... पता ही नहीं चला.
बारिश की बूंदे
गिरती लगातार
रोक देती हैं
गति जिंदगी की
और बहा ले जाती हैं
अपने साथ
कभी दर्द
तो
कभी खुशी भी
वक्त संग संग
बहता है
और नहीं
रूकता
अपनी
आदत के अनुसार
और बूंदे
कभी
दर्द मिटाती हैं
कभी
खुशी चुराती हैं
और कैसे वक्त को
बहा ले जाती हैं
कुछ ऐसे
कि
मुंह से बस
यही
निकलता है
कि
कब वक्त
बीत गया
पता ही नहीं चला.
शालिनी कौशिक
(कौशल)
टिप्पणियाँ
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जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'