नगरपालिका - 24 मई 2000
HONESTLY REPRESENTED AS AN ADVOCATE
The first duty of an advocate is to provide justice to his /her client and the second duty is to be honest towards his/her client. An advocate is appointed to represent the victim in the court because the victim cannot present his case by staying within the ambit of the law and in such a situation, whose case the advocate takes in his/her hands, it is his/her duty to serve his/her client to extend all possible help within the ambit of the law,also, if his/her client commits any mistake, then stop him/her from ever committing such a mistake in future which hinders his judicial interest and Late Babu Kaushal Prasad Advocate Ji also fulfilled his responsibility as an advocate. He never gave a second opportunity to his client to commit any mistake which would hinder his/her judicial interest. This letter written by Babu ji in the name of President, Municipal Council, Kandhla is a sign of his devotion to his duty.
"... on 23.05.2000 in the Court of Civil Judge C.D.Kairana, the case number 47 of 98 Municipal council Kandhla Vs. Salim was fixed for final hearing, at 9.30 in the morning, the Municipal Council (Parokaar ) representative Khajan Singh met me at home, Due to my ill health, I gave him an adjournment application and told him to go to Kairana and present it in the court. The said Khajan Singh again met me at 4 pm. and said that in the said case today he was stopped by the executive officer and ................. clerk from going to Kairana to plead, sent the Shafiq employee with an application at 1 o'clock in the afternoon. By then the case had been dismissed in the court. This is a serious matter and it is impossible for me to act in any case if municipal cases continue to be pursued like this.
Therefore, you are requested to get the said matter investigated as to why Khajan Singh Parokar was stopped from going to Kairana by the Executive Officer and …………. clerk? Who is responsible for the loss caused to the municipality?
अधिवक्ता का पहला कर्तव्य होता है अपने मुवक्किल को न्याय दिलाना और दूसरा कर्तव्य होता है अपने मुवक्किल के प्रति ईमानदार रहना. न्यायालय में पीड़ित की पैरवी करने के लिए अधिवक्ता की नियुक्ति की जाती है क्योंकि पीड़ित स्वयं कानून के दायरे में रहकर अपना केस प्रस्तुत नहीं कर सकता और ऐसे में जिस किसी का भी केस अधिवक्ता अपने हाथ में लेता है तो उसका कर्तव्य है कि वह अपने मुवक्किल की कानून के दायरे में रहते हुए हर सम्भव सहायता करे, साथ ही, यदि उसका मुवक्किल कोई गलती करता है तो उसे टोक कर आगे कभी ऐसी गलती करने से रोके जो उसके न्यायिक हित में अवरोध उत्पन्न करती हो और स्व बाबू कौशल प्रसाद एडवोकेट जी ने एक अधिवक्ता के रूप में भी अपने दायित्व को बखूबी निभाया। उन्होंने अपने मुवक्किल द्वारा कभी भी कोई ऐसी गलती किए जाने पर, जो कि उसके न्यायिक हित में बाधा उत्पन्न करती हो, करने का दूसरा अवसर नहीं दिया. बाबूजी का अध्यक्ष, नगरपालिका परिषद, कांधला के नाम लिखा यह पत्र उनकी इसी कर्तव्य परायणता का परिचायक है-
".... दिनाँक 23.05.2000 को सिविल जज सी. डी. कैराना के न्यायालय में वाद संख्या 47 सन 98 नगरपालिका परिषद कांधला बनाम सलीम अंतिम सुनवाई हेतु नियुक्त था, प्रातः 9.30 बजे नगरपालिका परिषद पैरोकार खजान सिंह मुझ से घर पर मिला, मेरी तबीयत खराब होने के कारण मैंने उसे स्थगन प्रार्थना पत्र देकर कहा कि कैराना जाकर इसे न्यायालय में पेश करना है. शाम 4 बजे उक्त खजान सिंह पुनः मुझ से मिला तथा कहा कि उक्त मुकदमे में आज उसे अधिशासी अधिकारी व................. लिपिक ने पैरवी करने के लिए कैराना जाने से रोक दिया, शफीक कर्मचारी को दोपहर 1 बजे प्रार्थना पत्र लेकर भेजा तब तक न्यायालय में मुकदमा खारिज हो चुका था। यह एक गंभीर मामला है और यदि इस प्रकार नगरपालिका के मुकदमों की पैरवी की जाती रही तो किसी भी मुक़दमे में, मेरे लिए कार्य करना असम्भव है।
अतः आपसे अनुरोध है कि उक्त मामले की जांच करायी जाए कि खजान सिंह पैरोकार को अधिशासी अधिकारी तथा.................... लिपिक द्वारा कैराना जाने से क्यों रोका गया तथा मुकदमा खारिज होने से पालिका को जो हानि हुई है, उसके लिए कौन जिम्मेदार है।
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