सरकार फिर सफल ?
सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को अपने फैसले में एस-सी -एस -टी एक्ट के तहत तुरंत गिरफ़्तारी पर रोक लगा दी और साथ ही सुभाष महाजन के इस केस में अग्रिम जमानत दिए जाने के निर्देश भी दिए ,इसी फैसले के मद्देनज़र दलित संगठनों ने 2 अप्रैल को विरोध स्वरुप भारत बंद बुलाया और सोशल मीडिया के स्तर पर इसे सफल बनाने की कार्यवाही भी आरम्भ कर दी ,सरकार के मुखिया प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी लगातार कहते रहे कि हम पुनर्विचार याचिका दाखिल करेंगे लेकिन अफ़सोस 2 अप्रैल से पहले सरकार को इसके लिए समय ही नहीं मिला ,
2 अप्रैल आयी ,आनी ही थी संगठन इकट्ठे हो गए ,पूरे भारत में भारत बंद का आयोजन जोर-शोर से हुआ और ऐसी ही आशा की भी जा रही थी कम से कम जनता तो ऐसा ही सोच रही थी और सरकार या शाह की तरह वह निश्चिन्त नहीं थी इसीलिए उस दिन बसों में भीड़ कम थी ,सदियों भी जिन बसों में बैठने को आधी सीट भी नसीब नहीं होती उस दिन दो-दो सीट एक-एक को मिल रही थी और हुआ वही जिसके इंतज़ाम शाह की सोच में भी थे क्या हम ऐसा विश्वास कर सकते हैं ?
2 अप्रैल को देश के दस राज्यों में उग्र आंदोलन हुए ,इनमे 15 लोगों की मौत हुई ,मध्य प्रदेश में 7 ,उत्तर प्रदेश व् बिहार में 3 -3 और राजस्थान में 2 की मौत हुई ,कई जगहों पर बसों में आग लगा गयी ,उत्तर प्रदेश के मेरठ में रोडवेज की दो बसों में आग लगायी गयी मुज़फ्फरनगर में पांच घंटे तक हंगामा चला पुलिस पर पत्थर बाजी की घटनाएं भी हुई इसी बीच खबर आयी कि केंद्र सरकार ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की है किन्तु न कोई फर्क पड़ना था न पड़ा क्योंकि दंगे की आग ही भड़क चुकी थी ,केंद्र सरकार द्वारा समय रहते कार्यवाही करने में मोदी-शाह के अतिआत्मविश्वास के कारण बहुत देर कर दी गयी थी ,दंगे को रोकने के सैन्य बलों की मदद समय बीतने पर ली गयी तब नहीं जब दंगो को होने से ही रोका जा सकता था ,
और अब अमित शाह कह रहे हैं -
बंद के दौरान मौतों का जिम्मेदार विपक्ष: शाह
दंगे होने के जिम्मेदार विपक्ष को ठहराने से क्या शाह बता सकते हैं कि -
1 -ऐसा कौनसा विपक्ष होता है जो सरकार की नाक में दम नहीं करता ?
2 -किस विपक्ष की कोशिश सरकार के कदम उखाड़ने की नहीं होती ?
जवाब एक ही है वह विपक्ष विपक्ष है ही नहीं जो सरकार को आराम से काम करने दे ,विपक्ष का लक्ष्य ही सरकार की नींव उखाड़ना है किन्तु वह सरकार की नेतृत्व क्षमता है जो विपक्ष को सफल नहीं देती और शाह के मुताबिक अगर पूर्व घोषित भारत बंद के तहत विपक्ष दंगे करवाकर सरकार को झटका देने में सफल हुआ है तो स्पष्ट है कि सरकार की नेतृत्व क्षमता में कहीं चूक उत्पन्न हुई है और ऐसे में सरकार की चूक 15 ज़िंदगियों पर भारी पड़ी है इसलिए सरकार की जिम्मेदारी सामूहिक इस्तीफे की बनती है लेकिन हमारे अमित शाह जी तो पूरे जोश-ओ -खरोश से कह रहे हैं
हम ना आरक्षण खत्म करेंगे, ना करने देंगे;
मतलब साफ है सरकार के कानों पर दंगों की भयावहता व् मौतों से जूं तक नहीं रेंगी है और ऐसा तभी संभव है जब किसी को अपना मनचाहा कुछ मिल गया हो और वक़्त इन दंगों से सरकार को उसकी मनचाही मुराद मिलने की ओर संकेत कर रहा है और यह संकेत कहीं बाहर से नहीं वरन सरकार के अंदुरुनी कार्यप्रणाली से ही मिल रहा है-
- सर्वप्रथम -10 -12 दिन पूर्व की भारत बंद घोषणा की असफलता के लिए सरकार पुनर्विचार याचिका दायर करती है ठीक भारत बंद की घोषणा के दिन ,
- दूसरे अभी हाल में 2013 में दंगों का दंश झेलने के बावजूद सरकार द्वारा पहले से सुरक्षा बलों की सहायता क्यूँ नहीं ली गयी ?
-तीसरी व् अंतिम बात यह कि भारत बंद के लिए सोशल मीडिया पर रोक जैसे उपाय क्यूँ अमल में नहीं लाये गए ?
वजह साफ थी सरकार का इरादा अपनी विफलताओं से ध्यान हटाने का था और अपने इस उद्देश्य में वह सफल रही क्योंकि अब चारों तरफ दलितों की स्थिति की चर्चा है ,दंगों के आगे न होने देने की चर्चा है ,और कुछ नहीं ,कह सकते हैं कि एक बार फिर यह सरकार अपने प्रजातंत्र दमन मुद्दे में ,संविधान बदलने या कहें संविधान विरोधी उद्देश्य में सफल हुई है ,
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
टिप्पणियाँ
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'