बच्चे बदले क्यूँ न जब चाचा बदले ?
''गुरु कुम्हार सिष कुम्भ है ,गढ़ी गढ़ी काढ़े खोट ,
अंतर हाथ सहार दे ,बाहर बाहे चोट .''
अर्थात गुरु कुम्हार है और सिष कुम्भ के समान है जो कुम्हार की तरह अपने सिष कुम्भ के खोट दूर करता है ,वह उसके अंतर अर्थात ह्रदय को सहारता है अर्थात सराहता है और बाहर से चोट करता है अर्थात उसे मजबूत करता है .
ऐसी कोमल मनोवृति जो सब कुछ अपने में समा लेती है वह बच्चो की ही होती है और इसीलिए ये देखने में आ रहा है कि बच्चो को गलत ओर ढाला जा रहा है .लोग बच्चो को अपने स्टैण्डर्ड को दिखाने का साधन तो बहुत पहले से ही बनाते रहे हैं लेकिन अब छोटे-छोटे बच्चों को राजनीति में अपराध में घुसाया जा रहा है .विश्वविद्यालयों के छात्र संघ चुनाव तो राजनीतिक दल बहुत पहले ही अपने हाथ में लेते रहे हैं लेकिन अब नगरपालिका चुनाव जैसे छोटे चुनावों में भी राजनीतिक दल हाथ आजमाने लगे हैं और उन्होंने अपने प्रचार का जरिया बनाया है छोटे-छोटे बच्चो को .
आजकल उत्तर-प्रदेश में नगरपालिका चुनावों का दौर चल रहा है और ऐसे में गली गली घूमकर नेतागण प्रचार के कार्य में जुटे हैं चलिए ये सब तो सही है किन्तु अगर कुछ नागवार गुजर रहा है तो वह है बच्चों द्वारा चुनाव प्रचार .बच्चे अपनी साइकिलों पर घूमकर कहीं हाथी तो कहीं हवाई जहाज का प्रचार करने में जुटे हैं और ये सब जानते हैं कि बच्चे कुछ भी बगैर लालच के नहीं करते और वह भी वह काम जिससे उनका कोई सरोकार नहीं कोई मतलब नहीं लेकिन वे पूरे जोश से जुटे हैं नेतागण की जिंदाबाद करने में क्योंकि उन्हें लालच दिया जा रहा है चॉकलेट का टॉफ़ी का और इनके लालच में वे वोट मांग रहे हैं जिसके बारे में उन्हें कुछ पता भी नहीं और पता होने की अभी कोई ज़रुरत भी नहीं क्योंकि अभी उन्हें जीवन में पढ़ना है ,बहुत कुछ सीखना है .
यही नहीं कि बच्चे राजनीति में आगे बढ़ रहे हों वे अब हर गलत काम में आगे बढ़ रहे हैं .गुरुग्राम का प्रदुमन हत्याकांड बच्चों ने ही अंजाम दिया है .बच्चे चोरी कर रहे हैं ,यौन-कृत्यों को अंजाम दे रहे हैं ,२०१२ का निर्भया गैंगरेप कांड बहुत दुखद था और उसमे सबसे बड़ा हाथ एक नाबालिग -एक बच्चे का ही था .
बहुत दुखद है बच्चों का ऐसे कार्यों में आगे बढ़ना ,पर ये सब हो रहा है और हो भी क्यों न .अब समय बदल रहा है .बदल गए हैं अब बच्चों के माँ-बाप जो अपने बच्चों को अकेले नहीं छोड़ते थे .अब माँ-बाप अपने बच्चों को टीवी के साथ छोड़ रहे हैं ,व्हाट्सएप्प के साथ छोड़ रहे हैं ,फेसबुक के साथ छोड़ रहे हैं ,बस फिर क्या होना है यही तो होना है जो हो रहा है .बदलना प्रकृति का नियम है ,सब कुछ बदला ,बच्चों के चाचा नेहरू बदल गए और नए चाचा आ गए तो बच्चे भी अब नए आ गए .ऐसे में अब यह कहने का तो मन ही नहीं करता-
''बच्चे मन के सच्चे ,
सारे जग की आँख के तारे ,
ये वो नन्हे फूल हैं जो
भगवान को लगते प्यारे .''
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
टिप्पणियाँ
आप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
दिनांक 14/11/2017 को...
आप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...