कॉलेजियम :भला दूध की रखवाली बिल्ली को थोड़े ही ...
'' लोकतंत्र गैर निर्वाचित लोगों का तंत्र नहीं बन सकता '' जेटली जी के द्वारा कहा गया यह कथन गरिमा विहीन है क्योंकि वे स्वयं एक गैर निर्वाचित व्यक्ति हैं और जिस वक्त उन्हें भारतीय लोकतंत्र की वर्तमान सरकार में वित्त-मंत्री का दर्जा प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिया गया [ He was the party's candidate for Amritsar (replacing Navjot Singh Sidhu) for Indian general election, 2014 which he lost to Congress candidate Amarinder Singh ] [विकिपीडिया से साभार ] और अब भी वे सीधे निर्वाचित नहीं हैं बल्कि भाजपा की चुनावी रणनीति से राज्य सभा से निर्वाचित हैं जिसका रास्ता राजनीतिक दल अपने उस नेता को संसद में पहुँचाने के लिए आज़माते हैं जिसे जनता कभी भी अपने वोट दे जितना पसंद नहीं करती इसलिए इनकी कही बात तो पहले ही कोई वजन नहीं रखती और अगर हम अपने संविधान की दृष्टि से देखें तो आरम्भ से ही नकारने वाली बात है क्योंकि संविधान में सर्वोच्च न्यायालय को स्वतंत्र न्यायपालिका का दर्जा दिया गया है और संविधान के संरक्षक की जिम्मेदारी सौंपी गयी है जो कि इस परिस्थिति में नामुमकिन है जो स्थिति अरुण जेटली जी कह रहे हैं .
अनुच्छेद १२४ भारत के लिए एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना का उपबंध करता है और अनुच्छेद १२४ [३] के अनुसार उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को राष्ट्रपति नियुक्त करता है किन्तु इस मामले में राष्ट्रपति को कोई वैवेकिक शक्ति नहीं प्राप्त है .अनु.१२४ [३] यह कहता है कि राष्ट्रपति न्यायाधीशों की नियुक्ति उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के ऐसे न्यायाधीशों से परामर्श करने के पश्चात जिसे इस प्रयोजन के लिए वह आवश्यक समझे ;ही करेगा अन्य न्यायधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति सर्वदा मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से करेगा .वह उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों से भी परामर्श कर सकता है .न्यायाधीशों की नियुक्ति करने की राष्ट्रपति की शक्ति एक औपचारिक शक्ति है क्योंकि वह इस मामले में मंत्रिमंडल की सलाह से कार्य करता है और न्यायधीशों की नियुक्ति के मामले में संविधान ने कार्यपालिका को आत्यंतिक शक्ति नहीं प्रदान की है कार्यपालिका को न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में ऐसे व्यक्तियों से परामर्श करना आवश्यक है जो इस विषय पर परामर्श देने के लिए पूर्ण रूप से योग्य हों और इस सम्बन्ध में संविधान का संकेत पूर्ण रूप से उच्चतम व् उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के परामर्श से ही है .
इसी आधार पर राष्ट्रपति मुख्य न्यायमूर्ति की नियुक्ति वरिष्ठता आधार पर करता रहा क्योंकि संविधान द्वारा विहित अर्हता रखने वाले किसी भी व्यक्ति को मुख्य न्यायमूर्ति नियुक्त करने की शक्ति राष्ट्रपति को प्राप्त है किन्तु अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति मुख्य न्यायमूर्ति से परामर्श के लिए बाध्य है किन्तु १९५६ में विधि आयोग ने यह सुझाव दिया कि मुख्य न्यायमूर्ति की नियुक्ति वरिष्ठता के आधार पर नहीं वरन न्यायाधीशों के गुण और उपयुक्तता के आधार पर की जानी चाहिए जिसे सुझाव को तब नहीं माना गया और माना गया २४ अप्रैल १९७३ को जिसमे तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों श्री जे. एम.शैलेट ,श्री के.इस.हेगड़े तथा श्री एस.एन.ग्रोवर की वरिष्ठता की उपेक्षा कर श्री राय को मुख्य न्यायमूर्ति नियुक्त कर दिया और ये था न्यायपालिका की स्वतंत्रता में खुला हस्तक्षेप जिसे अगर न्यायपालिका न रोके तो संविधान के द्वारा दी गयी स्वतंत्रता को इन राजनीतिज्ञों के हाथों में गंवाते देर नहीं लगेगी और उसका परिणाम क्या होगा सब जानते हैं देश राजनीतिज्ञों के हाथों का खिलौना बन जाएगा और फिर किसी भी राजनीतिज्ञ को उसके भ्रष्टाचार की ,देश को खोखला करने की कोई सजा नहीं मिलेगी क्योंकि ये राजनीतिज्ञ वे होते हैं जो जनता को दिखाने को ''गुस्से में माँ- बेटा '' शहजादे '' बेटी -दामाद ने लूटा देश '' माँ-बेटे की सरकार ''जैसी उक्तियों का इस्तेमाल करते हैं और अपने व्यक्तिगत जीवन में उन्हीं को जन्मदिन की बधाइयाँ देते फिरते हैं सामने पड़ने पर उसी शहजादे को कन्नी काटकर नहीं जाने देते बल्कि स्वयं आगे बढ़कर गले लगा लेते हैं मतलब इन्हें उनसे कोई दिक्कत नहीं है दिक्कत केवल जनता को है और जनता के ये सिपहसालार जनता के सामने कुछ और अपनी निजी ज़िंदगी में कुछ और होते हैं और अगर ऐसे ही इन संसदीय लोकतंत्र के पहरेदारों को आम जनता की उम्मीदों के रक्षक उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति की जिम्मेदारी दे दी गयी तो ये तो वही बात होगी कि ''दूध की रखवाली को बिल्ली को छोड़ दिया जाये ''और फिर जेटली जी खुद जानते हैं कि वे सही नहीं कह रहे हैं क्योंकि इस सरकार में वे और स्मृति ईरानी ऐसे गैर निर्वाचित बैठे हुए हैं जिन्हे जनता ने नाकारा था और इसी कार्यपालिका में ऐसे लोगों का होना उनकी बात को गिराने के लिए काफी है .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
टिप्पणियाँ
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'