कॉंग्रेस में आज भी है माँ का स्थान अमित शाह जी

''दहलीज़ वही दुनियावी फितरत से बच सकी ,
तरबियत तहज़ीब की जिस दर पे मिल सकी .''
और आज भले ही अमित शाह ने राहुल गांधी का उपहास उड़ाने के लिए ही उनके प्रधानमंत्री बनने पर मां से पूछने की बात कही हो किन्तु अपने कटाक्ष में उन्होंने इस परिवार को तहज़ीब की तरबियत संजोने वाला तो साबित कर ही दिया क्योंकि आज आम तौर पर जो बच्चे अपने माता -पिता से पूछकर कोई काम करते हैं उनकी हंसी ऐसे बच्चे द्वारा उड़ाई ही जाती है जो गैर संस्कारी परिवार से सम्बद्ध रहे हों जैसे कि बॉबी फिल्म में नायक राजा अपने कॉलिज में फेयरवेल फंक्शन के लिए रुकना चाहता है किन्तु अपने मम्मी-पापा की इज़ाज़त के बाद जिस भावना की उसका एक सहपाठी यह कहकर हंसी उड़ाता है -
''लो ,एक प्रिसिपल साहब हैं जो ये कहते हैं कि अपनी ज़िंदगी के फैसले आप करो और एक ये माँ के लाल हैं जो हर बात के लिए उधर से परमिशन लेनी पड़ती है -अमां मौज उड़ाने के दिन हैं ,इसमें परमिशन क्या लेनी है .''
और ऐसे ही यहाँ अमित शाह राहुल गांधी की हंसी उड़ाने आ गए जिनकी खुद की ज़िंदगी में हमें तो लगता नहीं कि माँ की कोई भूमिका है क्योंकि विकिपीडिया जो कि इस तरह की सेलेब्रिटीस का कच्चा चिटठा रखता है उसमे भी केवल अमित शाह के पिता का ही नाम है माता के नाम का वहां उल्लेख नहीं है -
Spouse(s)
Sonal
Children
Jay (son)
Parents
Anilchandra Shah
Occupation
Politician
Cabinet
Government of Gujarat (2003–2010)
Portfolio
Ministry of Home Affairs
Religion
Hinduism
और आज ऐसी ही नस्लों की तादाद ज्यादा बढ़ रही है जिनके कारण बच्चों की ज़िंदगी में माँ-बाप एक बोझ बनकर ही रह गए हैं और ऐसी शिकायतें उन बच्चों की तरफ से ही ज्यादा हैं जो पढ़ लिखकर काबिल बन गए हैं क्योंकि अपना कैरियर बन जाने के बाद उनके लिए अपने माँ-बाप के लिए न तो कोई समय रहता है और न ही वे इसकी आवश्यकता समझते हैं क्योंकि तब उन्हें अपने से ज्यादा बुद्धिमान कोई और प्रतीत नहीं होता इसलिए तो ये भी कहा गया है -
''ज़िंदगी उस शख्स की सुकून से गुज़र सकी ,
औलाद जिसकी दुनिया में काबिल न बन सकी .''
किन्तु ऐसा वहीँ है जहाँ बच्चों में संस्कार नहीं हैं जहाँ बच्चों में संस्कार के बीज बोये गए हैं वहां बच्चे अपने माँ-बाप के साथ हमेशा एक सहारे के रूप में खड़े हैं और उनके साये तले ही अपनी ज़िंदगी को गुज़रना अपना सौभाग्य मानते हैं और अमित शाह ने अपनी व्यंग्यात्मक टिप्पणी से राहुल गांधी को इस देश की संस्कृति का संरक्षक ही साबित किया है क्योंकि हमारे देश की संस्कृति में तो माँ के चरणों में स्वर्ग कहा गया है कविवर गोपाल दास 'नीरज'' कहते हैं -
''जिसमे खुद भगवान ने खेले खेल विचित्र ,
माँ की गोदी से अधिक तीरथ कौन पवित्र .''
और यही नहीं हर वह अनोखी प्रेरणादायक सौगात जिससे हमें जीने की आगे बढ़ने की जीवन में सफल होने की प्रेरणा मिले उसे माँ का ही स्थान दिया गया है और ये तक कहा गया है कि भगवान सब जगह नहीं हो सकता इसलिए उसने माँ बनायीं .ओम शर्मा कहते हैं -
''काशी काबा छोड़ दें मत कर चारों धाम ,
थाम सके तो बावरे माँ का आँचल थाम .''
और इस महिमामयी व्यक्तित्व की शरण में अगर एक बेटा जाता है और अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए मार्गदर्शन की चाह रखता है तो हर सच्चा भारतीय ऐसे व्यक्तित्व को नमन करने को ही आगे बढ़ेगा क्योंकि वैसे भी सोनिया जी न केवल राहुल गांधी की माँ हैं बल्कि राजनीति में उनसे ज्यादा समझ रखती हैं और यह भारतीय जनता पार्टी नहीं है जहाँ अपने बड़ों को या तो बाहर बैठा दिया जाता है या फिर उन्हें न पूछते हुए जीवित होते हुए भी मात्र जनता की वोटें खीचने को और उसे यह याद दिलाने को कि यह एक युगपुरुष की पार्टी है केवल फोटो को स्थान दिया जाता है हाँ ये अवश्य है कि सोनिया जी के व्यक्तित्व के सामने अपने को कमतर महसूस करने वाले ये राहुल गांधी को उस शक्ति को प्राप्त करने से रोकना चाहते हैं जिसे पाकर राहुल गांधी गर्व से यही कहते हैं -
''तू हर तरह से ज़ालिम मेरा सब्र आज़माले ,
तेरे हर सितम से मुझको नए हौसले मिले हैं .''
और ये हौसले ही तो हैं जो राहुल गांधी ,सोनिया गांधी के मुख़ालिफों को भारतीय संस्कृति के विपरीत आचरण को अपनाने को मजबूर करते हैं और उनके हौसलों को पस्त करते हैं .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]

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