जिन्हें न शर्म लेश
बहुत बार देखी हैं
हथेली की रेखाएं
किताबों में लिखा
जिन्हें सर्वश्रेष्ठ ,
उमर आधे से ज्यादा
है बीत गयी
खोया ही खोया
पाया बस क्लेश ,
नहीं कोई चाहत
है अब पाल रखी
नहीं लेना दुनिया से
है कुछ विशेष ,
सुकूँ से बिता लें
सम्मान से रह लें
जो चार दिन इस
जहाँ में अवशेष ,
मगर लगता लड़ना व्
भिड़ना पड़ेगा
सबक दे दें उनको
जिन्हें न शर्म लेश .
शालिनी कौशिक
(कौशल)
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