक्त करने से वंचित कर दी गयी हो ,न्याय नहीं कहा जा सकता क्योंकि ये लोकतंत्र में लोक का प्रतिनिधित्व तो रोकती ही है साथ ही राजनीति के आने वाले समय में एक नए काले युग का आगाज़ भी करती है .
रमेश चंद तोमर का कॉंग्रेस की सदस्यता से ऐसे समय पर त्यागपत्र दिया जाना जब वे एक लोकसभा क्षेत्र के घोषित प्रत्याशी थे और कॉंग्रेस के पास अन्य प्रत्याशी की घोषणा के लिए समय भी नहीं था इस घटनाक्रम से साफ तौर पर साज़िश की बू आ रही है .रमेश चंद तोमर भाजपा के ही सदस्य थे और वापस भाजपा में ही चले गए आखिर क्यूँ उनकी श्रृद्धा कम हुई और फिर बढ़ गयी क्या इसे सामान्य तौर पर लिया जा सकता है ?शायद आज भाजपाई इसे सामान्य तौर पर या कहूं एक विजय के बतौर ग्रहण करेंगे किन्तु जब ये एक प्रचलन बन जायेगा तब सभी इसमें कोफ़्त महसूस करेंगे बिलकुल उसी तरह जैसे आज क्रिकेट में होती है जब तक क्रिकेट में फिक्सिंग का पता नहीं था मैच खुले दिल से देखे जाते थे हर पर दुःख और जीत पर ख़ुशी होती थी किन्तु अब कोई भाव नहीं रह गया क्योंकि हर जीत-हार में फिक्सिंग ही लगती है ऐसे ही अगर ये प्रचलन बढ़ा तो पार्टी में अपनी जगह मजबूत करने के लिए कार्यकर्ता बलि का बकरा बनेगे भी और बनाएंगे भी और यहाँ साज़िश नज़र आने का कारण ये भी है कि आमतौर पर कोई भी जब पार्टी छोड़ता है तो वह या तो स्वयं वापस नहीं जाता और या पार्टी ही उसे स्वीकार नहीं करती क्योंकि अपनी पार्टी छोड़ने पर दूसरी पार्टी में उसे जो तरजीह मिलती है वह उसे अपनी पार्टी में नहीं मिल पाती और यहाँ ये दोनों काम हुए और ऐसे में यह निर्णय कि वहाँ चुनाव तय समय पर ही होंगे उस साज़िश को सफल करता है जो कार्य रमेश चंद या उसकी पीछे की शक्ति उससे कराना चाह रही थी और इसलिए यह निर्णय दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जायेगा क्योंकि अब इस तरह की गतिविधियां ज़रूर बढ़ेंगी इसमें कोई शक नहीं रह गया है .
आश्चर्य तो इस बात का है कि चुनाव आयोग जिस पर निर्वाचन सम्बन्धी अधीक्षण ,निदेशन व् नियंत्रण की ज़िम्मेदारी संविधान द्वारा सौंपी गयी है ,जिसे चुनाव को रद्द तक करने की शक्ति दी गयी है [मोहिंदर सिंह गिल बनाम मुख्य चुनाव आयुक्त ए.आई.आर.१९७८ एस.सी. ८५१ ]वह उसका कोई भी कार्य स्वयं नहीं करता ,आचार सहिंता लगाने का कार्य नेताओं की शिकायत पर ही होता है जबकि सब कुछ खुलेआम चलता है ,अमित शाह ने किस कदर भड़काने वाले भाषण दिए यह सब न्यूज़ चैनल पर दिखाया गया किन्तु चुनाव आयोग ने तब संज्ञान लिया जब कॉंग्रेस व् अन्य दलों ने शिकायत की ,गौतमबुद्ध नगर के सम्बन्ध में चुनाव आयोग द्वारा तुरंत निर्णय लेते हुए यहाँ का चुनाव रद्द किया जाना चाहिए था क्योंकि जब कोई प्रत्याशी मर जाता है तो उस स्थिति में सम्बंधित क्षेत्र का चुनाव रद्द कर दिया जाता है क्योंकि वह सीट खाली हो जाती है फिर यहाँ ऐसा क्यूँ नहीं किया गया यहाँ भी तो प्रत्याशी के हटने के कारण सीट खाली हो गयी थी ऐसे में चुनाव आयोग ने तो सही कदम उठाया ही नहीं और सुप्रीम कोर्ट ने भी न्याय के लिए प्रतिबद्ध होते हुए यहाँ विरोधाभासी निर्णय दिया .जहाँ एक तरफ लोकतंत्र में कई तरह की स्वतंत्रताएं मिली हुई है वहाँ एक दल के साथ ऐसी धोखाधड़ी के समय न्यायालय द्वारा उसकी याचिका को निरस्त करते हुए पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम के अनुसार चुनाव किया जाना ,ऐसे समय में जबकि वह अपना प्रतिनधि सम्बंधित क्षेत्र में नियुक्त करने से वंचित कर दी गयी हो ,न्याय नहीं कहा जा सकता क्योंकि ये लोकतंत्र में लोक का प्रतिनिधित्व तो रोकती ही है साथ ही राजनीति के आने वाले समय में एक नए काले युग का आगाज़ भी करती है .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
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